भारतीय साहित्य के “अनमोल रत्न” “मुंशी प्रेमचंद” के जन्मदिवस 31 जुलाई पर विशेष.
गौरव रक्षक/ दीप प्रकाश माथुर
30 जुलाई, जयपुर
“भारतीय साहित्य” को दुनिया के साहित्य जगत का अनमोल भंडार कहा जाता है .हमारे देश ने “विश्व साहित्य ” को बहुत से लेखक, उपन्यासकार, कहानीकार ,नाटककार आदि दिए हैं .जिन्होंने देश का नाम ,पूरे विश्व में रोशन किया है .इन्हीं में से एक “मुंशी प्रेमचंद” के बारे में ,जितना लिखा जाए ,उतना ही कम है. यह एक उपन्यासकार, कहानीकार, उत्कृष्ट लेखक, बेबाक संपादक, अच्छे लेखक ,कुशल वक्ता, देशभक्त नागरिक, और संवेदनशील रचनाकार के रूप में प्रसिद्ध हुए .
इनका जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस जिले के “लमही” गांव में हुआ था .इनका बचपन बहुत अभाव में बीता; इनका परिवार ,एक गरीब परिवार था .
इनका वास्तविक नाम “धनपत राय श्रीवास्तव” था. इन्हें, भारतीय उपन्यास जगत, का सम्राट माना जाता है. इन्होंने 1880 से 1936 तक साहित्य सेवा में अपना योगदान दिया है.
इनकी रचनाओं में विशेष तौर पर दहेज, बेमेल विवाह, पराधीनता ;लगान, छुआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री पुरुष समानता ,आदि का चरित्र चित्रण मिलता है. मुंशी प्रेमचंद की रचना का काल, देश के साहित्य जगत में, परिवर्तन का काल माना जाता है. उस समय हिंदी जगत में ,तकनीकी सुविधाओं का अभाव था; तथा इस युग को, पुराने और आधुनिक युग, के मध्य की कड़ी कहा जा सकता है. इस दौरान देश में अंग्रेजो के खिलाफ, एक वातावरण बना हुआ था. जिसे “जंगे आजादी” का दौर भी ,कहा जा सकता है .इस दौरान ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध ;मुंशी प्रेमचंद द्वारा काशी से निकलने वाली, एवं उन्हीं के द्वारा संपादित, “जागरण” और “हंस” पत्रिकाओं में मुंशी जी ने अंग्रेजों के अत्याचार, के खिलाफ ,जनमानस को समझाया; और उनके अत्याचारों को आम जनता के बीच लेकर आए .उस समय “महात्मा गांधी” के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के तहत , सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन और भूख हड़ताल जैसे कार्यक्रमों ने ,ब्रिटिश हुकूमत को, खुली चुनौती दी थी .इसी दौरान मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मिलकर, भारतीय मूल्यों और संस्कारों पर आधारित, हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी.
मुंशी प्रेमचंद का बचपन, बहुत ही गरीबी में गुजरा, किंतु अपनी विलक्षण प्रतिभा के दम पर उन्होंने श्रेष्ठ कहानीकार, उपन्यासकार के रूप में, साहित्य जगत में अपना, विशेष स्थान बनाया. मुंशी प्रेमचंद द्वारा मैट्रिक तक की पढ़ाई ;घर में रहकर करी .उसके पश्चात, स्कूल दूर होने से उन्होंने ,स्कूल के समीप, एक कमरा किराए पर लिया और एक वकील परिवार के यहां ट्यूशन पढ़ाकर, अपना व अपने परिवार का जीवन यापन करने लगे .इसके पश्चात उन्होंने अंग्रेजी साहित्य, पर्शियन और इतिहास विषय में ;स्नातक डिग्री प्राप्त की .
उनका पहला कहानी संग्रह “सोजे वतन” था. जिसे अंग्रेजी हुकूमत ने, जप्त कर लिया था. मुंशी प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में; उपन्यास, कहानी ,नाटक, समीक्षा, लेख, संपादकीय, संस्मरण, आदि को शामिल किया .
उनके द्वारा 15 से अधिक उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, सात बाल पुस्तकें; 3 नाटक ,सैकड़ों की संख्या में लेख, संपादकीय, भूमिका, पत्र, भाषण, आदि रचनाएं की .
उनके बेटे ने “अमृत राय” ने “मुंशी प्रेमचंद “की जीवनी ,”कलम का सिपाही” के नाम से लिखी.
मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं में ,सेवा सदन, प्रेम आश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि उपन्यास, काफी सराहे गए. इसी प्रकार ,उनकी लिखी हुई कहानियों में ;कफन ,पूस की रात ,पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी ,दो बैलों की कथा ,बूढ़ी काकी, आदि बहुत प्रसिद्ध हुई.
उनकी अधिकांश रचनाएं ,हिंदी और उर्दू में प्रकाशित हुई और उनकी रचनाओं का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद की अनुवाद किया गया. जो विश्व स्तर पर ,काफी लोकप्रिय रही.
मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर ,उनके बारे में छोटी सी. जानकारी, आप लोगों को दी गई है .आशा है आप इसे पसंद करेंगे