अबकी बार एक लाइन का प्रस्ताव पास, कांग्रेस हाईकमान बांटेगा टिकट, तेरा क्या होगा राजस्थान के बगावती ? कांग्रेस में गहलोत पायलट की वर्चस्व की लड़ाई निर्णायक मोड़ पर ..

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अबकी बार एक लाइन का प्रस्ताव पास ,कांग्रेस हाईकमान बांटेगा टिकट। तेरा क्या होगा राजस्थान के बगावती ?  कांग्रेस में गहलोत पायलट की वर्चस्व की लड़ाई निर्णायक मोड़ पर ..

गौरव रक्षक/राजेंद्र शर्मा

क्या इस बार होगा राजस्थान में गहलोत युग का अंत और पायलट युग की शुरुआत? अब उसी आलाकमान के पाले में गेंद जिसे दिखाया ठेंगा

सूची जारी होने का समय नजदीक आने से गहलोत पायलट खेमो में मचने लगी खलबली। समर्थकों का सब्र का बांध टूटने के कगार पर।

मुख्यतः तो गहलोत के वफादार सिपहसालारों का टूटने लगा है धैर्य। काटने पड़ रहे दिल्ली के चक्कर । जयपुर कार्यालय सूना। टिकट न मिलने पर क्या होगी रणनीति? होगी बगावत, या कई दिग्गज दिव्या मदेरणा की राह पर चल कर भाजपा में होंगे शामिल, या फिर गहलोत से छिटक कर जा सकते है आलाकमान की शरण मे। जब गहलोत के सर पर नही रखा सोनिया गांधी ने भी हाथ, तब बगावती चेहरों को कैसे दिला सकेंगे टिकट। क्या गहलोत एक बार फिर चलेगा सकेंगे कोई काला जादू !
समर्थकों को अब भी है उम्मीद, गहलोत चला देंगे कोई न कोई चक्कर। सुनील कोनूगोलु या डिज़ाइन बॉक्स्ड सरीखा कोई, यदि गहलोत के विश्वस्तों को पैनल में जगह दे भी दे, तो हाईकमान क्या कर सकेगा माफ?

कांग्रेस के लिए राजस्थान में टिकट वितरण की राह आसान नही है।

गहलोत अपने उन समर्थकों को टिकट दिलाने पर अड़े है, जिन्होंने उनकी सरकार बचाई। उन्हें गहलोत वचन दे चुके है, और उन्हें जिताने की जिम्मेदारी भी लेने को तैयार है। वैसे जनता ऐसे बेलगाम और निरंकुश विधायको को निपटाने की तैयारी करके बैठी है, पर गहलोत एहसान का बदला चुकाने को बेताब है। हर सीट का विश्लेषण उनके पास तैयार है। उनके समर्थक उन्हें ही अपना आलाकमान समझते है, और गहलोत के लिए बगावत तक कर सकते है। ऐसे क्रांतिकारी समर्थकों के हितों की रक्षा के लिए अब गार्जियन गहलोत पूरा जोर न लगाए तो क्या करे?

वैसे डिज़ाइन बॉक्स्ड का सर्वे लीक हो गया और बीजेपी के पास पहुंच गया, तो बचा खुचा मांजना भी गया समझो। आलाकमान को विश्वास में ले कर ही गहलोत 30 वर्षो से हर परिस्थिति में राजनीति में प्रासंगिक रहे है, और इसमें कोई शक नही है कि वे अपने अनुभव व क्षमताओं से इस बार भी अथक प्रयास कर रहे है। इसी कारण कांग्रेस में टिकट वितरण अभी भी उलझा हुआ है। एक साल पहले जिस प्रकार राजस्थान में बगावत हुई, और आलाकमान को गहलोत के नाम पर इस्तीफों के पुलिंदों से डराया गया, वो ऐतिहासिक क्षण था। एक वर्ष तक इस्तीफे विधानसभा में लटका कर रखे गए। यदि आलाकमान कोई भी सख्त निर्णय लेता तो इस्तीफे स्वीकार कर राजस्थान में नया इतिहास लिख दिया जाता। इस दृढ़ता से आलाकमान को चुनौती देने वालो ने शायद सोचा नही था, कि वक़्त आलाकमान का भी आएगा। गहलोत चाहते तो कुछ दिन बाद ही सही पुनः बैठक कर एक लाइन के प्रस्ताव की मर्यादा रखवा लेते। पर वो ऐसा चाह न सके।
तभी आलाकमान ने तय कर लिया था कि चुनावो तक इन्तजार किया जाए। ऐसी व्यवस्था हो सके कि यदि चुनाव से पहले सत्ता की चाबी गहलोत से छीनी नही जा सकती, तो कोई बात नही, टिकट वितरण के बाद देनी नही पड़े। कांग्रेस की रवायत है कि टिकट व मुख्यमंत्री का निर्णय आलाकमान पर छोड़ा जाता है। इसी कारण गहलोत जी गत 3 बार बिना विधायको के समर्थन के मुख्यमंत्री बने, पर अबकी बार वो गच्चा खा गए, और बेनकाब हो गए। गहलोत समर्थक उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाये रखने की जिद में आलाकमान को आंख दिखा कर आत्मघाती हमला कर चुके है। जिससे हुए नुकसान की भरपाई करने की घड़ी अब आ गई है। इस बार कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने विधानसभा टिकट फाइनल करने का निर्णय आलाकमान पर छोड़ दिया है। वहां पर तो गलतियां कीमत मांगेगी ही। तब गहलोत जी क्या कर सकेंगे?
न राजस्थान के रहेंगे, न केंद्र के। ऊपर से ED, CBI के हमले अलग सहने होंगे। गहलोत की मजबूरी भी है, और मूक सहमति भी, कि राजस्थान के मुख्यमंत्री बनाने का अधिकार आलाकमान की बजाय उनके समर्थक विधायको के पास रहे, अन्यथा नकारा निकम्मे पायलट की अधीनता स्वीकार करनी पड़ सकती है। जो उनकी कल्पना से भी परे है।
कल्पना कीजिये की इस बार भी कांग्रेस के 100 या अधिक विधायक जीत जाए और उनमें से 80 फिर से गहलोत के आशीर्वाद से टिकट पाए हो, और आलाकमान इस बार पायलट को चुनना चाहे, तो क्या होगा?
क्या ऐसे में राठौर, धारीवाल, जोशी मिल कर नए विधायको से एक लाइन का प्रस्ताव पास करवाने देंगे? या फिर खरगे जी को बेइज्जत कर वापिस भेजा जाएगा, और राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी को फिर एक बार होटल में बंद रखा जाएगा।

इस प्रश्न का जवाब शायद कांग्रेस आलाकमान के ही पास है। परंपरा अनुसार पैनल में दर्ज हर दावेदार की हाईकमान के प्रति निष्ठा देखी जाएगी, और वही टिकट की गारंटी होगी।
ऐसे में एक ही रास्ता बचता है कि बगावती विधायक या उनके संरक्षक जी हाईकमान को निष्ठा की गारंटी देने में सफल हो जाए, और आलाकमान ऐसी गारंटी को मान भी ले। पर ऐसा सम्भव होता नही दिख रहा।

गहलोत शरणं ममः की बजाय सोनिया शरणम ममः या राहुल शरणम ममः जपने पर ही टिकट मिल सकेगा, ये तय है।

उधेड़बुन बहुत ज्यादा है और समय निकलता जा रहा है। अब ये तो साफ है, कि सिर्फ संरक्षक गहलोत, रंधावा डोटासरा की तिकडी की सिफारिश पर टिकट नही दिया जाएगा, अन्यथा 3 महीने पहले ही टिकट फाइनल हो जाते। वैसे कई बगावती विधायको के पास गहलोत के प्रति निष्ठा के अलावा कोई योग्यता भी नही है। ऐसे में ही धर्मेंद्र राठौर, महेश जोशी, धारीवाल, डोटासरा और सी पी जोशी जैसो को टिकट देना, चुनाव बाद पुनः बगावत को आमंत्रण देगा। ये सोनिया भी जानती है और राहुल प्रियंका खरगे वासनिक वेणुगोपाल मिस्त्री भी। यदि समय पर इलाज नही किया तो ऐसी बगावत के सुर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में भी उठने सम्भावित है। अतः आलाकमान को ही सोचना है कि स्पष्ट व कठोर संदेश किस प्रकार देना है। और लगता है कि अनुशासन का चाबुक अब हाईकमान के हाथ मे आ चुका है, जिसका चलना गहलोत रोक नही पाएंगे। अभी तक तो दिल्ली दरबार फूक फूक कर कदम रख रहा है। क्योंकि राजस्थान में बीजेपी की स्थिति बेहद मजबूत दिख रही है, तम्बू उखड़ सकते है। वैसे जादूगर गहलोत जोड़तोड़ और रायता बिखेरने के पुराने खिलाड़ी है। इसीलिए सबकी नजर उन पर ही है। सूचियां तो आनी ही है, और बगावतें भी तय ही है।

चुनावी समर है।
रणभेरी बज चुकी है।

आगे आगे देखिए होता है क्या?

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