किसी ने सोचा ना होगा, कि समय ऐसा भी आएगा, बेटे ने नहीं चुकाया पिता का ऋण, शव लेने से किया इंकार- 

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किसी ने सोचा ना होगा, कि समय ऐसा भी आएगा ,बेटे ने नहीं चुकाया पिता का ऋण ,शव लेने से किया इंकार ।

कोरोना से हुई पिता की मौत, जज बेटे ने शव लेने से किया इंकार, अंतिम संस्कार में भी नहीं हुए शामिल।

कहते हैं पुत्र रत्न की प्राप्ति बगैर पितृऋण से मुक्ति नहीं मिलती है। पुत्र कुलतारण व वंशवृद्धि का कारक माना जाता है, लेकिन एक 70 वर्षीय पिता को अंतिम दिनों में अपने ही पुत्र का साथ नहीं मिल सका। यह सब कोरोना संक्रमण से हुई मौत की वजह से हुई है। पिता के अंतिम दर्शन व विदाई में पुत्र शामिल नहीं हो सका।
स्वास्थ्य विभाग के एक डॉक्टर ने बताया कि कुछ रोज पहले एक न्यायाधीश ने अपने बीमार पिता को डायट स्थित डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर पर भर्ती कराया था। जांच के दौरान उनके पिता कोविड-19 की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव निकली। अस्पताल प्रबंधन ने उनकी देखरेख की। आखिरकार इलाजरत न्यायाधीश के वृद्ध पिता की देर रात मौत हो गयी।

कोरोना संक्रमण के चलते न्यायाधीश ने शव ले जाने की बजाए एक पत्र जारी कर दूसरे व्यक्ति को शव लेने को लेकर अधिकृत कर दिया। इस संजीदे मामले को देखते हुए डीएम अमित पांडेय के हस्तक्षेप के बाद प्रभारी सिविल सर्जन डॉ एमआर रंजन सेंटर पहुंचकर शव को अधिकृत व्यक्ति को सौंप दिया। जिसने न्यायाधीश के पिता के शव का आपदा साथी ग्रुप के सहयोग से अंतिम संस्कार किया।

शहर के डाइट परिसर में चल रहे डेडीकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर में शुक्रवार रात एडीजे – 6 जीवन लाल के 70 वर्षीय पिता ब्रह्मदेव की मौत हो गई। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने रात्रि में ही सूचना जज साहब को दी। लेकिन जज साहब ने कहा की डेड बॉडी हम अपने यहां नहीं लाएंगे। पूरा परिवार संक्रमित हो जाएगा। आप अपने स्तर पर दाह- संस्कार करवा दीजिए । 20 घंटे से अधिक समय तक डेड बॉडी अस्पताल में ही पड़ी रही । बाद में जिला प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद जज साहब ने अधिवक्ता गणेश राम को पत्र देकर दाह संस्कार के लिए अधिकृत किया। जिला प्रशासन ने समाजसेवी श्रीनिवास यादव के सहयोग से कंधवारा दहा नदी के तट पर जज साहब के पिता जी का अंतिम संस्कार करवाया । अंतिम संस्कार में पिता को न तो जज पुत्र कंधा नसीब हुआ और ना हीं मुखाग्नि ।

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