बूंदी शहर में गलन बढ़ गई है वही कहीं बेसहारा लोग सड़कों के किनारे फुटपाथ व चौराहों या दुकानों के बाहर ठंडी रातें गुजारने को मजबूर है इसमें कोई संदेह नहीं कि बूंदी शहर में लाखों रुपए की लागत से कई आश्रय स्थल बनाए हुए हैं परंतु कई जरूरतमंद इन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं इसके अभाव में जरूरतमंद सर्द रातें सड़कों पर गुजारने को मजबूर है गौरव रक्षक टीम जब शुक्रवार रात मध्यरात्रि को सड़कों पर निकली तो 5 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच ऐसे कहीं व्यक्ति दिखे जो एक कंबल में ठिठुर रहे थे बस स्टैंड प्रतीक्षालय में बहुत सारे लोग मौजूद थे जिन्होंने बताया कि बूंदी में दिन भर मेहनत मजदूरी करते रहने के बाद यही ठिकाना रह गया है यहां कई गांव को जाने वालों की आखरी बस छूट जाने के बाद कुछ यात्री भी यहां थे जब उनसे पूछा कि आश्रय स्थल में जाने की बात पूछी तो उन्होंने ऐसी कोई जानकारी होने से इंकार कर दिया यहां बस स्टैंड पर यात्रियों के लिए कोई सूचना पट्ट भी नहीं लगाया हुआ है जिससे उन्हें जानकारी मिल सके ठंडी रातों में सड़कों पर सन्नाटा छाया हुआ है इस कड़कड़ाती सर्दी में जरूरतमंद खुली जगह रेलवे स्टेशन बस स्टैंड के बाहर गोपाल सिंह प्लाजा में सोने के लिए मजबूर है विडंबना यह है कि शहर में कई आश्रय स्थल होने के बावजूद लोग सड़कों पर या खुले में सर्द रातें गुजारने पर मजबूर है