जनसरोकार की मिसाल बने भीलवाड़ा कलेक्टर जसमीत सिंह संधू सरलता, संवेदनशीलता और मुस्कान से जीता आमजन का दिल”

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जनसरोकार की मिसाल बने भीलवाड़ा कलेक्टर जसमीत सिंह संधू
सरलता, संवेदनशीलता और मुस्कान से जीता आमजन का दिल”

गौरव रक्षक/ राजेन्द्र शर्मा

भीलवाड़ा 14 जुलाई 2025,
राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में अक्सर अफसरशाही और आमजन के बीच दूरी की चर्चा होती है, लेकिन भीलवाड़ा जिले के कलेक्टर जसमीत सिंह संधू इस धारणा को हर दिन अपने व्यवहार से झुठलाते हैं। उनकी कार्यशैली, संवेदनशीलता और आत्मीय संवाद ने उन्हें आम लोगों के दिलों में विशेष स्थान दिलाया है।
आज की जनसुनवाई एक बार फिर इसका प्रमाण बनी, जब जिला कलेक्टर श्री जसमीत सिंह संधू अपने कार्यालय में जनता की समस्याएं सुन रहे थे। कार्यालय परिसर में कई जरूरतमंद नागरिक अपनी-अपनी अर्जियों के साथ उपस्थित थे। कुछ के मन में संकोच था, तो कुछ के मन में यह चिंता कि इतने बड़े अधिकारी से बात कैसे होगी? क्या हमारी बात सुनी जाएगी?
लेकिन जैसे ही श्रीमान संधू ने लोगों को एक-एक करके बुलाना शुरू किया, माहौल पूरी तरह बदल गया। हर वह व्यक्ति जो कलेक्टर कक्ष से बाहर निकलता, उसके चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान और विश्वास दिखाई देता।

जब शिक्षिका भी हो गईं भ्रमित…

जनसुनवाई के दौरान एक दिलचस्प और हास्यप्रद घटना भी देखने को मिली, जिसने माहौल को हल्का-फुल्का बना दिया। एक महिला शिक्षिका अपनी समस्या लेकर आईं। श्री संधू ने हमेशा की तरह उन्हें गंभीरता से सुना और समाधान का आश्वासन दिया। जब वे जाने लगीं तो उन्होंने सहजता से पूछा— “मैं कलेक्टर साहब से मिल लूं?”

इस पर मुस्कुराते हुए श्री संधू बोले— “मैं ही कलेक्टर हूं।”

इतना सुनते ही पूरा कमरा ठहाकों से गूंज उठा, और शिक्षिका खुद भी हँस पड़ीं। यह दृश्य न केवल प्रशासन की गंभीरता का, बल्कि एक मानवीय चेहरे की झलक भी थी, जो आज के प्रशासन में अक्सर दुर्लभ हो गया है।

जनता का विश्वास बढ़ा

लोगों का कहना है कि श्री संधू जैसे अधिकारी यदि हर जिले में हो जाएं तो जनता न केवल प्रशासन पर भरोसा करेगी, बल्कि बिना डर और झिझक के अपनी बात कह भी सकेगी। भीलवाड़ा के लोग भाग्यशाली हैं कि उन्हें ऐसा अधिकारी मिला जो ना केवल अपना कार्य पूरी निष्ठा से करता है, बल्कि आम आदमी की भावनाओं को भी गहराई से समझता है।
“क्या मैं कलेक्टर साहब से मिल लूं?” — इस भोले प्रश्न ने अफसरशाही के भारी दरवाज़े पर आत्मीयता की हल्की सी दस्तक दी, जिसे सुनकर हर चेहरा मुस्कुरा उठा।
भीलवाड़ा कलेक्टर जसमीत सिंह संधू: आठ महीनों में प्रशासनिक दक्षता और जनसेवा का नया मानक स्थापित
जनता के दिलों में बसने वाला नाम बन चुके हैं श्री संधू, आमजन में है गहरा विश्वास और आत्मीयता का भाव,
प्रशासनिक सेवाओं में अक्सर वर्षों लग जाते हैं जनता का विश्वास जीतने में, लेकिन राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में पदस्थ जिला कलेक्टर श्री जसमीत सिंह संधू ने मात्र 8 से 10 महीनों में अपने कार्यों और व्यवहार से वह मुकाम हासिल कर लिया है, जो कई बार दशकों में भी कठिन होता है।
कलेक्टर श्री संधू की कार्यशैली, निर्णय लेने की गति, जवाबदेही और जनसुनवाई की पारदर्शिता ने आमजन का दिल जीत लिया है। चाहे बात आपदा प्रबंधन की हो, राजस्व मामलों की हो या फिर जरूरतमंदों की सहायता की—श्री संधू हर मोर्चे पर सक्रिय, संवेदनशील और जनहितैषी नजर आए हैं।

काम से पहचान, व्यवहार से अपनापन

भीलवाड़ा जिला आज गर्व से कहता है कि उसके पास एक ऐसा कलेक्टर है जो न केवल कुशल प्रशासक है, बल्कि एक उत्कृष्ट श्रोता और संवेदनशील इंसान भी है। जनसुनवाई के दौरान अक्सर देखने को मिलता है कि लोग पहले असमंजस में रहते हैं, लेकिन श्री संधू से मिलकर बाहर निकलते समय उनके चेहरे पर आत्मविश्वास, संतोष और मुस्कान होती है।
उनके दरवाज़े आम जनता के लिए हमेशा खुले रहते हैं—बिना किसी औपचारिक भय या दवाब के। यही कारण है कि आम नागरिक आज अपने कलेक्टर को एक अफसर नहीं, बल्कि “अपने बीच का अपना आदमी” मानने लगे हैं।

योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन

श्री संधू ने जिले में कई विकास कार्यों को न केवल गति दी, बल्कि गुणवत्ता और पारदर्शिता का विशेष ध्यान रखा। राजस्व विभाग, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला कल्याण, जल प्रबंधन सहित अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उन्होंने योजनाओं को धरातल तक पहुँचाया।
उनके नेतृत्व में भीलवाड़ा जिला शासन की कई योजनाओं के राज्य स्तर पर मॉडल के रूप में उभरा है।

जनता की जुबान पर एक ही नाम

आज भीलवाड़ा के हर गांव, कस्बे और शहर में लोग गर्व से कहते हैं — “हमारे कलेक्टर साहब अलग हैं… वो सुनते हैं, समझते हैं और समाधान भी करते हैं।”

यह कहना गलत नहीं होगा कि श्री संधू ने केवल प्रशासकीय उपलब्धियाँ नहीं गिनी, बल्कि विश्वास की नींव रखी है—जो किसी भी लोकतंत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है।
“प्रशासनिक कुशलता और मानवीय संवेदनशीलता का आदर्श संगम — श्री जसमीत सिंह संधू”
8 महीने में जो भरोसा उन्होंने कमाया, वह कई अफसरों को वर्षों में भी नहीं मिलता।
एक मासूम सवाल, जिसने प्रशासनिक गरिमा को बनाया मानवीय और सजीव!”

रिपोर्टर – राजेंद्र शर्मा अधिस्वीकृत पत्रकार राजस्थान सरकार

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