राजू बाई के पास हाथों का हुनर तो सुशीला का पास हिसाब-किताब, चला रहीं ‘पंचायत कैफे’

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खेती और मजदूरी के लिए उन्होंने गाहे बगाहे ही गांव से बाहर कदम रखा और समाज ने उन्हें अब तक इसी सीमा में बांध रखा था। इनके घूंघट पर मत जाइए, ये सम्मान का पर्दा है। घर- परिवार, समाज-प्रशासन ने जरा सा भरोसा जताया और उन पांचों ने मिलकर कैफे शुरू कर दिखाया। सुबह किराना लाने से लेकर शाम तक सैकड़ों ग्राहकों के लिए चाय-काफी, नाश्ते का इंतजाम सबकुछ वे मिलकर करती हैं। शाम को कैफे बंद करने से पहले पक्का हिसाब-किताब भी बही खाते में दर्ज कर लेती हैं। अब कुशल व्यवसायी बन चुकी हैं ये ग्रामीण महिलाएं।

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