सफलता की कहानी अक्सर हमें मजबूत बनाती है ऐसी ही आज हम कहानी लेकर आए हैं आईएएस मोहित बुंदस की ।
चयन नही हुआ तो महिला मांग रही थी इच्छा मृत्यु, कलेक्टर ने अपनी मां की संघर्ष की कहानी बताई तो महिला रह गई देखते रह गईं
मोहित बुंदस ने कहा था कि उनकी मां ने बहुत कठिनाइयों का सामान किया। जिंदगी की लंबी लड़ाई लड़ते-लड़ते उन्होंने मोहित और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण किया था।
बात साल 2019 की है। अक्टूबर के महीने में एक दिन मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में जन सुनवाई चल रही थी। जन सुनवाई में पहुंची एक महिला ने वहां के कलेक्टर मोहित बुंदस को अपना एक आवेदन दिया था। जन सुनवाई के दौरान महिला के आवेदन को देख मोहित बुंदस चौक गए। दरअसल इस महिला ने इच्छा मृत्यु का आवेदन दिया था। महिला से जब पूछा गया कि आखिर वो मरना क्यों चाहती हैं तब उन्होंने उस बताया था कि वो राजनगर की रहने वाली हैं और उनका नाम केशकला है। उन्होंने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के लिए आवेदन दिया था पर उनका चयन नहीं हो सका, जिसके बाद वो जीना नहीं चाहती थीं।
महिला की यह बात सुनकर कलेक्टर मोहित बुंदस सारा काम छोड़ उस महिला के पास पहुंच गए थे और फिर उन्होंने महिला से कुछ ऐसा कहा जिसके बाद इस महिला ने अपना विचार बदल दिया। आज हम जिस आईएएस अफसर का यहां जिक्र कर रहे हैं उनके संघर्ष के बारे में जानकर आप चौंक जाएंगे। आपको बता दें कि उस वक्त मोहित बुंदस ने उस महिला को अपनी मां के संघर्ष की कहानी सुनाई थी जिसे जानने के बाद महिला दंग रह गई थी। राजस्थान के जयपुर के रहने वाले मोहित बुंदस ने खुद बताया था कि उनके आईएएस बनने की कामयाबी की कहानी उनकी मां ने लिखी थी।
मोहित बुंदस जब महज 10 साल के थे तब उनके पिता की मौत हो गई थी। उनसे पहले मोहित के बड़े भाई की एक्सीडेंट में जान चली गई। पति व बेटे की मौत के बाद मोहित की मां ने न केवल खुद को संभाला बल्कि बेटे को भी आगे बढ़ने की हिम्मत दी। छतरपुर के कलेक्टर रहते हुए मोहित बुंदस अक्सर अपने सफलता और मां के संघर्ष की कहानी लोगों को खुद बता चुके हैं। 18 दिसंबर 2006 से 24 अगस्त 2011 तक झारखंड कैडर में मोहित बुंदस आइपीएस रहे, मगर मां की इच्छा थी कि बेटा आईएएस बने। वर्ष 2011 में आईएएस बनकर मोहित बुंदस ने मां का यह ख्वाब भी पूरा कर दिया। मोहित बुंदस ने कहा था कि उनकी मां ने बहुत कठिनाइयों का सामान किया। जिंदगी की लंबी लड़ाई लड़ते-लड़ते उन्होंने मोहित और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण किया था। अगर मेरी मां सोच लेती कि मेरे पति नहीं हैं, मैं बच्चों का पालन-पोषण कैसे करूं अगर मेरी मां हार मानकर बैठ जाती तो क्या आज मैं आईएएस होता। उन्होंने संघर्ष किया और मुझे उसका फल मिला। मोहित के मुताबिक उन्होंने मां के साथ-साथ पिता का भी फर्ज निभाया और उनकी परवरिश कर 21 साल की उम्र में आईपीएस बना दिया था।