नौकरशाही बनाम जनप्रतिनिधि : आईएएस ,आईपीएस और आईएफएस अधिकारी इस मामले में आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार

0
255

नौकरशाही बनाम जनप्रतिनिधि : आईएएस ,आईपीएस और आईएफएस अधिकारी इस मामले में आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार

गौरव रक्षक/दीप प्रकाश माथुर पूर्व (RAS)
जयपुर 24 नवंबर ।

सोमवार दिनांक 21 नवंबर को बीकानेर में राजीविका स्वयं सहायता समूह मिशन की महिलाओं के साथ , पंचायत राज मंत्री रमेश चंद्र मीणा द्वारा संवाद कार्यक्रम रखा गया था। जिसमें जिला कलेक्टर सहित जिले के आला अधिकारी मौजूद थे । इसी दौरान जिला कलेक्टर के मोबाइल पर राज्य सरकार के एक मंत्री का फोन आता है, जिसे जिला कलेक्टर द्वारा उठाकर बात की जाती है । जिला कलेक्टर के इस कृत्य पर बैठक में मौजूद तथा अध्यक्षता कर रहे राज्य सरकार के पंचायत राज्य मंत्री रमेश चंद्र मीणा द्वारा आपत्ति दर्शाई गई । और कहा कि मैं यहां मुख्यमंत्री की योजनाओं के लाभ बता रहा हूं और आप फोन पर बात कर रहे हैं ! बाहर जाइए यहां से । ब्यूरोक्रेट्स इतने हावी हो गए हैं क्या इस पर जिला कलेक्टर टेलीफोन पर बात करते हुए बाहर चले गए और बात समाप्त कर अपने बैठक में आ गए। इस घटना का राज्य में नौकरशाह पर बहुत गहरा असर पड़ा है। आईएएस ,आईपीएस और आईएफएस अधिकारी इस मामले में आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार हो गए हैं ।

तथा एक निश्चित आश्वासन माननीय मुख्यमंत्री से चाह रहे हैं । रमेश चंद्र मीणा का कथन है कि यह एक सामान्य घटना है । जबकि इसको सामान्य घटना मानना इस कारण से उचित नहीं कहा जा सकता की, अध्यक्षता कर रहा व्यक्ति किसी जिला कलेक्टर को बैठक से बाहर जाने के लिए कह रहे हैं । हालांकि यह बात सही है,ऐसी बैठक में टेलीफोन पर बात करना सामान्य शिष्टाचार नहीं माना जा सकता । किंतु जिला कलेक्टर का कार्य ही ऐसा है, जिसमें कई प्रकार की जिम्मेदारियां रहती हैं। एक गरीब किसान से लेकर मुख्यमंत्री तक के फोन जिला कलेक्टर के पास विभिन्न कार्यों से आते रहते हैं । अधिकांश फोन किसी विशेष कारण से ही आते हैं , जिन्हें जिला कलेक्टर को सुनना उनकी नैतिक व कानूनी जिम्मेदारी है। कोई फोन नजरअंदाज करना कलेक्टर के लिए परेशानी का सबब बन सकता है ।

ज्ञापन देते हुए
मान लीजिए यदि इन्हीं मंत्री जी का फोन यही कलेक्टर किसी और बैठक में रहते हुए नहीं उठाते! तो क्या इनका रवैया यही रहता! इसे सहज ही समझा जा सकता है।
इस घटना को लेकर आईएएस एसोसिएशन द्वारा भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। तथा उनमें काफी आक्रोश है।

हालांकि आईएएस एसोसिएशन अभी तक विरोध और विवादों से दूर रहा है ।

यह संगठन खुलकर किसी के विरोध में सामान्यतः नहीं आता है ।

लेकिन इस बार इस संगठन के प्रदेश सचिव डॉ समित शर्मा ने इस संबंध में अपनी बात कहते हुए कहा है कि, यह मुद्दा सरकारी कार्मिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए उठाया गया है । कोई भी सामने नजर से देख कर बता सकता है कि, बीकानेर अलवर में कलेक्टर की कोई गलती नहीं थी । फिर भी उन को अपमानित किया गया है। ऐसे में एसोसिएशन अपने हक की लड़ाई लड़ने को तत्पर है। डॉ समीत शर्मा के बयान के बाद आई एफ एस और आईपीएस एसोसिएशन द्वारा भी इस घटना का विरोध किया गया है , जिससे प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी और जनप्रतिनिधियों के बीच में विवाद और गहरा गया है। कुछ समय पूर्व प्रदेश सरकार के एक मंत्री ने नौकरशाहों की एसीआर भरने की मांग रखी गई थी, जिसको लेकर भी काफी विवाद हुआ। कई बार जनप्रतिनिधियों की पंचायत स्तर से लेकर सचिवालय स्तर के अधिकारियों से विवाद की घटनाएं सामने आती रहती हैं । इस प्रकार की घटनाओं का बढ़ना किसी भी राज राज्य के विकास में अवरोध पैदा कर सकते हैं ।

समय रहते इन पर सकारात्मक पहल की जानी चाहिए , जिसमें मुख्यमंत्री जी को पहल करना चाहिए । अन्यथा यह घटना कितने आगे तक राज्य को नुकसान पहुंचा सकती है इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है।
हालांकि इस तरह की घटनाएं देश में अन्य राज्यों में भी हो रही है और निरंतर इनकी संख्या में बढ़ोतरी हो रही है ।
इसमें किसका दोष है ,और किसका नहीं है! यह एक लंबी चर्चा का विषय हो सकता है । किंतु इस विवाद को किस प्रकार से कम किया जा सकता है इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
यह बात सही है कि लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों का एक विशेष महत्व होता है । उनके द्वारा जनता से वादे किए जाते हैं ।पार्टी के घोषणापत्र के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी भी ,मंत्रियों पर रहती है। जनप्रतिनिधि ,जन अपेक्षाओं एवं पार्टी के अपेक्षाओं को, नौकरशाही के माध्यम से लागू करवाते हैं। नौकरशाही ,नियम एवं व्यवस्था से बंधे हुए होते हैं ।ऐसी स्थिति में नौकरशाहों और राजनेताओं में विवाद होना स्वाभाविक है।

किसी भी सरकार के, तीन प्रमुख अंग होते हैं जिनके माध्यम से कानून व्यवस्था बनाए रखना तथा जनहित के कार्य कराए जाते हैं।

विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका मिलकर सरकार का संचालन करते हैं ।

कार्यपालिका और विधायिका एक दूसरे के पूरक हैं ,तथा न्यायपालिका ,न्यायिक कार्यों को देखती है। कार्यपालिका ,सरकार का वह अंग है ,जो नियम कानून को लागू करवाती है, तथा नियम कायदों को तय करती है। इनके माध्यम से, प्रशासनिक प्रबंधन किया जाता है। इसमें ना केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या अन्य मंत्री आते हैं ,अपितु सिविल सर्वेंट भी इसके अंग होते हैं ।
मंत्रियों को सामान्यत “राजनीतिक कार्यपालिका” कहा जाता है, जो सरकार की सभी नीतियों के लिए उत्तरदायी होती है। इसका दूसरा अंग होता है “नौकरशाही” जिसे “स्थाई कार्यपालिका” भी कहते हैं, जो सरकार के दैनिक प्रबंधन, के लिए उत्तरदायी होती है, तथा सरकार की नीतियों को जन जन तक पहुंचाती है।
जनता की सबसे ज्यादा अपेक्षा कार्यपालिका से ही रहती है । और इनका दैनिक रूप से सीधा संवाद कार्यपालिका से ही होता है । यह बात सही है कि हमारी कार्यपालिका, चाहे वह राजनीतिक व्यक्तियों से संबंधित हो ,अथवा नौकरशाही से संबंधित हो , अभी तक ब्रिटिश कालीन व्यवस्था से बंधी हुई नजर आती है । देश के वर्तमान हालत को देखते हुए नौकरशाही को लगभग हर चुनाव के बाद नए राजनीतिक समीकरणों में अपने आपको ढालना पड़ता है तथा राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र तथा उनकी नीतियों को लागू करवाने की जिम्मेदारी आती है। कई बार अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य नहीं होने से राजनेताओं में खिन्नता आती है और नौकरशाही से उनका विवाद हो जाता है।
देश हित में नौकरशाही और जनप्रतिनिधियों के बीच में टकराव अच्छा नहीं माना जा सकता। इन दोनों के बीच तालमेल होने से ही देश को विकास की नई दिशा मिल सकती है । समय रहते इस समस्या से निजात पाना बहुत जरूरी है। जनप्रतिनिधियों नौकरशाहों को मिलकर एक सकारात्मक पहल करते हुए टकराव से बचना चाहिए ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here