लगभग 10000 वर्ष पूर्व सरस्वती तट पर भार्गव परशुराम हैहय वंशी अत्याचारी राज्य सत्ता के विरुद्ध एकाकी ही सफल अभियान के पृथुन्न नायक बने हुए थे । समस्त पृथ्वी के मानवों को उनकी भौगोलिक ,सामाजिक एवं आर्थिक विभिन्नता एवं विषमता के बावजूद भी एक राष्ट्र एवं संस्कृति के अधीन लाने की अतिवादी विचार धारा लिए पुलस्त्य रावण के समस्त विश्वव्यापी अभियानों के समय भगवतपाद श्री राम महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में वेद ,उपनिषद धर्म शास्त्र एवं क्षत्रियोंचित शस्त्र संचालन विद्या का अध्ययन कर रहे थे। वैवस्वत मनु के द्वारा निर्मित वर्णाश्रम-व्यवस्था धर्म की मर्यादा तथा ऋगवेदिक प्रकृति पूजक सनातनी परंपरा के निर्वहन के महान पाठों को आत्मसात भी कर रहे थे। दूसरी ओर पुलस्त्य रावण ऋतचक्र की व्यवस्था का बलात हरण कर केवल अपने कंधे पर धारित परशु की तीक्ष्ण धार युक्त बलशक्ति के दम पर ही विकसित संस्कृतियों को छिन्न-भिन्न करके अपनी कलुषित एवं अमानवीय रक्ष संस्कृति को सब पर थोप रहा था । नर वंश के विभिन्न समूह यथा देव , दैत्य, दानव, मानव ,गरुड़ ,नाग, यक्ष किन्नर,भूत ,सुर ,असुर,वानर,गन्धर्व इस नवीन संस्कृति के प्रणेता रावण के समक्ष विवश होकर आत्मसमर्पण कर चुके थे । शूलपाणि धुर्जटि शिव का कृपा पात्र होकर रावण शक्ति वासना ,क्रोध एवं प्रतिशोध के वशीभूत होकर बड़ी मानवीय भूल के अधीन भगवती सीता का हरण कर बैठा जिनके उद्धार के अमर गाथा से हर संसारी पूर्व परिचित है ही । प्रश्न यह है कि श्री राम की महानता केवल रावण के सहार में है ? जी नहीं , श्री राम कि महानता रावणवध में नहीं बल्कि नर वंश की सभी संस्कृतियों के सामंजस्य एवं समरसता पूर्ण सह अस्तित्व युक्त राजनीतिक ,धार्मिक एवं सामाजिक धर्म राज्य स्थापित करने की अनन्य योग्यता में है । वे श्री राम अति सहजता से धर्मशास्त्र के लिखित पाठों की अनुपालना सुनिश्चित करते है। नियम एवं पाठ की किसी मर्यादा का भंग न तो स्वयं करते हैं और न किसी को करने ही देते हैं। उनके राज्य के सभी प्राणियों के मध्य समभाव एवं समरसता है। प्रकृति की जन्मजात सहज प्रवृत्ति वर्ग संघर्ष को उन्होंने अपने राज्य ने निष्प्रभावी कर रखा है। उनके अनंत गुण समूहों का गुणगान प्रजा स्वयं अपनी इच्छा से करती हैं । और उनका यह आभामंडल इतना विशाल एवं प्रकाशमान है कि वासना की अनंत सामग्रियों से परिपूर्ण देवराज इंद्र भी उनके आगे नतमस्तक है । समस्त भूमंडल पर उनके लंका अभियान के किस्से सुने सुनाएं एवं मंचन किए जाते है। अवतरण से लेकर सरयू में जल समाधि तक पद पद पर मर्यादा के निर्वहन के लिए अनंत त्याग करते हैं और साथ ही अदम्य संयम का परिचय भी देते है । वे मानव की हर संभावित भूमिका युक्त पात्र के लिए आदर्श है , यथा आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श स्वामी ,आदर्श राजा ,आदर्श मित्र। वे ऋतचक्र की किसी व्यवस्था में अपने प्रबल सामर्थ्य के बावजूद भी हस्तक्षेप नहीं करते है । वे भूमंडल के बहुत बड़े सम्राट हैं परंतु अपने सामान्य नागरिक के असत्य लांछन पूर्ण अपवाद पर भी भगवती सीता का त्याग करने में कोई संकोच नहीं करते। भगवती सीता के प्रति इतना प्रेम और विरह से इतने आहत कि राज महल में भी वनवासी कुटिया सी सुविधा लेकर सीता का प्रतिरूप जीवन जीते जाते जाते हैं , राज्य संचालन का प्राधान्य दायित्व तो साथ है ही। वे धैर्यवान इतने हैं है कि भगवती सीता की संभाव्य मृत्यु को निकट जानकर भी समुद्र तट पर उन्हें मार्ग बताने के लिए तीन दिवस तक स्वयं प्रतीक्षा करते हैं । वे विभीषण के राम है, केवट के भी राम है। वे सीता के भी राम है और वे हनुमान और निषाद के राम है। संपूर्ण सत्य यह है कि श्री राम को किसी लेखनी द्वारा न तो परिभाषित किया जा सकता है और न ही वर्णित । मैं तो केवल पूर्वजों की परम्परा का अनुकरण मात्र कर रहा हूँ । भारत की पुण्य भुमि पर अवतरित हे राम ! ध्यान से निवेदन सुने । आज आपकी पुण्य भुमि फिर से किसी व्यवस्था को नहीं मानने वाले दुर्जनों द्वारा आक्रांत होने जा रही है । शान्ति और मानवता मे विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति के प्राण को खतरा विद्यमान हो गया है । विभिन्न राष्ट्रों के मध्य व्यापारिक प्रतिद्वंदिता के कारण विषाणु जैसे जैविक शस्त्र का उपयोग किया गया है और आपका देश इसका लक्ष्य होकर बड़ी जन धन हानि के मुहाने पर तैयार बैठा है । वर्तमान शासक के आव्हान पर आप मे विश्वास रखने वाले हर मानव ने अपना अपना कार्य योगदान दिया है परंतु संकट अभी तक टला नहीं है । आपकी आगामी जयंती पर पूरे राष्ट्र सहित आपकी चरण वन्दना कर सकूँ ,ऐसा वरदान पाकर अब तृप्त हो सकता हूँ । आशा है कि आप मेरी विनती स्वीकार करेंगे ।
तारा चंद खेतावत ।