लॉकडाउन में दो माह से फंसा प्राध्यापकों का वेतन , 

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रिपोर्ट- श्रेयांश शुक्ला

लॉकडाउन में दो माह से फंसा प्राध्यापकों का वेतन ,

जबलपुर।

कोविड-19 के मुश्किल वक्त में जब सरकार निजी संस्थानों से कर्मियों को समय पर वेतन देने की नसीहत दे रही है, वहीं खुद सरकार वेतन देने में हीलाहवाली कर रही है। अनुदान प्राप्त कॉलेजों में लॉकडाउन अवधि के दौरान वेतन नसीब नहीं हुआ है। जबकि कोर्स पूरा करवाने के लिए निरंतर प्राध्यापक विद्यार्थियों को ऑनलाइन पढ़ाई करवा रहे हैं। इतना ही नहीं इनमें एक वर्ग ऐसा भी शामिल है जो पिछले ड़ेढ साल से सिर्फ पढ़ा रहा है, लेकिन वेतन अभी तक नहीं मिला है।

अनुदान प्राप्त कॉलेजों में स्थाई नियुक्ति वाले कर्मियों को शासन स्तर पर वेतन भुगतान किया जाता है। पहले राशि अग्रणी कॉलेजों के माध्यम से कॉलेजों को भेजी जाती थी। अब व्यवस्था को बदलकर सीधे प्राध्यापकों के खाते में राशि डालने की व्यवस्था हो रही है। इस प्रक्रिया में इतना वक्त लगा कि अभी तक वेतन ही नहीं जारी हो सका। लॉकडाउन में जब जरूरत की सामग्री खरीदने के लिए लोग परेशान थे तब प्राध्यापक वेतन नहीं मिलने से अपनी जरूरतों को सीमित करके घर चलाने मजबूर थे। लगातार शासन स्तर पर वेतन के लिए अनुदान जारी होने की खोज खबर होती लेकिन पक्की खबर नहीं मिली। मप्र अनुदान प्राप्त संस्थान के प्राध्यापक संघ अध्यक्ष ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने बताया आवंटन आने की सूचना मिल रही है लेकिन 2 माह से वेतन नहीं मिलने से परेशानी बढ़ी है। प्रदेश में करीब 410 प्राध्यापक हैं। वहीं कर्मचारियों को मिलाकर संख्या हजार के करीब पहुंचती है। जबलपुर शहर में एक सैकड़ा प्राध्यापक और कर्मी हैं जिन्हें वेतन नहीं मिला है।
पढ़ाने की उम्र बढ़ी, वेतन रुका

संघ के प्रदेश अध्यक्ष के अनुसार सुप्रीम कोर्ट से निर्णय के बाद प्राध्यापकों के सेवानिवृत्ति की आयु 62 से बढ़ाकर 65 साल हुई। जिनके 62 साल पूर्ण हो चुके वो कॉलेजों में सेवा दे रहे हैं लेकिन सरकार ने आदेश पर अमल नहीं किया। इससे वेतन भुगतान नहीं हो पा रहा है। बाद में शासन ने संस्था स्तर पर वेतन देने की व्यवस्था करने को कहा, लेकिन संस्था भी इस भार को उठाने तैयार नहीं है।

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