राजस्थान में सत्ता विरोधी लहर है या नही? एक आंकलन…

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राजेंद्र शर्मा पत्रकार ✍🏻
चुनावी महासंग्राम

राजस्थान में सत्ता विरोधी लहर है या नही?
एक आंकलन

लहर तो है।

गहलोत खेमा माने या न माने, पर गहलोत विरोधी लहर तो है। जो सिर्फ राजस्थान की जनता के बीच ही नही, बल्कि कांग्रेस कार्यकर्ताओ में भी चल रही है, और हाइकमान के दिमाग मे भी। राजस्थान में इस बार पेपर लीक, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, भ्रस्टाचार, रेप की घटनाएं, विधायको की दादागिरी, पेट्रोल डीज़ल के दाम, महंगाई जैसे ठोस मुद्दों के चलते आमजनता में परिवर्तन की स्प्ष्ट लहर तो है ही, पर कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओ में भी हताशा की लहर भी बहुत गहरी है। गहलोत जैसे पारंगत राजनेता जानते है कि सिर्फ अंतिम समय मे बांटी रेवड़ियों और विज्ञापनों से बने माहौल की परतों में, परिवर्तन की लहर को छुपाया नही जा सकता। उनकी हर सरकार का हश्र अंततः यही हुआ है। ये सही है कि राजस्थान की जनता अंत तक पत्ते नही खोलेगी, और चुपचाप मतपेटी तक पहुंचेगी। पर ये भी सच है कि पांच साल तक निष्क्रिय सरकार की नाकामयाबी को छुपाने के लिए आखिरी समय मे बांटी रेवड़ियों से उनके वोट खरीदे नही जा सकेंगे। ये न झुकने वाली स्मार्ट जनता है, जो स्वाभिमान से वोट देती है, न कि लालच में आ कर। तभी तो हर 5 साल में राज बदलती रही है। इस बार कुल 3.6 करोड़ मत पड़ना सम्भावित है। जिसमे से 1.1 करोड़ कांग्रेसी और 1.1करोड़ भाजपाइयों से अलग ये शेष एक करोड़ चालीस लाख मतदाता ही है जो सत्ता की राह तय करते है। लहर इन्ही की चलती है, जो इस बार प्रचंड है।
ये भीड़ में नही होते, रैली में नही होते, और सिर्फ रेवड़ियों पर नही ठोस आधार तय कर वोट देते है। बीजेपी की बगावत या वसुंधरा को किनारे करना इनकी सोच को इतना प्रभावित नही करता जितना सत्ता में बैठे निरंकुश विधायको की करतुते। ये मंत्रियों का भी अभिमान तोड़ती रही है।

कांग्रेस कार्यकर्ताओ में भी नाकाम गहलोत सरकार के विरोध की लहर है। उनके सपने टूटे है और वे नाउम्मीद है। उन्हें 5 साल में न संगठन में कुछ मिला, न सरकार में। राजनैतिक नियुक्तियां भी गहलोत के चहेते अफसर ले उड़े । यू. आई.टी. भी खाली रही और निगम भी अंत तक सूने रहे। संगठन बिखरा पड़ा है। सिर्फ विधायको के खास लोगो की भीड़ रैलीयों में दिख रही है, जो प्रायोजित है। उसके दम पर जनता को सन्तुष्ट करना असम्भव है।
गहलोत की सरकार बचा कर एहसान करने वाले विधायको ने 5 साल में जम कर मौज काटी है, जिससे उनके विरुद्ध एन्टी इनकम्बेंसी की प्रचंड लहर है। जो गहलोत तक को दिख रही है। पर गहलोत करे तो क्या करे? एहसान चुकाने के लिए फिर टिकट देना मजबूरी है। इसी आशा में ये विधायक धनबल व बाहुबल से फिर ताल ठोकने को लालायित है। पर कार्यकर्ता स्प्ष्ट रूप से हताश है। इसका असर राजस्थान के रिजल्ट पर निश्चित ही पड़ेगा। इससे भी घातक लहर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, खरगे माकन मिस्त्री वेणुगोपाल के दिमाग मे चल रही है। एक साल पहले हुई बगावत और बेइज्जती के बदले की लहर। जिसने हाइकमान की चूले हिला दी थी। उस बगावत के सभी हीरो अब ऊंट के नीचे आये है। उन्हें माफ करना मतलब भविष्य की बगावतों की जमीन तैयार करना। ऐसे में लगता है कि राहुल गांधी और खरगे राजनीति की बिसात पर शह और मात का प्लान बना चुके होंगे। किसी को नाराज भी नही करेंगे, और निबटा भी देंगे। अगला मुख्यमंत्री बगावती विधायक होटलों में बाड़ेबंदी से तय न करे, बल्कि एक लाइन का प्रस्ताव आसानी से पारित हो। ऐसा एक्शन प्लान तैयार करना हाईकमान की मजबूरी भी तो है।
समझदार उम्मीदवार तो दिल्ली जा कर कांग्रेसी परम्परा की पालना में अपनी निष्ठा हाईकमान के प्रति दर्शा आये, पर जो गहलोत रंधावा डोटासरा के भरोसे बैठे रहे, उनका नाम अभी भी बगावती लिस्ट में दर्ज है। मधुसूदन मिस्त्री उनमे से कुछ को आइना दिखा चुके है।

समझने वाले समझ गए, जो न समझा वो अनुशासनहीन है।

हाईकमान चाहता है कि नए चेहरो पर दांव लगाए जिसमे युवा हो महिलाएं हो और पार्टी की सोच के साथ चलने का माद्दा हो, लेकिन गहलोत गुट सिर्फ उन्हें उपकृत करना चाहते है जो उनके संकट के साथी है। इसी विरोधाभास में वो लहर छुपी है जो बीजेपी को सत्ता तक ले कर जाएगी।

मेरा आंकलन है कि गत 6 माह में इतनी रेवड़ियां बंटी कि जनता को ज्यादा सोचने समझ का मौका ही नही मिल सका। विज्ञापनो की बौछार हो गयी। सिर्फ वो प्रतिक्रियाए सामने आई जो सरकार के हित में थी, पर अभी काफी खेल बाकी है। कांग्रेस भाजपा के सारे टिकट अभी तक नही बंटे है, और दोनों दलों के घोषणापत्र भी नही आये है। बगावत और सिर फुटौवल होना भी बाकी है। इसलिए पूरी स्पष्टता नही है। पर फिर भी सामान्य आंकलन उपलब्ध है कि 5 साल में सरकार के रूप में हर मुद्दे पर गहलोत सरकार विफल रही, विधायक निरंकुश रहे है, कार्यकर्ता हताश रहा है, और गहलोत का युग खत्म हो चुका है, *फिर कैसे न माने की सरकार विरोधी लहर प्रचंड है?*

पर वो अभी सिर्फ दिमाग मे है, और परिणामो में स्पस्ट रूप से दिखाई देगी।

चुनावी समर है
आगे आगे देखिए होता है क्या??
www.gauravrakshak.in

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