फसलों एवं सब्जियों के लिए अमृत है जीवामृत -डॉ. यादव
गौरव रक्षक/ राजेंद्र शर्मा
भीलवाड़ा 9 फरवरी। अनुसंधान निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर द्वारा प्रायोजित अनुसूचित जाति उपयोजनान्तर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र अरणिया घोड़ा शाहपुरा द्वारा सब्जियों और मसाला फसलों में जीवामृत का प्रयोग विषय पर तीन दिवसीय कृषक प्रशिक्षण आयोजित किया गया।
केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. सी.एम. यादव ने बताया कि सब्जियों एवं फसलों में अन्धाधुन्ध रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के प्रयोग से मनुष्य अनेक गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहा है साथ ही उत्पादन लागत भी अधिक वहन करना पड़ रहा है साथ ही मिट्टी की उर्वरा क्षमता भी नष्ट होती जा रही है। इसके लिए डॉ. यादव ने प्राकृतिक खेती अपनाकर जीवामृत, बीजामृत एवं घन जीवामृत का प्रयोग करने की आवश्यकता प्रतिपादित की तथा जीवामृत को फसलों एवं सब्जियों के लिए अमृत बताया।
प्रोफेसर शस्य विज्ञान डॉ. के.सी. नागर ने जीवामृत बनाने एवं फसलों में छिड़ाकाव की विधि एवं जीवामृत बनाने के लिए आवश्यक सामग्री की तकनीकी जानकारी दी। डॉ. नागर ने बताया कि जीवामृत नाइट्रोजन, पोटेशियम और फास्फोरस का अच्छा स्त्रौत है जो पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिए बहुत आवश्यक है।
उद्यान वैज्ञानिक डॉ. राजेश जलवानियाँ ने बताया कि प्राकृतिक खेती करने वाले किसान घर पर ही उपलब्ध संसाधनों द्वारा जीवामृत तैयार कर सकते है तथा सब्जियों में जीवामृत का प्रयोग कर अधिक आमदनी प्राप्त कर सकते है।
फार्म मैनेजर श्री गोपाल लाल टेपन ने बताया कि जीवामृत की मदद से जमीन को पोषक तत्त्व मिलते है जिससे मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ जाती है। वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता प्रकाश कुमावत ने जीवामृत, बीजामृत, आच्छादन एवं वापसा को प्राकृतिक खेती के मूल स्तंभ बताया। इस अवसर पर किसानों को प्याज की पौध एवं विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित कृषि कलेण्डर दिए गए। प्रशिक्षण में 30 कृषक एवं कृषक महिलाओं ने भाग लिया।