हमने गिद्धों को भी पीछे छोड़ दिया ……!

इंसान ही इंसान का दुश्मन बनता जा रहा है । लॉक डाउन की खबर सुनते ही हम शराब की दुकानों पर टूट पड़ते हैं, गुटखा, सिगरेट पहले चाहिए, भले कितने की मिले ।
*हम अपनो का माँस कैसे नोचते है*
2 रुपये का नींबू 10 रुपये में बेचने लगते हैं। 30 का नारियल पानी 80 में और 20 की कीवी 50 मे ,
30 रुपए का प्याज 100 रुपये में बेचने लगते हैं। 25 का परवल 80 में बेचने लगते हैं।
और जैसे ही पता लगा कि ऑक्सीजन की कमी हो रही है तो ऑक्सीजन की कालाबाजारी शुरू कर देते हैं।
हम मरीज को किसी एक शहर से दूसरे शहर में पहुंचाने की बात देखते हैं तो, 35 से 40 हजार किराया मांगने लगते हैं।
दम तोड़ते मरीजों की दुर्दशा देखते हैं, तो रेमडेसिविर इंजेक्शन में पैरासिटामोल मिलाकर बेचने लगते हैं, और दवाओं की कालाबाजारी शुरू कर देते हैं । कोई मरे तो मरे, हमारी जेब जरूर भरती रहे, हमारे दिमाग में यही सब चलता रहता है।
अब बारी आती है अस्पतालों की । अस्पताल वाले जब मरीजों पर जान की आफत देखते हैं, तो लाखों का बिल बनाकर चूसना शुरू कर देते हैं। कुछ अस्पताल वाले तो ऐसे दुष्ट हैं, कि अस्पताल में बेड होने पर भी कह देते हैं, हमारे यहां बेड नहीं हैं। लेकिन जब उन्हें मुंह मांगा पैसा दिया जाता है ,तो उसी जगह बेड उपलब्ध करा देते हैं । कुछ नरभक्षी मरीजों के लिए जरूरी दवाओं के नाम जानते हैं, फिर उनको स्टोर करना शुरू कर देते हैं। और मुंह मांगी कीमत पर बेचते हैं ।
अब आप क्या कहेंगे !
वास्तव में हम बहुत मासूम हैं ………….
या …………..
लाशों का मांस नोचने वाले गिद्ध ……….
सभी ऐसे भी नही है। पर जो ऐसा करते है, वो गिद्ध से कम भी नही । आपदा को अवसर मे कैसै बदलते है, यह नर भक्षी अच्छे से जानते है । इतना जल्दी तो गिरगिट भी अपना रंग नही बदलता, जितना जल्दी मनुष्य रंग बदल रहा है ।
जो आपदा किसी व्यक्ति विशेष पर आज आयी है, वहीं आपदा इन गिद्धों पर भी आ सकती है। आपदा का समय व्यक्तिगत लाभ, हानि का नहीं होकर, आप सभी का सामूहिक दायित्वों को महसूस करने का है। किसी भी प्रकार सभी एक दूसरे की मदद कर सके, इसका ख्याल मन में ज़रूर आना चाहिए । समय बड़ा बलवान है । आपदा किसी पर भी आ सकती है। इसलिए मानव हो तो मानवता की रक्षा करो और एक दूसरे की मदद करो ।


