वेबकास्टिंग की वीडियो/सीसीटीवी फुटेज साझा करने का मुद्दा…
मतदाता की गोपनीयता से जुड़ी चिंताएं
गौरव रक्षक/राजेंद्र शर्मा
22जून 2025, भीलवाड़ा
कुछ लोग मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग की वीडियो या सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराने की मांग उठा रहे हैं। यह मांग पहली नज़र में मतदाताओं के हित और देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा के नाम पर बहुत उचित और तर्कसंगत प्रतीत होती है, लेकिन वास्तव में इसका उद्देश्य इसके ठीक विपरीत है। यह मांग, जो बाहर से बहुत तर्कसंगत दिखती है, मतदाता की गोपनीयता और सुरक्षा, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 एवं 1951 में वर्णित विधिक प्रावधानों और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के पूर्णतः विरुद्ध है।
सीसीटीवी फुटेज साझा करने से, किसी भी समूह या व्यक्ति द्वारा मतदाताओं की पहचान करना आसान हो जाएगा, जिससे मतदान करने वाले और न करने वाले, दोनों ही मतदाता असामाजिक तत्वों के दबाव, भेदभाव और डराने-धमकाने की कार्रवाई के शिकार हो सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, यदि किसी विशेष राजनीतिक दल को किसी बूथ पर अपेक्षा से कम वोट मिलते हैं, तो वह सीसीटीवी फुटेज के माध्यम से यह आसानी से जान सकता है कि किस मतदाता ने मतदान किया और किसने नहीं किया, और इसके बाद वह उन्हें परेशान या धमका सकता है।
इसलिए, ऐसे व्यक्तियों या हित समूहों की इस मांग के पीछे की असल मंशा को समझना और उजागर करना आवश्यक है।
उल्लेखनीय है कि भारत निर्वाचन आयोग वेबकास्टिंग फुटेज को, जो केवल एक आंतरिक प्रबंधन उपकरण है (कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं), 45 दिनों की अवधि तक सुरक्षित रखता है— जो चुनाव याचिका (EP) दायर करने की समय-सीमा के अनुरूप है। चूंकि परिणाम घोषित होने के 45 दिनों के बाद किसी चुनाव को चुनौती नहीं दी जा सकती, इसलिए उसके बाद इस फुटेज को रखना, गैर-उम्मीदवारों द्वारा दुरुपयोग और भ्रामक प्रचार का माध्यम बन सकता है। यदि 45 दिनों के भीतर कोई चुनाव याचिका दायर की जाती है, तो यह फुटेज नष्ट नहीं की जाती और न्यायालय द्वारा मांगे जाने पर उसे उपलब्ध भी कराया जाता है।
भारत निर्वाचन आयोग के लिए, मतदाताओं के हितों की रक्षा और उनकी गोपनीयता बनाए रखना सर्वोपरि है, भले ही कुछ राजनीतिक दल या हित समूह आयोग पर अपने अनुसार प्रक्रियाओं को बदलवाने का दबाव बनाएं। मतदाता की गोपनीयता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता और भारत निर्वाचन आयोग ने कभी भी इस विधिक एवं संवैधानिक सिद्धांत से समझौता नहीं किया है, जिसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा है।
नीचे कुछ प्रमुख बिंदुओं का उल्लेख किया गया है:
A. मतदान न करने वाले मतदाताओं की गोपनीयता का उल्लंघन:
चुनावों में कुछ मतदाता मतदान नहीं करने का निर्णय ले सकते हैं। यदि मतदान दिवस की वीडियो फुटेज साझा की जाती है, तो ऐसे मतदाताओं की पहचान हो सकती है, जिससे उनका प्रोफाइल बनाना संभव हो जाएगा — किसने मतदान किया और किसने नहीं। यह भेदभाव, सेवा से वंचित करने, डराने या लालच देने का आधार बन सकता है।
B. पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत संघ (2013) 10 SCC 1:
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “मतदान का अधिकार” में “मतदान न करने का अधिकार” भी शामिल है और इस निर्णय का गुप्त रहना भी आवश्यक है।
“मतदान न करने का अधिकार भी मतदाता की अभिव्यक्ति का हिस्सा है, और इसका सम्मान उसी प्रकार किया जाना चाहिए जैसे मतदान करने का।”
“किसी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान न करने का अधिकार देना और उसकी गोपनीयता को सुरक्षित रखना लोकतंत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण है।”
C. वीडियो फुटेज = फॉर्म 17A जैसा:
मतदान दिवस की वीडियो रिकॉर्डिंग यह दिखाती है कि कौन मतदाता कब मतदान केंद्र में प्रवेश करता है — यह जानकारी वैसी ही होती है जैसी फॉर्म 17A (मतदाताओं का रजिस्टर) में होती है, जिसमें मतदाता का क्रमांक, पहचान पत्र का विवरण और हस्ताक्षर/अंगूठे का निशान शामिल होता है। इस फॉर्म को केवल सक्षम न्यायालय के आदेश पर ही दिया जा सकता है (नियम 93(1), चुनाव नियम 1961)। इसी प्रकार वीडियो फुटेज भी केवल सक्षम न्यायालय के आदेश पर ही साझा की जा सकती है।
D. गुप्त मतदान की गोपनीयता का उल्लंघन दंडनीय अपराध है:
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 128 के अनुसार, गुप्त मतदान की गोपनीयता का उल्लंघन करना दंडनीय अपराध है — इसमें तीन महीने तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। इसलिए, भारत निर्वाचन आयोग मतदाता और मतदान की गोपनीयता की रक्षा करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है, और यह वीडियो फुटेज किसी भी व्यक्ति, उम्मीदवार, NGO या तीसरे पक्ष को बिना मतदाता की स्पष्ट सहमति के नहीं दी जा सकती। वेबकास्टिंग आयोग द्वारा केवल प्रबंधन और निगरानी के उद्देश्य से की जाती है। हालांकि, यदि माननीय उच्च न्यायालय में कोई चुनाव याचिका दायर की जाती है और न्यायालय इस फुटेज की मांग करता है, तो आयोग इसे उपलब्ध कराने के लिए तैयार है क्योंकि न्यायालय भी किसी व्यक्ति की गोपनीयता का संरक्षक होता है।