न्यायालयों की प्राथमिकता अथवा विवशता न्याय में देरी आम आदमी की परेशानी

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रिपोर्ट- एडवोकेट राजेन्द्र कचोलिया (नोटरी पब्लिक भारत सरकार)

जैसा कि हम इन दिनों देख रहे हैं राजस्थान उच्च न्यायालय में विधायकों की सदस्यता को लेकर प्रतिदिनसुनवाई हो रही है उससे लगता है कि हमारे देश की न्याय व्यवस्था न्याय करने के लिए बहुत तत्पर है। किंतु जब हम न्यायालय में लंबित प्रकरणो को देखते हैं तब लगता है कि वर्षों से लंबित प्रकरणों को न्यायालय प्राथमिकता नहीं देता है कि हमारी न्याय व्यवस्था में कई मामलों कीतुरंत सुनवाई हो जाती है किन्तु भ्रष्टाचार गबन देशद्रोह आतंकवाद बलात्कार आदि के कई मुक़दमे वर्षों लंबित रहते हैं कई बार तो महत्वपूर्ण गवाह भी ज़्यादा गंवाही देने से मुकर जाते हैं अथवा पक्ष द्रोही हो जाते हैं अथवा उनकी मृत्यु हो जाती है जिससे कई अपराधी संदेह का लाभ लेकर छूटजाते हैं मुकदमों के सालों चलने के कारण जनता का न्याय व्यवस्था में विश्वास कम होता जा रहा है गत कुछ समय से देखने में आ रहा है कि अपराधियों की सुनवाई न्यायालय द्वारा अर्धरात्रि मैं भी की जा रही है। भोपाल गैस त्रासदी का मुक़दमा वर्षों से लंबित है निर्भया बलात्कार प्रकरण में न्यायालय द्वारा कई बार सुनवाई करके अंतिम निर्णय आने में काफ़ी समय लगाया इसी प्रकार राम मंदिर प्रकरण कई पीढ़ियों की लड़ाई के बाद निर्णय आया है ऐसे महत्वपूर्ण प्रकरण
लंबित रह जाते हैं तबन्यायपालिका की भूमिका पर आम जनता सोचने को मजबूर हो जाती है हम आशा करते हैं कि जिस तेज़ी से विधायकों के मामले में न्यायालय सुनवाई कर रहा है उसे तेज़ी से अन्य मामलों का भी निस्तारण हो ताकि आम जनता को सही न्याय जल्दीमिल सके और भारतीय न्यायपालिका पर आम जनता का विश्वास और बढ़ै।

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