जनता पर भारी पड़ रही नेताओं की लापरवाही
राजनेताओं की लापरवाही लोगों पर भारी पड़ रही है, इसकी एक मिसाल सामने आई है। पश्चिम बंगाल, असम सहित पांच राज्यों में नेताओं ने जमकर कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ाई और अब इन्हीं राज्यों में कोरोना बेकाबू हो गया है। रोजाना संक्रमित मरीजों की गिनती बढ़ रही है। विडंबना यह है कि यहां रैलियां उस वक्त हुई जब कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने की संभावना स्पष्ट नजर आ रही थी। मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिला अस्पताल में भी एक लापरवाही का मामला सामने आया है, जहां कोरोना से संक्रमित एक मरीज की ऑक्सीजन मशीन वार्ड बॉय ने हटा दी। ऑक्सीजन की कमी के चलते उन्होंने तड़प-तड़पकर बेटे के सामने ही बिस्तर पर दम तोड़ दिया।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राजनीतिक रैलियों के साथ पश्चिम बंगाल में 420 प्रतिशत, असम में 532 प्रतिशत और तामिलनाडु 160 प्रतिशत मामले बढ़े हैं। मृत्यु दर में 45 प्रतिशत बढ़ौतरी हुई है। सत्ता के लालच में चूर हुए नेता यह भूल गए थे कि कोरोना अभी गया नहीं। पार्टियों ने एक-दूसरे से अधिक इक्ट्ठ करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया। दु:खद बात यह है कि जो नेता विगत वर्ष लॉकडाउन में लोगों को सावधानी बरतने के लिए हाथ जोड़कर अपीलें कर रहे थे, वही नेता हजारों, लाखों की भीड़ में भाषण देते नजर आए। बिहार विधान सभा चुनावों के दौरान भी यही सब कुछ घटित हुआ। राजनीतिक दलों ने अपने रोड़ शो पर भारी भीड़ की तस्वीरें अपने अधिकारित सोशल मीडिया अकाउंट्स पर भी शेयर की।
यही दृश्य कोरोना के कारण सबसे अधिक मृत्यु दर वाले राज्य पंजाब में देखने को मिला, जब फरवरी महीने में हुए निकाय चुनावों में सभी राजनीतिक दल जुटे हुए थे। सड़कों पर मास्क न पहनने वालों के चालान काटने वाली पुलिस ने किसी भी पार्टी के नेता को हाथ तक नहीं लगाया। पंजाब में शिरोमणी अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल एक-दो रैलियां करने के कोरोना संक्रमित हो गए तो पार्टी ने तुरंत रैलियां करने पर रोक लगा दी। अब पंजाब में रोजाना मेयर/प्रधानों के चुनावों को लेकर इक्ट्ठ हो रहे हैं। हालांकि कई राज्यों में रात को कर्फ्यू लगाया गया है। यह काफी हैरतपूर्ण है कि कोरोना भी बुद्धिमान है, जो नेताओं की भीड़ को कुछ नहीं कहता लेकिन रात को फैल रहा है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि सत्ता व पदों के दौर में लोगों के स्वास्थ्य से जमकर खिलवाड़ हो रहा है। उनकी जिंदगी से खेला जा रहा है। हम पहले ही उस देश के नागरिक हैं जहां सावधानियां रखने के लिए जनता को सख्ती से समझाना पड़ता है, ऊपर से राजनीतिज्ञ भी लापरवाह हो जाए फिर तो भगवान ही रक्षक है। बढ़ रहे कोरोना मामलों के मद्देनजर स्कूली परीक्षाएं रद्द करना तो दरुस्त कदम है लेकिन कोरोना के लिए सावधानियां लागू करने के लिए केवल शिक्षा ही एकमात्र क्षेत्र नहीं है। नेताओं पर भी बराबर नियम लागू होने चाहिए।