अपने गुरु का सदा आदर करो, सम्मान करो, गुरु “ब्रह्मा, विष्णु, महेश” के समान होते है ।

0
346

अपने गुरु का सदा आदर करो, सम्मान करो, गुरु “ब्रह्मा, विष्णु, महेश” के समान होते है ।

उप आदर्श : सम्मान, आदर
आदर्श : सही आचरण
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः
गुरुर ब्रह्मा : गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं.
गुरुर विष्णु : गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं.
गुरुर देवो महेश्वरा : गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं.
गुरुः साक्षात : सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष
परब्रह्म : सर्वोच्च ब्रह्म
तस्मै : उस एकमात्र को
गुरुवे नमः : उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करता हूँ.
गुरु गु : अन्धकार
रु : हटाने वाला

कहानी :
एक समय की बात है एक रमणीय वन में एक आश्रम था. वहाँ महान ऋषि धौम्य अपने अनेकों शिष्यों के साथ रहते थे. एक दिन एक तंदुरूस्त एवं सुगठित बालक ,उपमन्यु, आश्रम में आया. वह देखने में शांत, मैला व अव्यस्थित था. बालक ने महान ऋषि धौम्य को नमन किया और उसे उनका शिष्य स्वीकार करने का निवेदन किया.
उन दिनों जीवन के वास्तविक आदर्शों तथा सभी में ईश्वर को देखने की शिक्षा-प्रशिक्षण देने के लिए, शिष्यों को स्वीकार या अस्वीकार करने का निर्णय गुरु का होता था.
ऋषि धौम्य इस तगड़े बालक उपमन्यु को स्वीकार करने के लिए सहमत हो गए. हालाँकि उपमन्यु आलसी तथा मंद बुद्धि था पर उसे आश्रम के अन्य सभी शिष्यों के साथ रखा गया. वह अपने अध्ययन में ज़्यादा रूचि नहीं लेता था. वह धर्मग्रंथों को ना तो समझ पाता था और ना ही उन्हें कंठस्त कर पाता था. उपमन्यु आज्ञाकारी भी नहीं था. उसमें कई उत्तम गुणों का अभाव था.


ऋषि धौम्य एक ज्ञानसम्पन्न आत्मा थे. उपमन्यु के सभी दोषों के बावजूद वह उससे प्रेम करते थे. वे उपमन्यु को अपने अन्य उज्जवल शिष्यों से भी अधिक प्यार करते थे. उपमन्यु भी ऋषि धौम्य को अपना प्रेम लौटाने लगा. अब वह अपने गुरु के लिए कुछ भी करने को तैयार था.
गुरु को ज्ञात था कि उपमन्यु अत्यधिक खाता है और इस कारण सुस्त और मंद था. अत्यधिक भोजन इंसान को उनींदा और अस्वस्थ महसूस कराता है और हम स्पष्ट रूप से सोच नहीं पाते. इससे ‘तमोगुण ‘ (सुस्ती) का विकास होता है. ऋषि धौम्य चाहते थे कि उनके सभी शिष्य उतना ही खायें जितना स्वस्थ शरीर के लिए अनिवार्य है तथा ४” की निरंकुश जीभ पर नियंत्रण रखें.
अतः ऋषि धौम्य ने उपमन्यु को आश्रम की गायों को चराने के लिए अति सवेरे भेजा और संध्याकाल लौटने को कहा. ऋषि की पत्नी उपमन्यु के लिए दोपहर का आहार बनाकर देतीं थीं.
पर उपमन्यु की भूख जोरावर थी. भोजन करने के पश्चात् भी वह भूखा रहता था. अतः वह गायों का दूध दोहकर दूध पी लेता था. ऋषि धौम्य ने देखा की उपमन्यु मोटा हो रहा था. ऋषि चकित थे कि गायों के साथ चारागाह तक चलने और सादा भोजन करने के बाद भी उपमन्यु का मोटापा कम नहीं हो रहा था. उपमन्यु से सवाल करने पर उसने ईमानदारी से बताया कि वह गायों का दूध पी रहा था. ऋषि धौम्य ने कहा कि उसे दूध नहीं पीना चाहिए क्योंकि वह गायें उसकी नहीं थीं. उपमन्यु अपने गुरु की आज्ञा के बिना दूध नहीं पी सकता था.
उपमन्यु सरलता से सहमत हो गया. उसने देखा कि बछड़े जब अपनी माताओं से दूध पीते थे तो दूध की कुछ बूँदें गिर जातीं थीं. वह इस दूध को अपने हाथों से एकत्रित कर पी जाता था.
ऋषि धौम्य ने देखा कि अभी भी उपमन्यु का वज़न कम नहीं हो रहा था. उन्हें बालक से ज्ञात हुआ कि वह क्या कर रहा था. ऋषि ने उपमन्यु को सप्रेम समझाया कि गाय के मुँह से गिरा हुआ दूध पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. उपमन्यु ने कहा कि वह इस दूध का सेवन पुनः नहीं करेगा.
परन्तु उपमन्यु अभी भी अपनी भूख पर नियंत्रण नहीं कर पाया. एक दोपहर उसने पेड़ पर कुछ फल देखे और उन्हें खा लिया. ये फल जहरीले थे और उन्होनें उपमन्यु को अँधा बना दिया. उपमन्यु दहल गया और यहाँ-वहॉँ लड़खड़ाते हुए एक गहरे कुएँ में जा गिरा. जब गायें उसके बिना घर लौट गईं तो ऋषि धौम्य उपमन्यु की तलाश में निकल गए उन्होंने उसे एक कुएँ में पाया और उसे बाहर निकालकर लाये. उपमन्यु के लिए दया और करुणा से परिपूर्ण ऋषि धौम्य ने उसे एक मन्त्र सिखाया. इस मन्त्र के उच्चारण से जुड़वाँ अश्विनकुमार (देवताओं के चिकित्सक) प्रकट हुए और उन्होंने उपमन्यु की दृष्टि वापस लौटा दी.


तत्पश्चात ऋषि धौम्य ने उपमन्यु को समझाया कि लालच उसे तबाही की ओर ले गया था. लालच ने उपमन्यु को अँधा बना दिया और वह कुएँ में गिर गया. वहॉँ उसकी मृत्यु भी हो सकती थी. बालक को उसका सबक समझ में आ गया और उसने अत्यधिक खाना छोड़ दिया. जल्द ही वह दुरूस्त, स्वस्थ और बुद्धिमान व चतुर भी बन गया.
ऋषि धौम्य ने उपमन्यु के हृदय में गुरु के लिए प्रेम उत्पन्न किया अतः गुरु ने ब्रह्मा, सृष्टिकर्ता, की भूमिका अदा की.
ऋषि ने अपने प्रेमपूर्ण सुझाव से अपमन्यु में प्रेम की संरक्षा की तथा उसे कुएँ में मरने से बचाया. अतः गुरु ने विष्णु, संरक्षक, की भूमिका अदा की.
अंततः गुरु ने उपमन्यु की लालच का विनाश कर महेश्वर, तमोगुणों के विनाशक, की भूमिका अदा की और उपमन्यु को सफलता की ओर अग्रसर किया.
सीख:
गुरु एवं शिक्षक ही वो हैं जो हममें उचित आदर्शों की स्थापना करतें हैं और सही मार्ग दर्शाते हैं. हमें अपने शिक्षक के प्रति सदा आदर और कृतज्ञता दर्शाना चाहिए

एक जुट होकर कार्य करना

“अनुभव”

सेवा करने वाले हाथ, प्रार्थना करने वाले होठों से अधिक पवित्र होते हैं

“उचित आचरण”

ईश्वर अमीर व गरीब में भेदभाव नहीं करते ।

लेख- सह संपादक प्रियला शर्मा✍✍

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here