गणगौर महापर्व : गणगौर व्रत गौरी तृतीया के दिन यानी चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को किया जाता है

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गणगौर महापर्व : गणगौर व्रत गौरी तृतीया के दिन यानी चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को किया जाता है
गौरव रक्षक/राजेंद्र शर्मा
भीलवाड़ा 11 अप्रेल ।
गणगौर व्रत इस व्रत का राजस्थान में बड़ा महत्व है। कहते हैं इसी व्रत के दिन देवी पार्वती ने अपनी उंगली से रक्त निकालकर महिलाओं को सुहाग बांटा था। इसलिए महिलाएं इस दिन श्रद्धा भाव से गणगौर की पूजा करती हैं। गणगौर व्रत चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को किया जाता है। इस साल चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि आज 11 अप्रैल को होने से गणगौर व्रत इसी दिन पूरा होगा। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि से जो लोग शिव और गौरी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजा कर रहे हैं। वह चैत्र शुक्ल द्वितीया तिथि यानी 10अप्रैल को अपने घरों से गण यानी भगवान शिव और गौरी की प्रतिमा को नदी, तालाब अथवा सरोवर पर ले जाकर जल पिलाएंगे। फिर तृतीया तिथि को इन्हें विसर्जित करेंगे। ऐसी मान्यता है कि गणगौर का इस तरह से पूजन करने से विवाहित कन्याओं का सुहाग बना रहता है और पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है। कुंवारी कन्याएं भी गणगौर का व्रत रखती हैं, ऐसी मान्यता है कि इस व्रत से मनोनुकूल पति की प्राप्ति होती है।

गणगौर व्रत राजस्थान का एक प्रमुख व्रत है। इस व्रत में महिलाएं गण यानी भगवान शंकर और देवी गौरी की पूजा करती हैं। देवी गौरी ही संसार को सुहाग और सौभाग्य प्रदान करती हैं। इसलिए सुहागन महिलाएं शिव और देवी गौरी की पूजा करती हैं। जबकि कुंवारी कन्याएं देवी गौरी से मनोनुकूल वर की प्राप्ति के लिए गणगौर का पूजन करती हैं। ऐसी मान्यता है कि गौरी तृतीया यानी चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को देवी पार्वती ने संपूर्ण महिलाओं को सौभाग्य का आशीर्वाद दिया था। इसी कारण से महिलाएं सौभाग्य प्राप्ति की कामना से भगवान शिव के साथ देवी गौरी की पूजा करती हैं। इस तरह की भी मान्यता है कि गणगौर की पूजा सबसे पहले देवी पार्वती ने ही की थी। उन्होंने ही भगवान शिव की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की थी और शिव रूप में उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इसलिए महिलाएं शिव और गौरी की पूजा गौरी तृतीया के दिन करती हैं।

गणगौर पूजन विधि

गणगौर यानी भगवान शिव और देवी गौरी की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उन्हें सुंदर वस्त्र पहनाएं। देवी पार्वती को सुहाद सामग्री और ऋंगार की वस्तुएं अर्पित करें। भगवान शिव और देवी गौरी को चंदन, अक्षत, रोली, कुमकुम लगाएं। धूप, दीप, फल, मिठाई का भोग लगाएं और दूर्वा अर्पित करें। एक थाल में चांदी का सिक्का, सुपारी, पान, दूध, दही, गंगाजल, हल्दी, कुमकुम, दूर्वा डालकर सुहाग जल तैयार करें। फिर कुछ दूर्वादल हाथों में लेकर इस सुहागजल को भगवान शिव और देवी गौरी पर छींटें लगाएं। इसके बाद भगवान शिव और देवी गौरी का ध्यान करते हुए इस सुहाग जल को अपने ऊपर छिड़कें। भगवान शिव और गौरी देवी को चूरमे का भोग लगाएं। इसके बाद गणगौर की कथा सुनें।

गणगौर का प्रसाद

गणगौर पूजा का नियम है कि इस पूजा में जो भी प्रसाद अर्पित किया जाता है उसे केवल महिलाएं ही ग्रहण करती हैं। चूंकि यह व्रत सुहाग के लिए होता है इसलिए पुरुषों को इस पूजा का प्रसाद नहीं दिया जाता है। माता गौरी को जो सिंदूर भेंट किया जाता है उससे सुहागन महिलाएं अपनी मांग भरती हैं। कहते हैं कि इससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।_

गुनों के बिना अधूरा गणगौर पूजन

गणगौर पूजन में गुनों का विशेष महत्व बताया जाता है। गुणों को मैदा, बेसन या आटे में हल्दी या पीला रंग मिलाकर तैयार किया जाता है। ये मीठे और नमकीन दोनों तरह के होते हैं। मान्यता है कि, जितने गहने यानी गुने देवी गौरी को चढ़ाए जाते हैं, धन-वैभव भी उतना ही बढ़ता है। गणगौर की पूजा करने के बाद ये गुने व्रती महिलाएं अपनी सास, ननद और जेठानी को दे देती हैं।

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