कोरोना ने खोली राजनैतिक प्राथमिकताओं की पोल ।

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कोरोना ने खोली राजनैतिक प्राथमिकताओं की पोल ।

🔴कोरोना ने जिंदगी छीनी , लेकिन अब सत्ता को भी छीनने को तैयार !

🔴कोरोना ने बदली सियासत की तस्वीर!

🔴महामारी से लड़ने में राजनीतिक दल नही हुए एकजुट !

🔴कई चेहरे हुए बेनकाब, क्या अब उल्टी गिनती शुरू सत्ता की ?

(लेख- पत्रकार प्रीति शर्मा)

“वसुधैव कुटुम्बकम्” सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है, जो उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है । यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है। पर क्या हम इस वाक्य को आत्मसात कर चुके हैं? या जो हमारे कल्याण के लिए संसद में प्रतिनिधि हमारे द्वारा भेजे गए हैं ,वे इस वाक्य का पालन कर रहे हैं ? धरती को तो छोड़ ही दीजिए। क्या भारतवर्ष में “वसुधैव कुटुंबकम” का नजारा आपको कहीं नजर आया क्या? हम एक साथ संकट के वक्त खड़े हुए । इस नीति वाक्य से हम वर्तमान परिदृश्य की ही बात कर लेते हैं । कोरोना महामारी जिसने की पूरे विश्व को 100 साल पीछे ला कर रख दिया , तो भारत भी उसी दौर पर पहुंच गया है। लेकिन भारत के अलावा जो अन्य देश हैं, इस महामारी से जूझने के बाद अपने आप को खड़े करने में जुटे हुए हैं। लेकिन भारत की तस्वीर अलग है । यहाँ महामारी भी सियासत की भेंट चढ़ गई है। कहा जाता है कि जब देश पर संकट आता है , तो सिर्फ देश के बारे में विचार किया जाता है । जब मानवता पर संकट आता है, तो सिर्फ मानवता के बारे में विचार करना चाहिए । लेकिन भारत की तस्वीर खासकर राजनीतिक परिदृश्य से बेहद ही अजीब नजर आई। यहां पर राजनीतिक पार्टियां जिनको की एक साथ होकर कोरोना से लड़ना चाहिए था, वह बयानबाजी में ही जुटी रही। भारत के कोने – कोने में श्मशान घाटों पर लाशों की लंबी कतारें लग गई । लेकिन उस तस्वीर की भयावहता को न तो इस देश की सरकारें देख सकी ,और विपक्ष ने देखा तो वह भी मूकदर्शक ही बनकर रह गया । लेकिन कोरोना महामारी इस अंजाम तक कैसे पहुंची , जिसने भारत की स्थिति को बेहद भयावह और विकट कर दिया । हमें समझना होगा कि आखिर जब कोरोना महामारी को लेकर डब्ल्यूएचओ ने आगाह किया ,उसके बावजूद भी हम लापरवाह बने रहे। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने जब कहा कि फरवरी में दूसरी लहर आ सकती है , फिर भी हम लापरवाह बने रहे। राजनीतिक महत्वाकांक्षा इस कदर हावी हुई थी कि पांच राज्यों में चुनाव करा दिए गए । पश्चिम बंगाल में इस कदर भीड़ उमड़ी मानो कि देश में कोरोना है ही नहीं । जबकि उसी वक्त पश्चिम बंगाल से हटके अन्य राज्यों में कोरोना के मामले आना शुरू हो चुके थे । लेकिन पश्चिम बंगाल में चुनावी घड़ी के बीच ऐसा लग रहा था कि आंकड़े गुम ही हो गए थे। क्या पक्ष क्या विपक्ष दोनों एक दूसरे पर सियासी बाण छोड़ने में लगे हुए थे , तो अन्य राज्यों में स्थिति भयावह होती जा रही थी। जब तक हालात को सुधारने की बारी आई तब तक हालात कंट्रोल से बाहर हो चुके थे । कहने का मतलब की हमारी तैयारी बेहद कमतर थी और महामारी का जो अटैक था वह चौगुना था। हम संभाल नहीं पा रहे थे । चारों तरफ कोहराम की स्थिति चल रही थी, तो राजनीति का जो वर्तमान परिदृश्य हमने देखा वह किसी भी देश के लिए शर्मसार करने वाला हो सकता है । सत्ता पक्ष विपक्ष को लेकर नहीं चल रहा था ,तो विपक्ष तो सत्तापक्ष को घेरने के लिए तैयार ही बैठा था । हाल यह था कि सत्तापक्ष की नाकामी की तस्वीरें विदेशी मीडिया में छाई हुई थी , तो हमारा भारत का मीडिया उस दौरान चुनावी भंवर में फंसा हुआ था। हालांकि मीडिया जागा लेकिन तब तक समुंदर के तूफान की तरह उफान चरम पर था । और उसको रोकना बेहद मुश्किल था। चाहे वह गंगा की तस्वीरें हो जहां पर 100 किलोमीटर तक आपको लाश ही तैरती नजर आई । भारत में यह भी पहली बार हुआ। जबकि श्मशान घाट में लाशों को भी वेटिंग में रखना पड़ा । अब भारत में धीरे-धीरे कोरोना कंट्रोल में है तो राजनैतिक बयानबाजी का दौर फिर शुरू हो चुका है ।फिर वही बयान ,की अगर हम ना होते तो कोरोना कंट्रोल में ना होता । तो दूसरी तरफ तुमने तो कुछ किया ही नहीं इसी तरह के बयान देखने को मिल रहे हैं। भारत में इसके पहले वर्तमान के पहले जब भी विपदा आई है, पक्ष और विपक्ष ने मजबूती के साथ देश का साथ दिया । लेकिन यहां पर कोई साथ देने वाला था ही नहीं । विपक्ष की सत्ता पक्ष सुनने को तैयार नहीं था , तो विपक्ष करता भी क्या ! वह सिर्फ बयानबाजी में ही जुटा रहा। आज भी बयानबाजी का दौर शुरू है । पश्चिम बंगाल के बीजेपी के प्रभारी रहे महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं कि कोरोना चीन की साजिश है , तो मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का बयान आता है कि भारत के लोगों को अब विदेशों में एंट्री नहीं दी जा रही है। और वे तो यहां तक कह जाते हैं कि भारत अब बदनाम हो चुका है । हम राजनीति के उस स्तर पर आ चुके है की जहां पर हम भारत की अखंडता पर ही सवाल उठाने लगे हैं । भारत को ही हम बदनाम देश कहने लगे हैं यह राजनीति का स्तर इसके पहले न देखा गया । पर शुरुआत भी तो वर्तमान सत्ता के इर्द-गिर्द ही घूमती है। वर्तमान सत्ता के पहले अगर हम 7 साल की बात करें तो शायद संसद के अंदर इस तरह की बयानबाजी पहले देखने को नहीं मिली थी । पक्ष और विपक्ष के वार होते थे । लेकिन सादगी के साथ । लेकिन अब मान मर्यादा खत्म सी होती जा रही है ।और सवाल यही उठता जा रहा है कि आने वाले वक्त में देश की तस्वीर क्या होगी।

🔴वैक्सीन पर भी खूब उठे सवाल!

भारत में कोरोना को कंट्रोल करने के लिए वैक्सीन का निर्माण किया गया । हम आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर के पहले हम 55 देशों को भारतीय वैक्सीन दे चुके थे । लेकिन जब हमें वैक्सीन की जरूरत पड़ी तो हम पूर्ति न कर पाए। विपक्ष ने कभी वैक्सीन को मोदी वैक्सीन कहकर दरकिनार किया गया, तो कभी वहीं विपक्ष सवाल उठाता रहा कि हमारी वैक्सीन दूसरों को क्यों दी ! दोनों ही बातों में सवाल यही उठा की हम भविष्य के बारे में विचार नहीं कर पाए । और जब वैक्सीन का महत्व समझ में आया तो विपक्ष ने इसे भी मुद्दा बना लिया ।बहरहाल सियासत में कोरोना लाखों की जान ले गया तो कुछ कोरोना की आड़ में ही सत्ता के सपने भी मन में बैठा चुके । जाहिर सी बात है जनता ने खुली आंखों से वर्तमान सत्ता की तस्वीर भी देखी, जब वह लाचार थे,तो उनके लिए कौन खड़ा हुआ ! यह तस्वीर उनकी आंखों से ओझल नहीं हो रही है , बस यही तस्वीर जो उनके मन में बस गई है ,और भूलती नहीं है । वह वर्तमान सत्ता को भी हिलाने की पटकथा लिख रही है। परिणाम भी दिखे जब पश्चिम बंगाल में सत्ता का सपना संजोए बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा ,तो दूसरे राज्यों में भी जमीन खिसकती नजर आई । उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में भी बीजेपी नंबर दो और नंबर तीन पर खिसक गई। मध्यप्रदेश में भी एक उपचुनाव दमोह में हुआ वहां पर भी बीजेपी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी । तो वहीं उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी अब भूचाल मचा हुआ है । 2022 में चुनाव होने हैं , उसके पहले बीजेपी के बड़े नेता वहां पर बिगड़ती सूरत को सुधारने के लिए रणनीति बना रहे हैं । जाहिर सी बात है जब 2014 की जो तस्वीर दिल्ली में बनी थी और मोदी विश्व पटल पर खुद को साबित करने में जुट गए थे ,उस वक्त उत्तर प्रदेश में ही सबसे बड़ा सहारा उनको उत्तर प्रदेश ने दिया था । और अब 2024 की तस्वीर उत्तर प्रदेश में ही बनेगी । लेकिन उसके पहले विधानसभा चुनाव में अगर सत्ता हाथ से गई तो 2024 भी मुश्किल हो जाएगा । क्योंकि कहा जाता है कि दिल्ली की कुर्सी उत्तर प्रदेश से होकर ही जाती है । लिहाजा जिन्होंने कोरोनावायरस से अपने सगे संबंधियों को खोया , तो वे वर्तमान सत्ता को भी हिलाने की ठान चुके है, ऐसी तस्वीर दिख रही है।

🔴अब एकजुट होने की महती जरूरत है।

अभी भी समय है कि देश के बिगड़े हुए राजनीतिक हालात को पटरी पर लाया जाए । राष्ट्रीय समस्याओं के हल के लिए सभी दल मतभेद भुलाकर एक मंच पर आए । यदि अभी भी नेतागण फ़ुटबॉल की तरह एक दूसरे के पाले में गेंद फेंकने का खेल चालू रखते हैं , तो देश की जनता किस पर भरोसा रखें ।यह प्रश्न हमारे नागरिकों के मन में ज़रूर उठेगा ।कही ऐसा न हो कि देश की जनता आक्रोशित हो बिना किसी के नेतृत्व में नई राष्ट्रीय क्रांति को अंजाम दे दे ।सभी को समझदारी से देश हित में निर्णय लेना होगा यही वक़्त की पुकार है।

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