बड़ी ही मुश्किल से हालात सुधरे थे, कि ये राजनीति पार्टियों के धरने प्रदर्शन, ज्ञापन कही फिर से ?

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प्रतिकात्मक चित्र

बड़ी ही मुश्किल से हालात सुधरे थे, कि ये राजनीति पार्टियों के धरने प्रदर्शन, ज्ञापन कही फिर से ?

▪️क्या ये सब आयोजन आमजन को भी बेवजह घरों से निकलने को प्रेरित करता होगा?

▪️गरीब के चालान, इनके जय जय कार

▪️जीवन रहा तो बहुत कर लेना राजनीति ,अभी तो जीवन के लाले पड़े है ।

हमारी याददाश्त कितनी कमज़ोर होती है ,यह इस बात से साबित हो रहा है, कि कोरोना की दूसरी लहर का तांडव थोड़ा सा कम हुआ नहीं, कि हम दूसरी लहर की भयावहता को भूल बैठे हैं । महज़ तीन दिन में घर से बाहर निकलने और भीड़ – भाड़ इकट्ठे करने का काम चालू हो गया है । राजनेता अपने प्रिय खेल (जनता को बेवक़ूफ़ बनाने ) को खेलने के लिए तैयार हो गए हैं । सभी राजनीतिक पार्टियां धरना प्रदर्शन के बहाने जनता को कोरोना के मुँह में डालने की कोशिश कर रहे हैं । पता नहीं आम जनता इन दोहरे चरित्र वाले राजनेताओं की असलियत कब समझेगी ।एक तरफ़ तो उनका कहना है कि घर से बाहर मत निकलो। दूसरी तरफ़ धरना प्रदर्शन का आयोजन कर आम जनता को बाहर निकालने के लिए उकसा रहे हैं । राजनेताओं को भी सोचना होगा कि वो भी इसी देश के नागरिक हैं। और देश की आर्थिक स्थिति के प्रति उनका भी कुछ दायित्व है । ये समय आर्थिक विकास को देखने के लिए है, ना कि अपना शक्ति प्रदर्शन करने का समय है ।सभी नागरिकों को ऐसे धरना प्रदर्शन से अपने आप को दूर रखना होगा ।और अपना सर्वोच्च योगदान देश के विकास के प्रति देने का मानस बनाना होगा। सरकार एक तरफ़ तो ग़रीब ठेले वाले, दैनिक मज़दूरी करने वाले ,रेहड़ी वाले मज़दूरों को छोटी छोटी बात पर चालान बनाकर परेशान कर रही है, दूसरी तरफ़ दलों द्वारा धरना प्रदर्शनो का आयोजन ,सरकार की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिनह खड़ा कर रहे हैं। अभी भी समय है ,सभी लोग समझ जाए ।
दुख की बात है कि जो लोग सत्ता में हैं और लोगों को प्रभावित कर सकते हैं, वे कोई मिसाल पेश नहीं करते-जरा कल्पना कीजिए, उस संदेश की क्या ताकत होती, अगर लोगों को हर रैली की शुरुआत में ही मास्क पहनने और उचित व्यवहार करने के लिए याद दिलाया जाता! निश्चित रूप से व्यावहारिक और कुछ अनुकूल लक्ष्य हासिल करने के लिए राजनीतिक कहानी को आगे बढ़ाने वाले लोग संदेशों और सीमाओं के विपरीत तर्क दे सकते हैं, पर सवाल उठता है कि ऐसा क्यों नहीं है। एक तरफ एक उच्च न्यायालय ने कहा है कि मास्क सबको पहनना जरूरी है, भले ही कोई कार में अकेला क्यों न बैठा हो। दूसरी तरफ रैलियों में,राजनीति प्रदर्शन में, ज्ञापन में, हजारों लोग बिना मास्क के इकट्ठा हो रहे हैं। क्या एक राजनीतिक रैली वायरस के लिए विशेष है या वह प्रतिरक्षित है! और अगर शादियों एवं अंत्येष्टि के लिए सीमा हो सकती है, तो राजनीतिक रैलियों के लिए क्यों नहीं?
पहले जीवन को बचाना है, इसके बाद ही रणनीतिक लड़ाईयां लडना उचित होगा।

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