मध्य प्रदेश में इस हालात के लिए खुद कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोषी, ठीक किया महाराज ने- जनता जनार्दन
होली की भाई दूज के दिन कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होते वक्त ज्योतिरादित्य सिंधिया पुरानी पार्टी पर खूब बरसे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफों के पुल बांधे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस जड़ता की शिकार हो गई है और नए नेतृत्व के लिए सही वातावरण नहीं है। उन्होंने मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर किसानों- युवाओं से किए वादे न निभाने तथा भ्रष्टाचार में डूबे रहने का आरोप लगाया। बीजेपी में शामिल करने के लिए मोदी का धन्यवाद देते हुए सिंधिया ने कहा कि देश के इतिहास में शायद किसी को भी इतना बड़ा जनादेश नहीं मिला, जितना कि एक बार नहीं दो बार हमारे प्रधानमंत्री जी को मिला है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा की सदस्यता दिलाते हुए पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि राजमाता विजयराजे सिंधिया ने भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना और विस्तार करने में बड़ी भूमिका निभाई थी। जेपी नड्डा ने आगे कहा, ‘आज उनके पौत्र हमारी पार्टी में आए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया परिवार के सदस्य हैं और हम उनका स्वागत करते हैं
बीजेपी में शामिल होने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और नड्डा का शुक्रिया की उन्होंने अपने परिवार में स्थान दिया। सिंधिया बोले, ‘मेरे जीवन में दो तारीखें बहुत महत्वपूर्ण रही हैं। 30 सितंबर 2001 को मैंने अपने पिताजी को खोया, वह जिंदगी बदलने वाला दिन है और उसी के साथ दूसरी तारीख 10 मार्च 2020 जो उनकी 75वीं जन्मतिथि थी। इस दिन मैंने नया निर्णय लिया। मैंने सदैव माना है कि हमारा लक्ष्य जनसेवा होना चाहिए और राजनीति उसकी पूर्ति करने का माध्यम होना चाहिए, इससे ज्यादा कुछ नहीं। मेरे पिताजी और मुझे जो समय मिला उसमें कांग्रेस के जरिए हमने जनसेवा करने की कोशिश की है।’
सिंधिया ने आगे कहा, ‘आज मैं दुखी भी हूँ और व्यथित भी कि कांग्रेस पार्टी पहले जैसी नहीं रहीं। कांग्रेस में वास्तविकता से इनकार करना और नए नेतृत्व को मान्यता नहीं मिल रही है। यह तो केंद्रीय नेतृत्व का हाल है, मेरे गृह राज्य में 2018 में हमने एक सपने के साथ सरकार बनाई थी, लेकिन 18 महीने में यह सपना चकनाचूर हो गया। किसानों को बोनस नहीं मिल रहा है, रोजगार के अवसर नहीं। वचनपत्र में कहा था कि हर महीने एक राशि दी जाएगी लेकिन इसकी सुध नहीं ली गई। कांग्रेस में रहकर जनसेवा नहीं की जा सकती। आज मध्य प्रदेश में ट्रांसफर उद्योग चल रहा है। इसलिए मैंने भारत और भारतमाता की सेवा के लिए नया मंच चुना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने मुझे एक नए मंच पर आने मौका दिया है
मध्य प्रदेश में चुनाव से लेकर आज तक जो कुछ हुआ है इसकी पटकथा या नींव उसी दिन रख ली गई थी जब सवा साल पहले विधान सभा चुनाव के रिजल्ट आए. उस समय कमलनाथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे, मुख्यमंत्री पद के लिए उनका कहीं कोई नाम नहीं था. ज्योतिरदित्य सिंधिया को आगे करके कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था. बल्कि दिग्विजय सिंह भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में रहे होंगे लेकिन उन्हें पार्टी मुख्यमंत्री बनाएगी इसका कोई अंदेशा नहीं था.
कमलनाथ नहीं थे फ्रेम में:-
सबको मध्य प्रदेश में ये लग रहा था कि यदि कांग्रेस बीजेपी से अधिक सीटें पाती है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री बनेंगे. मैं रहीश खान गौरव रक्षक राष्ट्रीय समाचार पत्रिका उन दिनों भोपाल में ही रहता था, लेकिन जैसे ही चुनाव के नतीजों में कांग्रेस एक या दो सीट आगे दिखने लगी कमलनाथ जी के आवास के पास एक बहुत बड़ा होर्डिंग लगा दिया गया. कांग्रेस की भारी जीत पर जनता का अभिनंदन. ये पहला होर्डिंग था, उस समय अख़बारों में भी यह ख़बर छपी. इसी से यह संदेश चला गया कि कमलनाथ मुख्यमंत्री बनेंगे. ज्योतिरादित्य सिंधिया उसी समय से नाराज़ थे. ज्योतिरादित्य के साथ भी कांग्रेस ने वही किया जो उनके पिता माधव राव के साथ किया था. उनसे पहले उनकी दादी राजमाता सिंधिया के साथ किया था. असल में सिंधिया राजघराने के प्रति विंध्य, मध्य भारत, ग्वालियर औऱ इंदौर को छोड़ दें तो बाकी कांग्रेस नेताओं में एक खास तरह का भाव है. उसे मैं वितृष्णा तो नहीं कहूंगा, लेकिन सौतेलापन जैसा है. कहा जा सकता है कि इन नेताओं की कोशिश रहती है कि सिंधिया घराने के किसी व्यक्ति को मध्य प्रदेश की राजनीति में प्रभावी न होने दिया जाए.
माधवराव के साथ भी ऐसा ही हुआ और राजमाता के साथ भी:-
कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया के साथ भी यही किया था. माधवराव सिंधिया को कांग्रेस से निकलना पड़ा. उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई थी. राजमाता सिंधिया ने तो उस समय द्वारका प्रसाद मिश्र की सरकार ही गिरा दी थी और गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया था. उसके बाद राजमाता सिंधिया कभी कांग्रेस में नहीं लौटीं. वे जनसंघ में चली गईं जनसंघ की बड़ी नेता भी रहीं. माधवराव राजीव गांधी से अपने संबंधों के कारण कहीं और तो नहीं गए लेकिन अपनी अलग पार्टी बनायी थी.
ज्योतिरादित्य के साथ कांग्रेस का व्यवहार ठीक नहीं था:-
कहा जाए कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस ने बहुत ही अनुचित व्यवहार किया, तो मध्य प्रदेश की सभी लोग इससे सहमत होंगे. मध्य प्रदेश में बीजेपी के भी कार्यकर्ताओं को लगता था कि कांग्रेस सिंधिया के साथ ठीक नहीं कर रही है. मोदी लहर के दौर में वे लोक सभा का चुनाव हार गए और उस लहर में हारना स्वाभाविक भी था. सिंधिया की इस हार पर कांग्रेस में उनके विरोधी नेताओं ने जब ख़ुशी मनाई तो इससे नाराज़गी और बढ़ी.
राज्यसभा के लिए भी नाम नहीं तय किया था:-
अभी राज्यसभा के चुनाव होने वाले हैं लेकिन कांग्रेस अभी भी नहीं सोच रही थी. ख़ास तौर से कांग्रेस आलाकमान ये नहीं तय कर रहा था कि सिंधिया को राज्यसभा में लाया जाए. सिंधिया घराने के लोगों ने अपने लिए कभी नहीं कहा और ज्योतिरादित्य भी अपने टिकट के लिए ख़ुद कभी नहीं कहते. उनके लोगों ने कांग्रेस आलाकमान तक संदेश पहुंचाया था. कांग्रेस की दिक़्क़त ये है कि वहां कोई लीडरशिप है ही नहीं. मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी और सरकार दोनों दिग्विजय सिंह चला रहे थे. दिग्विजय सिंह का हस्तक्षेप इस क़दर था कि वन मंत्री उमंग सिंगार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक चिट्ठी लिखी. पत्र में उन्होंने कहा कि दिग्विजय सिंह ने चिट्ठी लिखकर कहा है कि सरकार के मंत्री उन्हें आकर मिला करें, ताकि उन्हें पता चले कि सरकार में और किन विभागों में क्या चल रहा है. आपने टेलीविजन TV पर देखा होगा कि ये वही उमंग सिंगार हैं जो राज्य में कमलनाथ सरकार को बनाए रखने की घोषणा कर रहे थे.
सिंधिया के मुद्दों को कमलनाथ ने महत्व नहीं दिया:-
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इससे पहले भी किसानों का मुद्दा उठाया कि पार्टी ने जो वादा किसानों के साथ किया था, उसे पूरा करें. सार्वजनिक सभाओं में भी उन्होंने इसकी बात उठायी. फिर उन्होंने टीकमगढ़ में स्थायी शिक्षकों का मुद्दा भी उठाया. इन मसलों पर सड़क पर उतरने की बात भी कही. इसके जवाब में कमलनाथ ने बहुत ही अहंकार के साथ कहा था कि वे उतरना चाहते हैं तो उतर जाए. एक वरिष्ठ नेता का दूसरे वरिष्ठ नेता को ऐसा जवाब नहीं हो सकता.
दिग्विजय सिंह का दोष:-
अभी भी जब सिंधिया के प्रधानमंत्री से मिलने की ख़बर आयी तो दिग्विजय सिंह ने कहा कि उनको स्वाइन फ्लू हो गया है. इस तरह की बात करना कहाँ तक उचित है. दिग्विजय सिंह को न तो कभी माधवराव सिंधिया ने अहमियत दी और न ही कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने महत्व दिया. दिग्विजय सिंह ने जिस तरह के बयान दिए उसका पार्टी को बहुत अधिक नुक़सान होने वाला है.
बनने के तुरंत बाद ही गिर गई होती सरकार:-
बीजेपी और पार्टी का आला कमान अगर चाहता तो कमलनाथ सरकार बनने के सात दिन के अंदर ही गिर सकती थी. मैं उन दोनों भोपाल में था और दो महीने तक रहा. मुझे ये अच्छे से मालूम था कि शिवराज सिंह अगर चाहते तो सरकार उसी समय गिरा दी होती, लेकिन भाजपा आलाकमान ने इस बात की इजाज़त नहीं दी. पार्टी नेताओं ने कहा कि सरकार को खुद गिरने दें. इसलिए सवा साल कमलनाथ की सरकार चल गयी.
कौन चला रहा था सरकार:-
ये अलग बात है कि मध्य प्रदेश में सबको मालूम है कि इस दौरान सरकार किसने चलायी. सबको मालूम है कि सरकार दिग्विजय सिंह चला रहे थे और इसकी वजह से कांग्रेस और मध्य प्रदेश में और असंतोष पैदा हुआ.कमलनाथ मध्य प्रदेश से लगातार सांसद रहे हैं. लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति में कहा जा सकता है कि उनकी गंभीर पकड़ नहीं है. कुछ लोग हैं जो उनके उनके प्रति वफ़ादार हैं. कमलनाथ की सरकार बनने के पहले मध्य प्रदेश में केवल एक गुट सक्रिय था और वो दिग्विजय सिंह का था. ज्योतिरादित्य सिंधिया का गुटबाज़ी करने का स्वभाव नहीं है, लेकिन ग्वालियर चम्बल रीज़न में, जहाँ से बड़ी संख्या में इस बार कांग्रेस के विधायक आए हैं, पारंपरिक रूप से सिंधिया राजघराने के समर्थक रहे हैं. ये वही क्षेत्र है जहाँ से BJP को सबसे बड़ा झटका लगा था.
और भी बागी आएंगे:-
इस लिहाज़ से माना जाता है कि 30-35 विधायक हैं, जो दरअसल मन से सिंधिया के साथ हैं. अभी 22 विधायक उनके साथ आए हैं आगे और भी आएंगे ये आप जल्द ही सुनेंगे. तो इस तरह से किसी नेता का बैकग्राउंड पूरी तरह साफ़ सुथरा है जिसके परिवार के बारे में लोग जानते हों कि यह परिवार साफ़ सुथरी राजनीति करता है. लोग जानते हैं कि राजमाता सिंधिया राम जन्मभूमि आंदोलन की एक बड़ी नेता थीं. जनसंघ और BJP में उनका क़द बहुत बड़ा था, फिर भी माधवराव वापस कांग्रेस आ गए. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में बने रहे:-
राहुल गांधी के सबसे क़रीबी रहे. चार पांच भाषाओं के जानकार सांसद ज्योतिरदित्य ने जरूरत पड़ने पर कांग्रेस का पक्ष बहुत मजबूती से संसद में रखा. अगर पार्टी ऐसे नेताओं की भी क़दर नहीं करेगी तो उसका असर यही होना है, जो मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का हुआ है.
ताकतवर होगी बीजेपी:-
अब जो ये दिखता है कि भाजपा ने कर्नाटक का मॉडल यहां भी अपनाया है. उन विधायकों से इस्तीफ़े दिलवाया गए हैं, लिहाज़ा अब जो सदन की स्थिति बनती है उसमें कुल सदस्यों की प्रभावी संख्या 209 आ गई है. इसमें 95 कांग्रेस के विधायक हैं और 107 भाजपा के. बाकी चार निर्दलीय और दो बसपा और एक सपा के हैं. ऐसे में भाजपा की सरकार बड़े ही आराम से बन सकती है.
बागियों की स्थिति सम्मानजक होगी:-
जिन विधायकों ने इस्तीफ़ा दिया है, उन्हें फिर से चुनाव में उतारा जा सकता है. सरकार बनने पर महत्वपूर्ण विभागों का मंत्री बनाया जा सकता है. अभी जो स्थितियां दिख रही हैं, उसमें शिवराज सिंह के नेतृत्व में सरकार बन सकती है और सिंधिया गुट के लोगों को उसमें पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है.
केंद्र में मंत्री बनेंगे सिंधिया:-
सिंधिया निश्चित तौर पर केंद्र में आएंगे और पार्टी उन्हें राज्यसभा के लिए नामित कर मंत्री पद भी दे सकती है. सिंधिया युवा हैं और मोदी सरकार को देश भर में सिंधिया के आने का फ़ायदा मिलेगा.
कभी मजबूत नहीं रही कमलनाथ सरकार:-
जो लोग ये समझ रहे थे कि कमलनाथ की सरकार बहुत मज़बूत आधार पर टिकी हुई है, वो ग़लत थे और दिग्विजय सिंह उसे और भी कमज़ोर कर रहे थे. याद रखने की बात है कि उमंग सिंगार ने भी सोनिया गांधी को लिखे गए अपने पत्र में इसका ज़िक्र किया था.
सिंधिया ने छोड़ी कांग्रेस , कमलनाथ सरकार की मुश्किलें और बड़ी
ज्योतिरादित्य सिंधिया की बीजेपी में एंट्री के साथ ही उनको राज्यसभा टिकट मिलना लगभग तय माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, आज दोपहर जैसे ही सिंधिया बीजेपी में शामिल होने के लिए अपने घर से निकले और पार्टी मुख्यालय में पहुंचने से पहले ही बीजेपी ने मध्य प्रदेश कोटे से राज्यसभा के लिए अपने दोनों कैंडिडेट का नाम तय कर दिया। बीजेपी ने अपने पुराने दोनों राज्यसभा सदस्यों का टिकट काटकर ज्योतिरादित्य सिंधिया और हर्ष चौहान को प्रत्याशी बनाया है। इसके साथ ही बताया जा रहा है कि सिंधिया को केंद्र की नरेंद्र मोदी कैबिनेट में अहम जगह मिल सकती है।
मध्य प्रदेश में अप्रैल में खाली हो रही तीन राज्य सभा सीटों के लिए 26 मार्च को चुनाव होने हैं। इसमें कोटे से कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और बीजेपी कोटे से प्रभात झा और सत्यनारायण जटिया के राज्यसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा है। अपने पुराने दोनों राज्यसभा सदस्यों को इस बार बीजेपी ने टिकट नहीं दिया है और उनकी जगह सिंधिया और हर्ष चौहान को राज्यसभा भेजने का फैसला किया है। बीजेपी के इस फैसले से प्रभात झा नाराज माने जा रहे हैं। वे पार्टी से इस्तीफा भी दे सकते हैं।
बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। इसी के बाद सिंधिया का बीजेपी कोटे से राज्यसभा जाना तय माना जा रहा था, जिस पर पार्टी ने बुधवार को मुहर लगा दी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी मुख्यालय में बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कराई। उनके इस कदम से कमलनाथ की सरकार पर संकट की स्थिति बनी हुई है।