तबलीगी जमात और थूक जिहाद

0
15

तबलीगी जमात से कोरोना संक्रमण विस्तार के विषय में लेखन से मेरे जैसे साधारण व्यक्ति सहित किसी भी व्यक्ति पर अनावश्यक रूप से सांप्रदायिक होने का ठप्पा लग सकता है परंतु राष्ट्र के समक्ष उपस्थित राष्ट्रीय विपदा कोरोना महामारी के इस संक्रमण काल में सत्य बात लिखना अपना धर्म समझकर यह लेख आपको प्रस्तुत कर रहा हूं ।

विशुद्ध धार्मिक समूह तबलीगी जमात जो इस्लाम की एक छोटी सी वहाबी धारा मात्र है, ने दिल्ली की कथित निजामुद्दीन मस्जिद में अपना पूर्व प्रस्तावित सम्मेलन किया था जिसमें शामिल कुछ सौ सदस्यों को कल दिल्ली पुलिस प्रशासन द्वारा अपने कब्जे में लिया गया जिनमें कुछ विदेशी भी शामिल है। क्वॉरेंटाइन हेतु बस में इन्हें ले जाते समय उनके द्वारा सड़क और बस में थूकने जैसी घटना सोशल मीडिया एवं न्यूज़ चैनल द्वारा प्रसारित और प्रचारित की जा रही है । आशंका यह जताई जा रही है कि वह थूक के जरिए कोराना विषाणु फैलाने का प्रयास कर रहे थे । कई स्थानों पर इसे ‘थूक जिहाद ‘ का नाम भी दिया जा रहा है। यदि कोरोना संक्रमण के साथ थूकने की गतिविधि को बिना किसी पुख्ता साक्ष्य के सत्य मान लिया जाए तो यह भारतीय लोकतांत्रिक संघ सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती है । यदि बिना कोरोना संक्रमण सड़क या बस में थूकने की भी पुष्टि होती है , तो तत्कालीन रूप से कोई प्रत्यक्ष खतरा न होने के बावजूद एक गंभीर संकेत है कि इन्हें न केवल सामान्य शिष्टाचार हासिल है बल्कि इन्हें इस राष्ट्र ,इसके संसाधन, नियम, विधि एवं व्यवस्था से कोई सरोकार नहीं है। इस प्रकार की विचारधारा वाले मनुष्य भारत सहित विश्व की विभिन्न स्थानों पर किस प्रकार की मजहबी तालीम देते होंगे ,यह भी शोध का विषय है । दिल्ली पुलिस ने एक पुराना वीडियो जारी कर वायरल किया है जिसमें थानाधिकारी तबलीगी जमात के प्रतिनिधियों को सख्त कानूनी कार्रवाई की धमकी देते नजर आ रहे हैं। जो मस्जिद में सदस्यो की उपस्थिति के सम्बन्ध मे है । आश्चर्यजनक परंतु सत्यहै कि थानाधिकारी स्तर के अधिकारी के स्पष्ट निर्देश के बावजूद भी लोक डाउन के दौरान उक्त जमात में शामिल लोग वहीं पर डटे रहे या छुप रहे । आखिर इनका क्या मकसद हो सकता है? पूरे प्रकरण में कहीं पर भी यह एंगल नहीं आया है कि लोक डाउन से पहले या बाद में इस जमात के प्रतिनिधियों ने मरकज में बच गए लोगों को उनके अभीष्ट स्थान पर पहुंचाने की कोई कोशिश की हो । इस हेतु पुलिस प्रशासन ,सोशल मीडिया या केंद्रीय राज्य के किसी सरकारी संस्थान या उपक्रम की मदद ली हो । भारत के किसी भी सामान्य गांव या शहर की किसी गलिया मोहल्ले में कोई पुलिस कॉन्स्टेबल भी आ जाता है तो लोग डर कर उसके हर निर्देश की अक्षरश पालना करते हैं ,फिर इस समाज के प्रतिनिधियों द्वारा शासनादेश की पालना नहीं किए जाने के पीछे क्या रहस्य है? स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात तथा सन 2014 तक एक वर्ग विशेष को मिले विशेष तुष्टिकरण का ही दुष्परिणाम है कि ये राष्ट्र की तत्कालीन आवश्यकता और संदर्भ को दरकिनार कर सरकारी निर्देशों की स्पष्ट अवहेलना करते हुए राष्ट्र को एक गंभीर खतरे की ओर धकेल रहे थे । ईश्वर करें यह खतरा किसी दुष्परिणाम तक नहीं जावे। अब घटना पुरानी होकर समाप्त हो चुकी है। अब मीडिया डिबेट में तर्क और कुतर्क रखे एवं रचे जा रहे हैं। स्वयं की गलती नहीं मानकर अन्य समुदाय के उदाहरण प्रतिरक्षा शुरू दिए जा रहे है ,जिनका कोई आधार एवं औचित्य नहीं है । उक्त असाधारण घटना यह स्पष्ट संकेत देती है कि अपना प्यारा भारतवर्ष एक राष्ट्र के रूप में कितना बिखरा हुआ है , जिसमें एकीकृत होकर राष्ट्रीय आपदा का संयुक्त सामना करने का सामर्थ्य संदिग्ध ही है। संघ सरकार को इस घटना का अविलंब संज्ञान लेकर यथेष्ट कार्रवाई करनी चाहिए।
जय भारत ,जय हिंद ,जय मानवता
ताराचंद खेतावत

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here