मजबूरी का वह दौर ऐसा था कि शादी के जेवर बेच कर खरीदा गया टिकट, जिसने बदल दी सुनक फैमिली की लाइफ; पढ़ें दिलचस्प कहानी

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मजबूरी का वह दौर ऐसा था कि शादी के जेवर बेच कर खरीदा गया टिकट, जिसने बदल दी सुनक फैमिली की लाइफ; पढ़ें दिलचस्प कहानी
गौरव रक्षक/ न्यूज नेटवर्क
दिल्ली 26 अक्टूबर।

त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम; देवो न जानाति कुतो मनुष्यः।।

अर्थात स्त्री का चरित्र और पुरुष का भाग्य देवता भी नहीं जानते, मनुष्य कैसे जान सकता है?,

यही ऋषि सुनक के साथ हुआ वह नहीं जानते थे कि नानी द्वारा जेवर बेचकर खरीदा गया टिकट उनके परिवार की जिंदगी बदल देगा ।

ऋषि सुनक के ब्रिटेन के पीएम बनने के ऐलान के बाद से ही दुनिया भर में लोग उनके बारे में जानने को उत्सुक हैं। वह एशियाई और खासतौर पर भारतीय मूल के ऐसे पहले शख्स होंगे, जो ब्रिटेन की सत्ता संभालेंगे ।
ऋषि सुनक के ब्रिटेन के पीएम बनने के ऐलान के बाद से ही दुनिया भर में लोग उनके बारे में जानने को उत्सुक हैं। वह एशियाई मूल के ऐसे पहले शख्स होंगे, जो ब्रिटेन की सत्ता संभालेंगे। ऐसे में ऋषि सुनक को लेकर हर किसी के मन में उत्सुकता है और लोग उनकी फैमिली लाइफ से लेकर उनके बीते दौर तक के बारे में जानना चाहते हैं। हालांकि यह बात कम ही लोगों को मालूम है कि ऋषि सुनक के परिवार का जीवन संघर्ष से भरा रहा है और यहां तक कि उनकी नानी को शादी के जेवर बेचकर अकेले ही ब्रिटेन जाना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने वहां कुछ वक्त नौकरी की तो पैसे कमाने के बाद फैमिली के दूसरे सदस्यों को भी बुला लिया। इस तरह ऋषि सुनक अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं, जो ब्रिटेन में है।
गर्व से खुद को हिंदू कहने वाले ऋषि सुनक की नाना और नानी भी पंजाब मूल के ही थे। 1960 के दशक में यह परिवार तंजानिया पहुंचा था, लेकिन वहां गुजारा हो पाना आसान नहीं था। इस बीच ऋषि सुनक की नानी सरक्षा ने अपनी शादी के जेवर बेचकर ब्रिटेन जाने का एक टिकट लिया था। मजबूरी का वह दौर ऐसा था कि जेवर बेचने के बाद भी अकेले ही ब्रिटेन जा सकीं और ऋषि सुनक की मां ऊषा समेत उनके तीन बच्चे और पति तंजानिया में ही रह गए। ब्रिटेन आने पर सरक्षा को लिसेस्टर में एक बुक कीपर के तौर पर काम मिल गया था। एक साल के अंदर उन्होंने इतने पैसे बचा लिए थे कि तंजानिया से परिवार को वापस बुला सकें।
इस तरह ऋषि सुनक की मां का परिवार ब्रिटेन आया था। वहीं कुछ ऐसा ही संघर्ष उनके पिता की फैमिली का भी था, जो अविभाजित भारत के गुजरांवाला से नैरोबी पहुंचा था और फिर रोजगार की तलाश में ब्रिटेन आ गया था। लेकिन ऋषि सुनक के परिवार ने पढ़ाई पर बहुत ध्यान दिया और शिक्षा की अलख से जीवन बदल गया। 1977 में ऋषि सुनक की मां ऊषा और पति यशवीर की शादी हुई थी। परिवार की सबसे बड़ी संतान ऋषि ही थे। उनके बाद छोटे भाई संजय सुनक हैं, जो पेशे से मनो चिकित्सक हैं। इसके अलावा छोटी बहन राखी संयुक्त राष्ट्र में काम कर करती हैं। पूरे परिवार की जिंदगी में यह बड़ा बदलाव शिक्षा की वजह से आया, जिस पर सुनक फैमिली ने हमेशा ध्यान दिया । इसीलिए कहते हैं विद्या ही सर्वश्रेष्ठ धन है ना उसे बांटा सकता है न उसे भुलाया जा सकता है । शिक्षा की बदौलत दुनिया की हर ऊंचाई पाई जा सकती है ।

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