श्री जगदीप धनखड़ का इस्तीफा एक राजनीतिक चर्चा : लेख दीप प्रकाश माथुर पूर्व आर.ए. एस.
गौरव रक्षक/लेख : दीप प्रकाश माथुर पूर्व आर. ए. एस.
23 जुलाई 2025,
पूर्व आरएएस अधिकारी दीप प्रकाश माथुर ने उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर अपने विचार प्रकट किए ,यह राजनीतिक चर्चा उनकी स्वयं की कलम से है ।
भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीश धनखड़ ने दिनांक 21 जुलाई 2025 को अचानक इस्तीफा दे दिया। यह घटना ,अचंभित, करने वाली थी। क्योंकि श्री धनकड द्वारा उपराष्ट्रपति के रूप में ,उनके, अगले दो दिन के, कार्यक्रम जारी कर दिए थे ,और कहीं भी, यह आभास नहीं हो रहा था, कि वह इस्तीफा देने वाले हैं।
हालांकि इस्तीफा देने का मुख्य कारण या एकमात्र कारण, उन्होंने ,अपने गिरते स्वास्थ्य को बताया है। किंतु प्रथम दृष्टया ,यह बात स्वीकार्य होने लायक, नहीं लगती, क्योंकि ,उन्होंने दिनभर, “राज्यसभा सचिवालय” में बैठ कर कर अपने दैनिक कार्य पूर्ण किए हैं तथा दिन में राज्यसभा की कार्यवाही मे सभापति के रूप में संचालन भी किया है। हालांकि ,उनका स्वास्थ्य, पिछले कुछ समय से सही नहीं चल रहा ,लेकिन, ऐसी स्थिति भी नहीं मानी जा सकती थी कि, वह अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा नहीं कर पा रहे हो। क्योंकि उनको लगातार, सक्रिय देखा गया है तथा देश के ,विशेष कर राजस्थान के निरन्तर दौरे कर रहे थे ।अपने कार्यक्रमों में उनकी, भाषण शैली बहुत अच्छी रही है ,विशेष कर वह जो बात कहना चाहते थे, उसे उन्होंने ,बहुत ही प्रभावी रूप से व्यक्त किया है। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि गिरते स्वास्थ्य के कारण उन्होंने इस्तीफा दिया हो। स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां,देश केअन्य नेताओं को भी है और वह अभी जिम्मेदार पदों पर कार्य कर रहै हैं ,कुछ का स्वास्थ्य तो इनसे भी खराब है। श्री धनखड़ के इस्तीफे से कई प्रकार की चर्चाओं को बल मिला है। हालांकि सही बात केवल श्री धनकड को ही मालूम है। इसके तात्कालिक कारण, कुछ भी हो सकते हैं ,जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ लाये गए “महाभियोग प्रस्ताव” पर उनकी सक्रियता या किसी वरिष्ठ मंत्री के साथ किसी बिंदु को लेकर मतभेद या उनकी बेबाकी। लेकिन यह बात सही है कि उनके इस्तीफे के बाद सत्तारूढ गठबंधन के नेताओं, की तरफ से कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं आई है ,और राज्यसभा सचिवालय की तरफ से भी उन्हें विधिवत विदाई नहीं दी गई तथा उनका विदाई भाषण भी नहीं हुआ। इससे इस कयास को बल मिलता है कि सत्तारूढ़ गठबंधन और श्री धनकड के बीच सब कुछ सामान्य नहीं था। सरकार यह मानस बना चुकी थी कि श्री धनकड तुरंत कार्य मुक्त हो जाएं। किसी भी राजनीतिक दल के लिए ,संगठन ,चलाने के लिए दो तरह के कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। एक वह जो पार्टी की नीति रणनीति तय करें ,दूसरा वह जो पार्टी के विचारधारा का प्रचार कर सके जिसे सामान्य भाषा में प्रचारक भी कह सकते हैं ।
प्रचारक को पार्टी की विचारधारा का प्रचार करने का ही अधिकार होता है। उसे अपने विचार प्रकट करने का अधिकार नहीं होता। इसे ही अनुशासन कहते हैं। जब कोई प्रचारक ,”विचारक” बनने की कोशिश करता है ,तो शीर्ष नेतत्व की नजरों में खटकने लगता है।
देश की वर्तमान हालात में इस समय दो उदाहरण दिए जा सकते हैं ,श्री शशि थरूर और श्री जगदीप धनकड। इन्होंने अपने विचारों को, स्वतंत्र रूप से प्रकट करने की कोशिश की, या दलगत, “विचारधारा” से अलग हटकर अपने विचारो को प्रकट किया जो शीर्ष नेतृत्व की नजरों में खटकने लगे ।
पूर्व में भी कई ऐसे नेता हुए हैं जिन्होंने पार्टी लाइन से हटकर ,अपने विचार प्रकट किये, और उन्हें पार्टी द्वारा बाहर का रास्ता दिखाया गया। श्री शत्रुघ्न सिन्हा, श्री नवजोत सिंह सिद्धू, श्री अशोक चौहान, श्री हेमंत शर्मा विश्वास, श्री ज्योतिराव सिंधिया, श्री यशवंत सिन्हा, आदि ऐसे उदाहरण माने जा सकते हैं। जिन्होंने प्रचारक की भूमिका से हटते हुए “विचार”क की भूमिका अपनाई जिसे शीर्ष नेतृत्व अपने लिए चुनौती समझ बैठा।
श्री जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से विभिन्न दलों में प्रचारक अपने विचार प्रकट करने से पूर्व कई बार सोचेंगे। हालांकि लोकतंत्र में किसी भी राजनीतिक दल के लिए दो सबसे प्रमुख आवश्यकताएं होती हैं ,पहली विचारधारा और दूसरा अनुशासन। विचारधारा तय करने का काम शीर्ष नेतृत्व करता है साथ ही शीर्ष नेतृत्व यह भी अपेक्षा करता है कि कोई भी कार्यकर्ता “विचारधारा” के विरुद्ध अपने विचार सार्वजनिक तौर पर प्रकट नहीं करें ।यही पार्टी का अनुशासन कहलाता है ।
लेकिन कभी-कभी कार्यकर्ता को लगता है कि उसे अपने स्वयं के विचार प्रकट करने चाहिए तो वह “प्रचारक” की अपनी भूमिका को छोड़कर “विचारक” बन जाता है और शीर्ष नेतृत्व इसे अनुशासनहीनता मानते हुए, उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देती है। इसे संगठन विरोधी भी मानते हैं। इस कारण प्रचारक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित हो जाती है। यह ट्रेन्ड सभी दलों में देखने को मिल रहा है।
अभी हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रंप ने ने श्री एलन मस्क को अपने स्वतंत्र विचार प्रकट करने के कारण अपनी टीम से हटा दिया।
कई बार राजनीतिक दलों के लिए यह आवश्यकता हो जाता है कि वह कार्यकर्ताओं के विचारों को प्रकट करने की आजादी को सीमित करें। लेकिन स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा के लिए इसे सही नहीं ठहराया जा सकता ।
सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता जब अपने विचार प्रकट करेंगे तो शायद संगठन को भी मजबूती मिलेगी और उन्हें अपनी नीति निर्धारण करने में व्यापक दृष्टिकोण मिल सकेगा। इस दिशा में सभी राजनीतिक दलों को विचार करना चाहिए।
श्री जगदीश धनकड के इस्तीफे से इस संबंध में व्यापक चर्चा का माहौल बना है ,इस पर स्वस्थ चर्चा आवश्यक है ।