राष्ट्र सेवा से बढ़कर कुछ नहीं
देश की सेवा में
23 साल पूरे।
आज ही के दिन 23 साल पहले गांव का छोरा शिक्षक की नोकरी छोड़ नी ग्वालियर के बीहड़ जंगलों में अधिकारी बनने पहुँचा।
23 साल लंबे वर्षों का कठोरतम जीवन।
प्रतिपल सतर्कता। राष्ट्र पर हुए किसी भी घात को अपने तन पर झेल कर भी मातृ भूमि को आंच न आने देने की प्रतिबद्धता ,बलिदान का जज्बा
अधीनस्थों के हितों और उनके जीवन की रक्षा।
उच्चाधिकारियों की आज्ञा का पालन वाहिनीं की गरिमा बनाए रखने की नैतिक जिम्मेदारी समय सिर्फ 1 दिन में 24 घंटे।खुद से बेखुद हर वक्त जुनून ।
23 बरस यौवन का स्वर्ण काल समाप्तप्राय ।प्रौढ़ावस्था का पूर्णतया आगमन।
23 वर्ष परिवार से दूर। कठिन एवं विषम परिस्थितियों में जीवन यापन ।
गाँव को ,दोस्तो को घर परिवार को इन 23 सालो में बहुत मिस किआ।
इस दौरान हमारे 07 साथ बैच मेट देश के खातिर सर्वोच्च बलिदान देकर शहिद हो गए सभी को ह्र्दय से श्रद्धांजलि।ईश्वर उनके परिवार को सदैव खुश रखे।
लगता है जीवन का सर्वस्व देश पर लग गया।
जा रे जमाना ।
सफेदी बाढ़ बन कर बालों पे
तो झुर्रियां कर्म रेख बन कर गालों पे तारी हो गई।
पारिवारिक दायित्व धीमी गति से निभ पाये ।बहुत कोर कसर रह गई लगती है। नजदीकी रिश्तेदार,भाई बंधु आज भी सदैव त्योरियां चढ़ा कर रखते।
खून के रिश्तेदार भी सदैव नाराज रहे।
वहीँ खून के रिश्तेदार में कई मजदूरों सा काम करने वाले अदने से , मुझे आज भी इस नज़र से देखते जैसे मेने देश सेवा चुनने का को जो निर्णय लिया कोई अपराध कर दिया।
मगर जिस संकल्प के साथ राष्ट्र रक्षा का भार लिया वह अच्छे से निभ गया ।
यह सुकून है। परिवर्तन शील पद स्थापन से पूरा परिवार प्रभावित रहा ।बच्चे भी जितनी क्लास में पढ़ते जोया उससे भी ज्यादा अलग अलग जगह की स्कूलों में अलग अलग भाषाओं में पढ़े।
मगर सुकून है। जो खोया उसका क्या लेखा जोखा मगर जो पाया वो बेहिसाब है।
राष्ट्र पति के वीरता पुरुस्कार वो भी महामहिम APJ अब्दुल कलाम साहेब दुवारा ,
सब्जी मंडी से नहीं खरीदे जा सकते थे।कई VIPs के हाथों सम्मानित होना ,ओर उनसे सम्बन्ध गंगापुर की गलियों में नहीं बन सकते थे।,
सम्पूर्ण भारत का भ्रमण एक स्वप्न ही था।
कश्मीर से कन्याकुमारी
और
राजस्थान के धोरो से उड़ीसा के जंगलों तक ,पूरा हिंदुस्तान छान मारा,जिसमे कश्मीर की वादियों में बच्चे भरी बर्फ मे खेलते कुदते बड़े हुए।
रोमांचकारी जीवन सदैव रहा
कई बार मौत को बहुत करीब से देखा और मौत को ही इस ना चीज ने मात दे दिया ।
ओर गांव का छोरा पारस से
पारस “पत्थर” बन गया ।
सबसे ज्यादा जो मिला वो है सरहद के प्रहरी के प्रति सहज रूप से समाज जनों की श्रद्धा।
मैं 23 वर्ष सरहद पर प्रहरी के रूप में रह कर वो सब कुछ पा चुका जिसकी लोग कल्पना ही कर सकते हैं।
मैं धन्य हो गया ।
ईश्वर अगला जन्म भी सरहद की सेवा के लिए आज ही आरक्षण के रूप में बुक कर ले।
आपकी शुभेच्छाएँ बनी रहें ।
दोस्तों।
मातापिता का सम्मान करें।
बुजुर्गों की सहयता करे।
जीनगर पारस “पत्थर”।