शिक्षा के माध्यम से हम इंसान पैदा करें पैसा कमाने की मशीन नहीं ! आज बच्चों को वैदिक शिक्षा देना जरूरी

0
19

शिक्षा के माध्यम से हम इंसान पैदा करें पैसा कमाने की मशीन नहीं !
आज बच्चों को वैदिक शिक्षा देना जरूरी
सतना – शिक्षा जीवन चेतना के क्रमिक विकास की प्रक्रिया है मन को आत्म कल्याण की ओर बढ़ाने के लिए प्राणों के साथ शिक्षा की साधना जरूरी है । सोचने रखने और किसी सिरे पर अपने सर्जना को विराम दे देने के बीच विचार और अनुभूतियों की टकराहट ना हो इसके लिए आज सुबह युवाओं को आधुनिक शिक्षा के साथ वैदिक शिक्षा बहुत जरूरी है आज हम इंसान नहीं पैसा कमाने की मशीन तैयार कर रहे हैं जिससे हमारी भावी पीढ़ी में संस्कारों में कमी आ रही है जो देश के भविष्य के लिए ठीक नहीं है ।
अंग्रेज हमारे यहां से चले गए लेकिन हमें अंग्रेजी के रूप में वरदान और अभिशाप दोनों दे गए वरदान यह की अंग्रेजी मीडियम की शिक्षा समाज में स्टेटस का वायरस बन गई है नौकरियों के लिए बिना अंग्रेजी काम नहीं चलता हम इसके इतने गुलाम हो गए हैं कि देश की सरकार सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट सभी जगह अपना कब्जा जमा लिया । आज देश का आम किसान और गरीब इन संस्थाओं द्वारा पारित आदेशों के अध्ययन के लिए दूसरों पर आश्रित हैं, इस वजह से उसकी जेब पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ भी पड़ता है ।आज ईसाई और मुस्लिम भाई तो अपने धर्म ग्रंथों को पढ़कर निपुण हो जाते हैं क्यों प्राथमिक शिक्षा में उनके लिए यह अनिवार्य है चर्चा और मदरसों में उनके धार्मिक ग्रंथ अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाते हैं लेकिन हमारे देश में मठों मंदिरों में ऐसी अनिवार्यता नहीं है । संस्कृति की शिक्षा गायब सी हो गई है देश में संस्कृत के गिने-चुने संस्थाएं हैं अब तो पूजा- कथा -क्रिया -कर्म करवाने लोगों को कुछ रूम्मान इस ओर है ।बिड़वना यह है कि संस्कृत के निकले विद्वानों को दुनिया में बसे करोड़ों भारतीय ले जाते हैं –
क्यों कि उन्हे भी उनकी आवश्यकता होती है । आज देश में अधिकांश लोग अंग्रेजी माध्यम शिक्षा को ही असली शिक्षा मानते हैं इसमें पूंजीपति और उच्च अधिकारी तो है ही मध्यम परिवार में छोटे कर्मचारी भी शामिल है, इनके बच्चे बारहवीं तक शिक्षा लेने के बाद सीधे डिग्री पाने के लिए पढ़ने चले जाते हैं और फिर वही से नौकरी प्राप्त कर लेते है, इन्हें जमीनी, व्यवहारिक और सामाजिक ज्ञान नहीं होता ,फिर भी दो पैसे कमाते ही इन्हें लगने लगता है इन से अधिक ज्ञानी कोई नहीं है, यह परिवार व समाज से कटे- कटे से रहते हैं और समाज से ही जुड़े इनके अभिभावकों से इनका मतभेद रहता है, कई जगह देखने को मिलता है कि इन बच्चों की माताएं कम पढ़ी लिखी होती है और उनका रुम्मान भी अपने बच्चों की तरह हो जाता है और इस कारण पति-पत्नी के बीच अविश्वसनीय पैदा हो जाती है । वही जो बच्चे व्यवहारिक डिग्री प्राप्त करने के बाद नौकरी से वंचित रह जाते हैं उन्हें कुंठा और निराशा घेर लेती है और वे रास्ते से भटक जाते हैं ,निराश में वे में व्यसन पाल लेते हैं वहीं उनके मां-बाप का सपना ह्वस्त हो जाता । यह भी देखा गया है कि अच्छी व्यवसायिक डिग्री के चलते बच्चों की स्तरीय विवाह तो हो जाते हैं लेकिन नौकरी न मिलने के बाद गृह कलह भी पैदा हो जाता है ।
कुल मिलाकर कान्वेंट स्कूल का मोह ठीक है, लेकिन सनातन धर्म वाले देश में अंग्रेजी शिक्षा और हिंदी शिक्षा दो तरह के नागरिक तैयार कर रही है । आज अंग्रेजी मीडियम वाले छात्र न तो रामचरितमानस की चौपाई सुना सकते हैं और नहीं गीता के श्लोक, जबकि गांव में बसने वाले हमारे देश के ग्रामीण विद्यार्थी ऐसा कर सकते हैं । लेकिन अंग्रेजी बोलने वाले चौपाई व श्लोक सुनाने वालों को कमतर आकें यह उचित नहीं है । हमारी सरकार इस विसंगति को दूर कर हर शिक्षण संस्थाओं में वैदिग शिक्षा को अनिवार्य करें , तभी एक राष्ट्र समृद्ध की परिकल्पना को साकार कर पाएंगे । वैसे वर्तमान सरकार ने नई शिक्षा नीति के माध्यम से कुछ प्रयास किए हैं लेकिन यह नाकाफी है ,पाश्चात्य सभ्यता व संस्कारों की ओर अग्रसर देश को हम वैदिग शिक्षा देकर ही रोक सकते हैं ।हमे ऐसी शिक्षा और शिक्षण संस्थान नहीं चाहिए जिन्हें भारत के राष्ट्रगान व प्रार्थना से घृणा ना हो । शिक्षा की आड़ में बच्चों को धर्मांतर हेतु प्रेरित करना शिक्षा नहीं अपराध है और इसे मां भारती की किसी लाल को स्वीकार नहीं करना चाहिए ।
शिवभानु सिंह बघेल

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here