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अचानक हमारे देश में रेप क्यों बढ़ गए ! विचार कीजिए और देखिए समस्या कहां है ? आइए कुछ समझने की कोशिश करें

कुछ उदाहरण से समझते हैं ।
लोग कहते हैं कि रेप क्यों होता है?
उधारण 18 साल का लड़का सिनेमा घर में राजा हरिश्चंद्र फिल्म देखने गया और फिल्म से प्रेरित होकर उसने सत्य का मार्ग चुना और वह बड़ा होकर महान व्यक्ति से जाना गया, परंतु आज 8 साल का लड़का टीवी पर क्या देखता है? सिर्फ नंगापन और अश्लील वीडियो और फोटो, मैगजीन में अर्धनग्न फोटो ,अपने आस पास में रहने वाली किसी महिला के छोटे कपड़े ! लोग कहते हैं कि रेप का कारण बच्चों की मानसिकता है , पर वह मानसिकता आई कहां से ? उसके जिम्मेदार कहीं ना कहीं हम खुद जिम्मेदार हैं। क्योंकि हम जॉइंट फैमिली में नहीं रहते। हम अकेला रहना पसंद करते हैं, और अपना परिवार चलाने के लिए माता-पिता को बच्चों को अकेला छोड़कर काम पर जाना पड़ता है । और बच्चे अपना अकेलापन दूर करने के लिए टीवी और इंटरनेट का सहारा लेते हैं । और उनको देखने के लिए क्या मिलता है ? सिर्फ वही अश्लील वीडियो और फोटो,  तो वह क्या सीखेंगे यही सब कुछ ना अगर वही बच्चा अकेला ना रहकर अपने दादा-दादी के साथ रहे तो, कुछ अच्छे संस्कार सीखेगा । कुछ हद तक यह भी जिम्मेदार है । पूरा देश रेप की घटनाओं से उबल रहा है । छोटी-छोटी बच्चियों से जो दरंदगी हो रही है ,उस पर सबके मन में गुस्सा है। कोई सरकार को कोस रहा है ,तो कोई समाज को, लेकिन आप सुबह से रात तक कई बार टीवी पर  कंडोम के ऐड देखते हैं  , एक शैम्पू के विज्ञापन में  लड़कियां पटाने का तरीका बताते है , ऐसे ही बहुत सारी कंपनिया  यह सब अश्लील एड दिखाते हैं,  लेकिन तब आपको गुस्सा नहीं आता। आप अपने छोटे बच्चों के साथ म्यूजिक चैनल पर कौनसा गाना सुनते है , क्या सुनते है ? आपको गुस्सा नहीं आता ! मम्मी बच्चों के साथ  टीवी देखती है जिसमें  एक्टर सुहागरात मनाते हैं,  कीस करते हैं , आंखों में आंखें डालते हैं , और तो और टीवी सीरियल में, जिसमें एक व्यक्ति दूसरे की पत्नी के पीछे लार टपका रहा है। यह सब कुछ हम पूरे परिवार के साथ देखते हैं, लेकिन यह सब सीरियल देखकर आपको गुस्सा नहीं आएगा। फिल्मों में भर भर के अश्लील सीन  दिखाये जाते है, पर आप बड़े मजे लेकर इन सबको देखते हैं । इन सबको देखकर आपको गुस्सा नहीं आता । खुलेआम टीवी ,फिल्म वाले आपके बच्चे को बलात्कारी बनाते हैं ,उनके कोमल मन में जहर घोलते हैं, तब आपको गुस्सा नहीं आता ! क्योंकि आपको लगता है की ,यह जिम्मेदारी तो पुलिस ,प्रशासन न्याय व्यवस्था की  है । लेकिन क्या समाज और मीडिया की कोई जिम्मेदारी नहीं है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में कुछ भी परोस दोगे ? आप तो अखबार पढ़ कर न्यूज़ देखकर बस गुस्सा निकालो, सिस्टम कोसो , सरकार को कोसो , पुलिस,  प्रशासन को कोसो , और ज्यादा से ज्यादा डीपी बदल कर सोशल मीडिया पर खूब हल्ला मचाओगे । बहुत ज्यादा हुआ तो कैंडल मार्च निकाल लोगे । लेकिन टीवी चैनल ,बॉलीवुड, मीडिया को कुछ नहीं कहोगी ।  क्योंकि वह आपके मनोरंजन के लिए है l ऐसे ही कुछ बाबाओं के मकड़ जाल में फंसे  है, लेकीन बाबाओं की  गलती नहीं है । क्योंकि आप अपने ईश्वर को छोड़कर ,अपने इष्ट को छोड़ कर, तांत्रिक बाबाओं के वशीकरण के जाल में खुद फसते हो ! हमारे देश के लोग पढ़े लिखे हैं ,समझदार हैं, फिर भी इन ढोंगियों के चक्कर में पड़ जाते हैं l और अपना तन, मन, और धन गंवा बैठते हैं। आज हर विज्ञापन और फिल्मों में नारी को केवल भोग की वस्तु के रूप में दिखाया जाता हैं, तो बलात्कार के घटनाओं को बढ़ावा मिलना निश्चित है । क्योंकि ऐसी  घटनाओं के पीछे निश्चित तौर पर  फिल्म , सीरियल, विज्ञापन के बाजार ही जिम्मेदार है । आज सोशल मीडिया ,इंटरनेट और फिल्मों में पूर्ण अश्लीलता परोसी जा रही है, तो बच्चे तो गलत ही सीखेंगे  । ध्यान रहे समाज और मीडिया के बदले बिना रैप जैसी घटनाओं को रोकना  संभव नही है , सरकार कितने ही कठोर सख्त कानून  बना ले यह घटनाएं नहीं रुकने वाली
अगर अब भी हम ,आप बदलने की शुरुआत नहीं करते है तो, समझो कि फिर कोई  बेटी या बहन बर्बाद होने वाली है ? अगर आपको आपकी बेटी को बचाना है, तो सरकार, कानून ,पुलिस के भरोसे से बाहर निकल कर समाज को टीवी, मीडिया, और सोशल मीडिया की गंदगी साफ करने की आवश्यकता है। उन्हें अच्छे और बुरे का फर्क बताने की आवश्यकता है। मैं किसी के पहनावे को बुरा नहीं कहता लेकिन ,अच्छा पहनना और बेहूदा पहनना दो अलग बातें हैं। अच्छा पहनिए और अपने परिवार के संस्कारों का आदर कीजिए ।
रेप रोकना जितना पुलिस और सरकार का काम है ,उतना ही आपके परिवार में अच्छे संस्कारों   को  देना आपका काम है l
महिला अपराध का जड़ से इलाज करना जरूरी है
मुझे डर है कि यह सामूहिक विस्मृति उतनी ही घृणित है, जितनी वह मानसिकता जिसके बारे में मैंने बात की। इतिहास अक्सर दर्द देता है। इतिहास का सामना करने से डरने वाले समाज, सामूहिक , स्मृतिलोप का सहारा लेते हैं, और शुतुरमुर्ग की तरह अपने सिर को रेत में दबा लेते हैं। अब समय आ गया है कि न केवल इतिहास का सीधे सामना किया जाए, बल्कि अपनी आत्मा के भीतर झांका जाए और महिलाओं के खिलाफ अपराध की इस बीमारी की जड़ तक पहुंचा जाए ।
मेरा यह दृढ़ मत है कि हमें इस तरह के अपराधों की स्मृतियों पर भूल का परदा नहीं पड़ने देना चाहिए। आइए, इस विकृति से व्यापक तरीके से निपटें ,ताकि इसे शुरू में ही रोका जा सके। हम ऐसा तभी कर सकते हैं जब हम पीड़ितों की यादों का सम्मान करें और उन्हें याद करने की एक सामाजिक संस्कृति विकसित करें ,ताकि हमें अतीत की अपनी विफलताएं याद रहें तथा हम भविष्य में और अधिक सतर्क रहें ।
अगर मैने  कुछ गलत लिखा हो तो मैं माफी चाहता हूं , लेकिन विचार अवश्य करना l
पत्रकार ✍🏻 राजेंद्र शर्मा
M. 7728875772

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