सम्राट अशोक ” की जन्म- जयंती हमारे देश में नहीं मनाई जाती ?? ऐसा क्यों??

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सम्राट अशोक ” की जन्म- जयंती हमारे देश में नहीं मनाई जाती ??

ऐसा क्यों??

1. माता पिता का नाम : अशोक महान पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय)। पिता का नाम बिंदुसार। दादा का नाम चंद्रगुप्त मौर्य। माता का नाम सुभद्रांगी।
 

2. पत्नियों का नाम : पत्नियों का नाम देवी (वेदिस-महादेवी शाक्यकुमारी), कारुवाकी (द्वितीय देवी तीवलमाता), असंधिमित्रा (अग्रमहिषी), पद्मावती और तिष्यरक्षित।
3. पुत्र पुत्रियों के नाम : देवी से पुत्र महेन्द्र, पुत्री संघमित्रा और पुत्री चारुमती, कारुवाकी से पुत्र तीवर, पद्मावती से पुत्र कुणाल (धर्मविवर्धन) और भी कई पुत्रों का उल्लेख है।
4. राज्याभिषेक : बिंदुसार की 16 पटरानियों और 101 पुत्रों का उल्लेख है। उनमें से सुसीम अशोक का सबसे बड़ा भाई था। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। कहते हैं कि भाइयों के साथ गृहयुद्ध के बाद अशोक को राजगद्दी मिली थी। अशोक सीरिया के राजा ‘एण्टियोकस द्वितीय’ और कुछ अन्य यवन राजाओं का समसामयिक था जिनका उल्लेख ‘शिलालेख संख्या 8’ में है। इससे विदित होता है कि अशोक ने ईसा पूर्व 3री शताब्दी के उत्तरार्ध में राज्य किया, किंतु उसके राज्याभिषेक की सही तारीख़ का पता नहीं चलता है। अशोक ने 40 वर्ष राज्य किया इसलिए राज्याभिषेक के समय वह युवक ही रहा होगा।

5.अशोक महान के नौ रत्न : नौ रत्न रखने की परंपरा या प्रचलन की शुरुआत उज्जैन के महान चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने की थी।

इसी परंपरा को अशोक महान ने आगे बढ़ाया। उनके दरबार में भी नौ रत्न थे। नौ रत्न अर्थात नौ सलाहकार। ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक ने प्रमुख 9 लोगों की एक ऐसी संस्था बनाई हुई थी जिन्हें कभी सार्वजनिक तौर पर उपस्थित नहीं किया गया और उनके बारे में लोगों को कम ही जानकारी थी। यह कहना चाहिए कि आमजन महज यही जानता था कि सम्राट के 9 रत्न हैं जिनके कारण ही सम्राट शक्तिशाली है। इन नौ रत्नों के नामों पर अभी भी रहस्य बरकरार है, लेकन उस दौर में चाणक्य ने भी अशोक का सहयोग किया था।
6. अशोक का साम्राज्य : सम्राट अशोक मगथ के सम्राट थे जिसकी राजधानी पाटलीपुत्र थी। सम्राट मगथ के सम्राट जरूर थे लेकिन कलिंग को छोड़कर संपूर्ण भारतवर्ष पर उनका शासन था। कहते हैं कि ईरान से लेकर बर्मा तक अशोक का साम्राज्य था। अशोक के समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर, कर्नाटक तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफगानिस्तान तक पहुंच गया था। यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था।
. अशोक स्तंभ और बौद्ध स्तूप : अशोक महान ने जहां-जहां भी अपना साम्राज्य स्थापित किया, वहां-वहां अशोक स्तंभ बनवाए। उनके हजारों स्तंभों को मध्यकाल के मुस्लिमों ने ध्वस्त कर दिया। इसके अलावा उन्होंने हजारों बौद्ध स्तूपों का निर्माण भी करवाया था। अपने धर्मलेखों के स्तंभ आदि पर अंकन के लिए उन्होंने ब्राह्मी और खरोष्ठी दो लिपियों का उपयोग किया था। कहते हैं कि उन्होंने तीन वर्ष के अंतर्गत 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया था।

8.बौद्ध धर्म अपनाया : कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्ट ने अशोक की अंतरात्मा को झकझोर दिया। सबसे अंत में अशोक ने कलिंगवासियों पर आक्रमण किया और उन्हें पूरी तरह कुचलकर रख दिया। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ के अनुसार अशोक के इष्टदेव शिव थे, लेकिन अशोक युद्ध के बाद अब शांति और मोक्ष चाहते थे और उस काल में बौद्ध धर्म अपने चरम पर था। युद्ध की विनाशलीला ने सम्राट को शोकाकुल बना दिया और वह प्रायश्चित करने के प्रयत्न में बौद्ध विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ। अशोक महान ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफगानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया।
.तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन : सम्राट अशोक ने 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन कराया जिसमें भगवान बुद्ध के वचनों को संकलित किया ‍गया। इस बौद्ध संगीति में पालि तिपिटक (त्रिपिटक) का संकलन हुआ। श्रीलंका में प्रथम शती ई.पू. में पालि तिपिटक को सर्वप्रथम लिपिबद्ध किया गया था। यही पालि तिपिटक अब सर्वाधिक प्राचीन तिपिटक के रूप में उपलब्ध है।

10. अशोक का निधन कहां हुआ? : यह तो पता चलता है कि सम्राट अशोक का निधन 232 ईसा पूर्व हुआ था लेकिन उनका निधन कहां और कैसे हुआ यह थोड़ा कठिन है। तिब्बती परंपरा के अनुसार उसका देहावसान तक्षशिला में हुआ। उनके एक शिलालेख के अनुसार अशोक का अंतिम कार्य भिक्षु संघ में फूट डालने की निंदा करना था। संभवत: यह घटना बौद्धों की तीसरी संगीति के बाद की है। सिंहली इतिहास ग्रंथों के अनुसार तीसरी संगीति अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र में हुई थी।
“सम्राट अशोक ” की जन्म- जयंती हमारे देश में नहीं मनाई जाती ??

ऐसा क्यों??

बहुत सोचने पर भी, उत्तर नहीं मिलता! आप भी, इन प्रश्नों पर विचार करें!
जिस -“सम्राट” के नाम के साथ -संसार भर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं ।
जिस सम्राट का राज चिन्ह “अशोक चक्र”भारतीय अपने ध्वज में लगाते है l
जिस सम्राट का राज चिन्ह “चारमुखी शेर” को, भारतीय “राष्ट्रीय प्रतीक” मानकर सरकार चलाते हैं l और “सत्यमेव जयते” को अपनाया है l
जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान “सम्राट अशोक” के नाम पर “अशोक चक्र” दिया जाता है l
जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ… जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक-छत्र राज किया हो l
सम्राट अशोक के ही समय में २३ विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई l जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार, आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे l इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से छात्र उच्च शिक्षा पाने भारत आया करते थे।
जिस सम्राट के शासन काल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार भारतीय इतिहास का सबसे -“स्वर्णिम काल” मानते हैं ।
जिस सम्राट के शासन काल में भारत विश्व गुरु था l सोने की चिड़िया था l जनता खुशहाल और भेदभाव-रहित थी l
जिस सम्राट के शासन काल में, सबसे प्रख्यात महामार्ग ग्रेड ट्रंक रोड जैसे कई हाईवे बने l २,००० किलोमीटर लंबी पूरी सडक पर दोनों ओर पेड़ लगाये गए l सरायें बनायीं गईं l मानव तो मानव..,पशुओं के लिए भी प्रथम बार चिकित्सा घर (हॉस्पिटल) खोले गए l पशुओं को मारना बंद करा दिया गया l
ऐसे महान सम्राट अशोक जिनकी जयंती उनके अपने देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती ?? न ही, कोई छुट्टी घोषित की गई है?
दुख: है, कि जिन नागरिकों को ये जयंती मनानी चाहिए..? वो अपना इतिहास ही भुला बैठे हैं l और जो जानते हैं , वो ना जाने क्यों मनाना नहीं चाहते ?
पिताजी का नाम – बिन्दुसार गुप्त
माताजी का नाम – सुभद्राणी
जो जीता वही “चंद्रगुप्त” ना होकर …जो जीता वही “सिकन्दर” कैसे हो गया..??
जबकि ये बात सभी जानते हैं, कि सिकन्दर की सेना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रभाव को देखते हुए ही, लड़ने से मना कर दिया था!
बहुत ही बुरी तरह से मनोबल टूट गया था और वापस लौटना पड़ा था ।

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