आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्य दलों के समक्ष चुनौतियां..

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आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्य दलों के समक्ष चुनौतियां..

गौरव रक्षक/ दीप प्रकाश माथुर

जयपुर,23 अक्टूबर।

राजस्थान विधानसभा के, आगामी ,आम चुनाव में ,कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी; के बीच, मुख्य मुकाबला है ।इसके अलावा आम आदमी पार्टी ,बहुजन समाज पार्टी ,हनुमान बेनीवाल की पार्टी, दुष्यंत चौटाला की पार्टी ,ओवैसी की पार्टी ,भारतीय ट्राइबल पार्टी आदि दल, इन चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए, पूरे जोश से लगे हुए हैं ।
अभी तक की स्थिति के अनुसार; मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के मध्य नजर आ रहा है ।
इन दोनों ही दलो द्वारा ,अभी तक, कई विधानसभा क्षेत्रो के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है। इस घोषणा के साथ ही; इन दलों में इन उम्मीदवारों को लेकर विरोध में बगावत शुरू हो चुकी है ।यह बगावत भारतीय जनता पार्टी में ज्यादा देखने को मिल रही है, क्योंकि कांग्रेस द्वारा लगभग पुराने चहरों को ही रिपीट किया गया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने 7 सांसदों को मैदान में उतारा है ।इसके अलावा ,गत विधानसभा चुनाव में जिन चहरों ने पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ बगावत की थी, उनको भी टिकट दिया है ।इसके अलावा अन्य दलों से आने वाले व्यक्तियों तथा रिटायर्ड अधिकारी/ कर्मचारियों को भी टिकट दिया है। जिसका काफी विरोध हो रहा है।
हालांकि ,दोनों ही दलों के आलाकमान और प्रभावी नेता इस विरोध और बगावत को दबाने में लगे हुए हैं। ये नेता किस हद तक इस बगावत को दबाने में सफल होंगे ,यह समय ही बता पाएगा, क्योंकि अभी तक,राजस्थान विधानसभा चुनाव का इतिहास यह रहा है ,कि ,दोनों ही मुख्य दलों के बीच मतो का अंतर 4% से भी काम रहा है। जो की बहुत कम है। किसी भी दल में होने वाली बगावत, इन चार प्रतिशत मतों के अंतर को कम करके,जीत के समीकरण बिगाड़ सकती है। लगभग दो प्रतिशत मत ,इधर के उधर होने पर, बहुमत आंकड़ा ,पलट सकता है ।
दोनों ही दलों कि अभी तक की रीति-नीति से यह स्पष्ट नहीं हो रहा है, की ,यह चुनाव वह किस नेतृत्व या किस नीति के आधार पर लड़ रहे हैं।
अभी तक स्थानीय मुद्दों और स्थानीय चेहरों के आधार पर ही, दोनों दल चुनाव मैदान में जा रहे हैं । जिस प्रकार से दोनों दलों द्वारा अपने प्रत्याशियों की घोषणा की गई है, उसमें उम्मीदवार की छवि ,जातिगत समीकरण, पारिवारिक पृष्ठभूमि को आधार बनाया गया है ।
इससे यह माना जा रहा है कि इन चुनाव में दोनों ही दलों के पास आगामी चुनाव के लिए ,कोई मुद्दे नहीं है , जिनको लेकर जनता के बीच जाया जाए ।
आइऐ ,दोनों दलों के लिए आगामी चुनाव में क्या-क्या चुनौतियां हैं, उस की समीक्षा करें
कांग्रेस पार्टी– कांग्रेस के समक्ष विगत, 5 वर्षों में, सत्ता में रहते हुए क्या-क्या कार्य किए गए हैं ,इनको लेकर जनता के समक्ष आने का एक मौका है।
हालांकि गहलोत सरकार ने बहुत सी, लोकप्रिय योजनाएं, जैसे कि चिरंजीवी योजना, मुफ्त बिजली, ₹500 में गैस सिलेंडर आदि योजनाओं से आम जनता को सीधा लाभ मिला है ,लेकिन सरकार की विश्वसनीयता पर लगातार संदेह व्यक्त किया जाता रहा है।
विगत 5 वर्षों में कांग्रेस पार्टी सचिन और अशोक गहलोत के बीच मनमुटाव में ही उलझी रही। सत्ता में आने के कुछ समय का पश्चात ही सचिन पायलट द्वारा अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर में बगावत कर दी गई इसके बाद सचिन और गहलोत के बीच दूरियां बढ़ती गई और गहलोत सरकार अपने बचाव में ही लगी रही,।
सरकार विश्वासपात्र विधायकों को लगातार लाभ देने और मनाने, की कोशिश में ही लगी रही तथा विरोधी विधायकों के साथ उनका रवैया दोस्ताना नहीं रहा । जिससे विधायकों के बीच दूरियां लगातार बनी रही और पार्टी की एकता छिन्ह बिन्ह नजर आई।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि श्री अशोक गहलोत, जिनकी छवि एक गांधीवादी नेता के रूप में है ,उनके द्वारा, सचिन पायलट के विरुद्ध जिस प्रकार के, शब्दों का इस्तेमाल किया गया, उसे ,उनकी छवि का अनुरूप नहीं माना जा सकता । कई बार अशोक गहलोत के द्वारा मर्यादित भाषा का इस्तेमाल नहीं किया गया ।

गत 5 वर्षों में गहलोत सरकार के द्वारा ,राजनीतिक नियुक्तियां अपेक्षा अनुसार नहीं की गई किसी भी नगर विकास न्यास में राजनीतिक नियुक्तियां नहीं की गई ।यूआईटी द्वारा आम जनता के हित में काफी कार्य किया जा सकते थे और राजनीतिक नियुक्ति होने पर पार्टी की नीति को आम जनता तक पहुंचाया सकता था ,जिसका पार्टी लाभ नहीं उठा सकी। इसके अलावा सरकार द्वारा, जहां-जहां राजनीतिक नियुक्तियां की गई वहां पर भी उन्हें पर्याप्त अधिकार, नहीं दिए गए, तथा नौकरशाही द्वारा राजनीतिक बोर्ड और निगमो में नियुक्त राजनीतिक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से काम करने नहीं दिया ।यह सब बिना मुख्यमंत्री के निर्देशों ,के संभव नहीं था। नौकरशाही हावी होने के कारण राजनेता जन अपेक्षा के अनुरूप कार्य नहीं कर पाए ।

गहलोत सरकार के 5 सालों के कार्यकाल में, आरपीएससी परीक्षाओं में धांधली और पेपर आउट होने की घटनाओं ने युवा वर्ग को बहुत निराश किया । इससे न केवल ,युवा वर्ग में, अपितु उनके परिवारों में भी ,राज्य सरकार के प्रति आक्रोश है, जिसका खामियाजा आगामी चुनाव में भुगतना पड़ सकता है ।

गत 5 वर्षों में लगभग ,प्रतिदिन ही कोई ना कोई अधिकारी / कर्मचारी ,भ्रष्टाचार निरोधक विभाग द्वारा पकड़ा गया है । इससे यह लग रहा है कि ,राज्य में भ्रष्टाचार किस हद तक हावी था ।दैनिक रूप से भ्रष्टाचारियों को पकड़ने के के बावजूद ,सरकार में, भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ ।राज्य सरकार लगातार जल जीवन मिशन ,कोयला आपूर्ति ,विभिन्न भर्तियों में भ्रष्टाचार आदि घटनाओं से घिरी रही, जिससे भ्रष्टाचार मुक्त, शासन देने का उनका वादा झूठा साबित हुआ ।

गत पांच वर्षों में गहलोत सरकार में, अनुशासन की कमी देखी गई । सरकार के कई मंत्री अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़े करते रहे तथा राज्य सरकार की नीतियों का विरोध करते रहे। कई मंत्री तो नौकरशाही के हस्तक्षेप से परेशान हो गए है, और सार्वजनिक मंच से अपनी कुंठा लगातार व्यक्त करते रहे।
उपरोक्त बातों से यह लग रहा है कि कांग्रेस को इन चुनाव में उपरोक्त बातों का जनता को जवाब देना होगा जिसका जवाब ,उनके पास नहीं है ।

भारतीय जनता पार्टी — भारतीय जनता पार्टी, विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है तथा एक अनुशासित पार्टी के रूप में जानी जाती है ।इस पार्टी के पास नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसा चेहरा नेतृत्व करने के लिए है ।लेकिन इस चुनाव में जिस प्रकार, भाजपा द्वारा अन्य दलों के छोटे-मोटे नेताओं या जातिगत प्रभाव वाले नेताओं को भाजपा में शामिल कराकर टिकट दिए जा रहे हैं, उससे लग रहा है कि ,भाजपा इस बार केंद्रीय नेतृत्व अथवा अपनी लोकप्रिय योजनाओं के दम पर इन चुनाव में लड़ने नहीं जा रही ,अपितु स्थानीय चहरों और जातिगत समीकरण, को आधार मानकर चुनाव मैदान में उतारने का मन बना चुकी है ।
गत 5 वर्षों में राजस्थान में पार्टी स्थानीय नेतृत्व को आगे नहीं बढ़ा पाई , समय-समय पर सतीश पूनिया, राजेंद्र सिंह राठौर, गजेंद्र सिंह, दिया कुमारी ,अर्जुन मेघवाल ,गुलाबचंद कटारिया आदि चहरों को आगे बढ़ने का प्रयास कर चुकी है ,किंतु किसी एक नाम पर लंबे समय तक विश्वास नहीं किया । पार्टी द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को अलग-थलग करने कोशिश की गई ,लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव के लिए जारी उम्मीदवारों की सूची को देखने से लग रहा है ,कि पार्टी द्वारा श्रीमती राजे, को इग्नोर करना संभव नहीं है , उनके गुट के कई नेताओ को उम्मीदवार बनाया गया है ।आलाकमान और श्रीमती वसुंधरा राजे के बीच अनबन की खबरें ,लगातार, आ रही थी ,लेकिन श्रीमती राज्य ने अपनी राजनीतिक समझ से बिना विवाद बङाये आलाकमान को अपना महत्व समझा दिया। हालांकि ,यह है समझौता अंतरिम है या स्थाई ,यह भविष्य ही बता पाएगा ।क्योंकि लोकसभा के चुनाव के बाद “श्रीमती वसुंधरा राजे” को इतना ही महत्व ,मिल जाए; इस बात की संभावना कम ही है।
जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी ने सात सांसदों ,को चुनाव मैदान में उतारा है ,उससे भाजपा की चिंता, समझ में आ रही है। हालांकि सभी पार्टिया ,येन -केन प्रकारेण, सत्ता में आने का प्रयास करती ही हैं ,लेकिन भारतीय जनता पार्टी द्वारा ,इस बार जिस प्रकार के समझौते किए जा रहे हैं ;वह आश्चर्यजनक है। क्योंकि ;पूर्व में पार्टी द्वारा ,यह कहा गया था कि जिताऊ और टिकाऊ उम्मीदवारों को ही टिकट दिया जाएगा ,70 वर्ष से अधिक आयु वाले उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया जाएगा तथा लगभग 70% नए चहरो को टिकट दिया जाएगा। अब पार्टी द्वारा इन सभी बिंदुओं ,पर समझौते किए गए हैं। अन्य दलों से आने वाले नेताओं, को टिकट दिया गया है । गत चुनाव में, पार्टी छोड़कर बगावत कर, चुनाव लड़ने वालों ,को पुन: पार्टी में शामिल करते हुए, उनको टिकट दिया गया है। इसी प्रकार ,कुछ, रिटायर्ड नौकरशाओं को भी टिकट दिया गया है ।इसका असर यह पड रहा है कि भाजपा का मूल कार्यकर्ता बहुत निराश है ; उसका मानना है कि ,जिन लोगों ने पार्टी के लिए ,समर्पण भाव से काम किया है, उनकी पार्टी में कोई इज्जत नहीं है; बगावत करने वाले तथा अन्य दलों से आने वाले व्यक्तियों को पार्टी वरीयता दे रही है ।इससे निराश होकर ,पार्टी से बगावत करने वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है ।
जिस दिन से ,पार्टी द्वारा अपने उम्मीदवारों की घोषणा की गई है, उसे दिन से ही लगभग सभी सीटों पर पार्टी कार्यकर्ताओं में नाराजगी है ,यह नाराजगी बगावत की सीमा तक जा सकती है। कई ऐसे भी कार्यकर्ता बगावत कर रहे हैं जिनकी पृष्ठभूमि संघ से है तथा जिन्होंने पार्टी का हमेशा तन मन धन से साथ दिया है तथा पार्टी के हर कार्यक्रम में अपना योगदान दिया है , ऐसे कार्यकर्ता भी अब बगावत पर उत्तर आए हैं। कुछ ऐसे भी कार्यकर्ता बगवत कर रहे हैं जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की द्वितीय वर्ष, परीक्षा भी पास कर चुके हैं ।
हालांकि इतने बड़े संगठन में बगावत होना , अप्रत्याशित नहीं है ,लेकिन समय रहते , बगावत को कंट्रोल नहीं किया गया तो ,पार्टी को गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है । यदि ये बगावती चेहरे ,दो-तीन प्रतिशत मतों ,को बिगाड़ने में सफल हो गए तो ,चुनाव की गणित बिगड़ सकती है। भाजपा के कुछ बगावती मिलकर, एक नया दल भी बना सकते हैं ।

कुल मिलाकर आगामी चुनाव बहुत दिलचस्प होने वाले हैं मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा तथा धनबल और बाहुबल का उपयोग भी बढ़ने की संभावना है। हर सीट पर स्थानीय समीकरण अपना प्रभाव डालेंगे ।।

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