(लेख अनिल शर्मा)
जिंदगी पूछ रही है,अब आगे क्या?
आज हर आदमी के दिमाग में एक सवाल आ रहा है, अब आगे क्या होगा? और यह वर्तमान अनिश्चित माहौल को देखते हुए एक सही विचार है। आज जिंदगी को विराम सा लग गया है । इस कोरोना महामारी ने हमसे हमारा बहुत कुछ छीना है, और बहुत कुछ सिखाया भी है । आज जहां देश के डॉक्टर, सरकारी एजेंसियां, कई निजी संगठन व अच्छे लोग, एक दूसरे की मदद के लिए आगे आए हैं । इस त्रासदी में प्रवासी मजदूर , छोटे व्यवसाई व निजी कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है । व्यापार थम सा गया है। निजी कंपनियों के कर्मचारियों का वेतन भी मालिकों ने 30 % से 50% तक कम कर दिया है कई उद्योगों में कर्मचारियों की छँटनी कर दी गई है। व्यापारी वेतन नहीं दे पा रहे है । ऐसे में मजदूर गांव में घरों की ओर पलायन करने लगे तो , लालची दलाल उनसे मनचाहा किराया वसूलने लगे । डॉक्टर इलाज में जुटे हैं ,तो बेड नहीं है । अगर बेड दिया, तो दवा नहीं है । ऑक्सीजन की ,दवाओं की, कालाबाजारी चालू है । लेकिन आज भी पाप से अधिक पुण्य है । लोगों ने निस्वार्थ भाव से तन मन धन से सेवा की है । बीमारी को फैलाने में जनता का भी काफी बड़ा सहयोग है । सरकारी एजेंसी ,न्यूज़ चैनल ,डॉक्टर, नियम बता सकते हैं , पालन तो हमें ही करना पड़ेगा । एक तरफ छुटकारे की कोशिश हो रही है, तो दूसरी तरफ धार्मिक अनुष्ठान, कुंभ जैसे मिशन मेला, जामा मस्जिद में भीड़ का एकत्र होना, चुनाव होना , गांव में पंचायती चुनाव का होना , यह समय नहीं है। दोष किसे दें ! व्यापार है नहीं! जरूरत की चीजें की कालाबाजारी ,भूख है तो भोजन नहीं , बीमार है तो अस्पतालों में जगह की दिक्कत, जगह है तो दवा की दिक्कत ,यहां तक कि घर में जो स्वस्थ है , वह भी कई लोग मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं । राजनेताओं को एक दूसरे की टाँग खिंचाई से फ़ुरसत नहीं है आम जनता मदद की किससे उम्मीद करें यह सवाल बार बार मन में आता है । विचार करें अब आगे क्या?????