“न्याय की राह पर अडिग, आम जनता को उनका हक दिलाकर रहेंगे” — एडवोकेट हेमेंद्र शर्मा ,यूआईटी की लॉटरी प्रक्रिया के आवंटन पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक…

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“न्याय की राह पर अडिग, आम जनता को उनका हक दिलाकर रहेंगे” — एडवोकेट हेमेंद्र शर्मा

यूआईटी की लॉटरी प्रक्रिया के आवंटन पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक…

गौरव रक्षक / पंकज आडवाणी

भीलवाड़ा, 12 नवम्बर 2025

राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर की खंडपीठ — माननीय न्यायमूर्ति डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह भाटी एवं माननीय न्यायमूर्ति अनूरूप सिंघी — ने भीलवाड़ा नगर विकास न्यास (यूआईटी) की विवादित 3081 भूखंड लॉटरी प्रक्रिया के आवंटन पर रोक लगा दी है। यह जनहित याचिका एडवोकेट हेमेंद्र शर्मा, समाजसेवी राघव कोठारी और पवन त्रिपाठी द्वारा एडवोकेट नमन मोहनोत के माध्यम से दायर की गई।

अदालत में बताया गया कि भीलवाड़ा यूआईटी ने फॉर्म ऑफलाइन स्वीकार किए, लेकिन बिना किसी पूर्व सूचना के लॉटरी को ऑनलाइन सॉफ्टवेयर से निकाल दिया, जिससे पारदर्शिता पर गहरा सवाल उठा। निर्धारित 10 प्रतिशत वेटिंग लिस्ट जारी नहीं की गई, जबकि नियमों में इसका स्पष्ट उल्लेख था। यह भी सामने आया कि यूआईटी के तत्कालीन प्रभारी अधिकारी ने अपने परिजनों को लाभ पहुंचाया, जिससे हितों के टकराव की गंभीर स्थिति बनी। कई प्रभावशाली और संपन्न परिवारों को एक से अधिक प्लॉट भी आवंटित किए गए। जो पारदर्शिता व निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत का ध्यान इस ओर भी दिलाया कि लॉटरी प्रक्रिया में उपयोग किया गया सॉफ्टवेयर न तो प्रमाणित था, न ही उसका कोई सुरक्षा ऑडिट किया गया। सॉफ्टवेयर के डेवलपर, सर्वर लोकेशन और तकनीकी विवरण सार्वजनिक नहीं किए गए, जिसके कारण डेटा में छेड़छाड़, पहले से फीड किए गए नाम और मैनुअल हस्तक्षेप की आशंका मजबूत हुई। कई सफल आवेदकों की ITR, TDS, Form-16 और बैंक विवरण में गंभीर विसंगतियाँ मिलीं, जिससे यह संकेत मिला कि कुछ आवेदकों ने पात्रता प्राप्त करने के लिए जानबूझकर गलत आय दिखाई। आरक्षण श्रेणियों में ऐसे नाम भी पाए गए जो संबंधित वर्ग से नहीं थे, जिससे सॉफ्टवेयर की विश्वसनीयता संदिग्ध हुई। कुछ आवेदकों ने दस्तावेज़ों में मामूली बदलाव कर दो-दो प्लॉट प्राप्त किए। अलग-अलग योजनाओं के लिए अलग फॉर्म और शुल्क जमा कराने के बावजूद भीलवाड़ा यूआईटी ने सभी योजनाओं की लॉटरी एक क्लिक में निकाल दी, और कई लोगों को गलत योजना में आवंटन हुआ, जो तकनीकी विफलता को दर्शाता है।

एडवोकेट नमन मोहनोत ने बताया कि पूरी लॉटरी प्रक्रिया राजस्थान अर्बन इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट (डिस्पोज़ल ऑफ अर्बन लैंड) रूल्स, 1974 के नियम 10 और 26 के विपरीत संचालित की गई थी। मामला CW/21943/2025 के रूप में दर्ज हुआ। प्रारंभिक सुनवाई के बाद माननीय उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार और यूआईटी भीलवाड़ा को नोटिस जारी करते हुए संपूर्ण आवंटन प्रक्रिया पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जांच लंबित रहने तक कोई नया आवंटन, कब्जा पत्र या लीज़ डीड जारी नहीं की जाएगी। यह आदेश भीलवाड़ा के सैकड़ों आवेदकों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है, जो लंबे समय से लॉटरी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे थे।

जनता ने जताया आभार

स्थानीय जनता ने इस मामले में साहसपूर्वक आगे आने वाले एडवोकेट हेमेंद्र शर्मा, राघव कोठारी और पवन त्रिपाठी के प्रति आभार व्यक्त किया और उनका धन्यवाद ज्ञापित किया। जनता ने आश्वस्त किया कि वे इस न्यायिक संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर उनके साथ खड़े रहेंगे और न्याय की दिशा में उठाए हर कदम में उनका पूर्ण सहयोग देंगे।

आमजनता को उनका हक दिलाकर रहेंगे: एडवोकेट हेमेंद्र शर्मा

संपूर्ण लॉटरी प्रक्रिया शुरुआत से ही संदेहास्पद है और प्रशासन जनप्रतिनिधियों और सरकार पर हावी है जो कि सरकार का फैलियर दर्शाता है। यूआईटी के अधिकारीयों द्वारा बंदरबाट कर आपस में रेवड़ियों बांट ली गई और आमजन जिसको इस योजना का फायदा मिलना चाहिए था उसे कुछ नहीं मिला, उनके हक और अधिकारों की लड़ाई के लिए हम सड़क से लेकर उच्चतम न्यायालय तक लड़ाई जारी रखेंगे।

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