हवन से करे वायु शुद्धि और कोरोना का नाश ।
आज हमारे देश में दुनिया में कोरोना रूपी राक्षस इंसानी जिंदगी को हर मिनट निगल रहा है। ऐसी विकट परिस्थितियों में मेरे देश के उन महान यज्ञाचार्य एवं कर्मकांडी पंडितों और देश के बड़े-बड़े संत महात्माओं से करबद्ध निवेदन है कि, सरकार की गाइड लाइन के अनुसार, अपने जिले के कलेक्टर से अनुमति लेकर ऐसे पांच लोग, जिन्हें मंत्रो का ज्ञान हो । वह लोग
खुले में यज्ञ करें। जो हमारे पुराणों में रोगों का नाश करने के लिए में मंत्र लिखे है। कोरोना को भगाने के लिए उन मंत्रों का उच्चारण कर, श्रद्धा के साथ आहुतियां दें । जिससे कि कोरोना रूपी राक्षस का नाश हो सके।
और मानव की जिंदगी बचाई जा सके। और यह सिद्ध हो सके कि हमारे मंत्रों में और आहुतियो में ऐसी शक्ति है , जो ऐसी विकट परिस्थिति में भी देश, दुनिया को बचाया जा सकता है। और हम जो बचपन से सुनते आ रहे हैं कि , विश्व का कल्याण हो । और एक बार फिर विश्व को हमारे मंत्रों का लोहा मनवाया जा सकता है। और विश्व के लोगों में यह आस्था ओर मजबूत हो जाएगी की वाकई मंत्रों में शक्ति है ।और मानव के हित में कार्य किया जा सकता है । जिससे यह त्रासदी रोकी जा सके । और मेरा सभी से आग्रह है कि, हर व्यक्ति को एक एक पत्र या ईमेल के माध्यम से भारत सरकार से निवेदन किया जाए ,कि हमें केवल पांच पांच लोगों को खुले में यज्ञ अनुष्ठान करने की इजाजत दी जाए। जिससे कि मानव जिंदगी बचाई जा सके ।और हम बचपन से सुनते आ रहे हैं, हमारे बड़ों से, की यज्ञ आदि करने से वायु शुद्ध होती है और बीमारियों का नाश होता है । जब कभी देश में बड़े-बड़े यज्ञ होते हैं तो वहां हमारे यज्ञाचार्य जी जयकारा लगाते हैं कि विश्व का कल्याण हो , को अंजाम देकर विश्व को इस महामारी से बचाएं ।
🔴 यज्ञ के विषय पर हमने हमारे पुराणों में यह पढ़ा और सुना हुआ है ।
यज्ञ करने से, वातावरण में विचरण कर रहे तथा छुपे हुए रोग के कीट नष्ट हो जाते हैं. इन जीवों के नष्ट होने से, इस से उत्पन्न होने वाले रोग भी नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार जो शक्ति रोग पैदा करने वाली होती है, वह नष्ट होने से रोग भी नष्ट हो जाते हैं. इस पर मन्त्र प्रकाश डालते हुए कह रहा है कि ।
🔴 ऋ07.1.7 विश्वाअग्नेऽपदहारातीर्येभिस्तपोभिरदहोजरूथम्। प्रनिस्वरंचातयस्वामीवाम्॥
इस मन्त्र में प्रभु से प्रार्थना करते हुए यज्ञ की अग्नि को संबोधन किया गया है तथा प्रार्थना की गयी है कि
१. यज्ञ से कष्टों का नाश मन्त्र उपदेश करते हुए कहता है कि हे यज्ञग्ने! आप ही अपनी तेज अग्नि के बल पर, तेज गर्मी के बल पर सब कष्टों को दूर करते हैं। हम जानते हैं कि यज्ञ की अग्नि को तीव्र करने के लिए , अग्नि को प्रचंड करने के लिए इस में उतम घी तथा उतम औषधियों से युक्त सामग्री की आहुतियाँ दी जाती है| इन में पौष्टिकता होती है, यह सुगंध से भरपूर होती है, इस में उतम उतम रोग नाशक बूटियाँ डाली जाती हैं और इस के साथ ही साथ इसमें डाली जाने वाली घी व सामग्री में अग्नि को तीव्र करने की शक्ति भी होती है. यज्ञ करते समय हम कुछ वेद मन्त्रों का भी गायन करते हैं. यह मन्त्र गायन भी सुस्वास्थ्य के लिए उपयोगी होते है. इस प्रकार मन्त्र के माध्यम से हम प्रभु से प्रार्थना है करते हैं कि हे प्रभु! इस वायुमण्ड्ल में जितने भी प्राणी हमें हानि देने वाले हैं, जितने भी प्राणी हमें रोग देने वाले हैं, उन्हें भस्म कर दो, नष्ट कर दो।, उन्हें अपनी अग्नि में भस्म कर दो। अर्थात् जब हम यज्ञ करते हैं तो इस में डाली जाने वाली सामग्री में एसे पदार्थ डाल कर इसे करते हैं, जिन की ज्वाला निकलने वाली गैसों से यह रोग के कीटाणु स्वयमेव ही नष्ट हो जाते हैं। यदि कोई कीटाणु बच भी जाता है तो यज्ञ की इस अग्नि में जल कर नष्ट हो जाता है.
२. यज्ञ से तापक शक्ति का नाश हमारे अन्दर समय समय पर अनेक कारणों से रोगाणु पैदा होते रहते हैं. जब यह रोगाणु हमारे शरीर की शक्तियों से कहीं अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं. इन की शक्ति हमारे अन्दर की शक्तियों से अधिक हो जाती हैं तो इस का परिणाम जो हम जानते हैं वही होता है अर्थात् हम रुग्ण हो जाते हैं. हम जानते हैं कि शल्य सदा कमजोर पर अथवा शक्ति विहीन पर एसा भयंकर आक्रमण करता है, ( राक्षसी वृति के लोगों के सम्बन्ध में भी कुछ एसा ही कहा जाता है कि जब वह सामने वाले को कमजोर पाते हैं तो वह उस पर चारों और से एसा भयंकर आक्रमण करते हैं कि सामने वाला जब तक उसे कुछ समझ में आता है और वह संभलने की सोचता है तब तक वह राक्षसों से इस प्रकार घिर जाता है कि उससे निपट पाना उसके लिए कठिन हो जाता है , उनका प्रतिरोध उस की शक्ति में रहता ही नहीं इस कारण वह या तो नष्ट हो जाता है और या फिर आत्म समर्पण कर देता है कि हमारा शारीर इस कष्ट से तप्त हो जाता है. कुछ ऐसी ही अवस्था शरीर में पल रहे रोगाणुओं की, शरीर में पल रहे शल्य की होती है.
ज्यों ही यह शरीर को कमजोर पाते हैं तो वह इस शरीर पर एसा आक्रमण करते हैं कि हम संभल ही नहीं पाते. इनके दिए ताप से तप्त होकर हम स्वयं को शक्ति विहीन सा अनुभव करते हैं और शीघ्र ही शिथिल होकर बिस्तर को पकड़ लेते है. अनेक बार तो यह रोग हमारी मृत्यु का कारण भी बनते हैं. इसलिए रोग की जो तापक शक्ति होती है , उससे बचने के लिए जब हम यज्ञ करते हैं तो यज्ञ करते हुए इस के साथ हम यज्ञ देव से यह प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे अग्निदेव ! उस को तूं नष्ट करके हमें स्वस्थ कर अर्थात् हे यज्ञाग्नि इन रोगाणुओं की तापक शक्ति को नष्ट कर हमें स्वस्थ बना . इस सब का भाव यह है कि यह यज्ञ की अग्नि रोग की तापक शक्ति को नष्ट कर देता है. इस अग्नि के तेज से रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं तथा जो जन प्रतिदिन दो काल यज्ञ करते हैं अथवा जो लोग यज्ञ स्थल के समीप निवास करते हैं, यह यज्ञ की अग्नि उनके अन्दर बस रहे रोग के कीटाणुओ का भी नाश कर देती है. इस प्रकार उसके शरीर के अन्दर के कीटाणुओं के नष्ट होने से वह निरोग हो जाता है. इस यज्ञ से उस के अन्दर इतनी प्रतिरोधक शक्ति आ जाती है कि रोग के कीटाणु भयभीत हो कर इस शरीर से दूर भागने लगते हैं और अब रोग के यह कीटाणु किसी रोग की उत्पति के लिए यज्ञकर्ता पर आक्रमण करने का साहस ही नहीं कर पाते. इससे धीर धीरे यह रोग ओझल ही हो जाता है. इस सब से यह तथ्य सामने आता है कि यज्ञ और इसकी अग्नि हमारे शरीर को सदा स्वस्थ रखने का एक बहुत बड़ा साधन है. स्वास्थ्य लाभ के लिए हम प्रतिदिन दो काल उतम सामग्रियों से यज्ञ करें.।
अब वह समय आ चुका है कि आप लोग यज्ञ जैसे महान कार्य को अंजाम देकर विश्व को इस महामारी से बचाएं ।