प्रिज्म जॉनसन लिमिटेड सीमेंट फैक्ट्री के लिए प्रशासन ने किसानों की जमीन पर चलाई जेसीब
ये कैसा सिस्टम फैक्ट्री को जबर्दस्ती कौडियों के दाम दिलाई जा रही किसानों की जमीन
सतना। सरकारें और प्रशासन उद्योगपतियों के लिए काम करती है सब जानते है लेकिन जब किसान की खून पसीने को ही चूसने पर उतारू हो जाये तो इससे ज्यादा शर्म की बात क्या हो सकती है। बुधवार को ऐसा ही हुआ जब प्रिज्म जॉनसन सीमेंट फैक्ट्री ने किसानों की साढ़े 6 एकड़ जमीन पर कब्ज़ा कर लिया। और यह सब तहसीलदार और पुलिस ने किया। बताया गया की *रामपुर बाघेलान के ग्राम बगहाई में देवेन्द्ग सिंह, मधुराज सिंह, जगजाहिर सिंह, छत्रपाल सिंह और लवकुश सिंह की लगभग साढ़े 6 एकड़ जमीन प्रिज्म सीमेंट लेना चाहता जहां वह माइंस लगाकर पैसा छाप सके लेकिन सही मुआवजा नहीं देने से किसानों ने जमीन फैक्ट्री को देने से मना कर दिया*। तब फैक्ट्री ने तत्कालीन कलेक्टर के माध्यम से जमीन हथियाने का प्रयास किया तत्कालीन कलेक्टर ने बिना किसानों का पक्ष लिये भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 247(3)(4) के तहत एकपक्षीय फैसला दे दिया। लेकिन किसानों ने रीवा कमीशनरी में कलेक्टर के फैसले को चुनौती देते हुए अपील की कमीशनर ने भी पाया की कलेक्टर द्वारा जमीन मालिक का पक्ष सुने बगैर एकपक्षीय आदेश दिया गया जो न्याय हित में नहीं है कमीशनर ने अपील स्वीकार कर लिया जो अभी विचाराधीन है।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब प्रकरण चल रहा और खसरे में किसान की नीजी भूमि दर्ज है। उसको अभी मुआवजा नहीं मिला। वह अपनी जमीन नहीं बेचना चाह रहा तो कैसे उसकी जमीन पर तहसीलदार ने पुलिस की मौजूदगी में गेंहू की खड़ी फसल पर जेसीबी चलवा दी?
क्या ऐसे ही किसानों की जमीन को कौडियों के दाम जबर्दस्ती प्रशासन कंपनियों को दिलवाता है। क्या किसान को अपनी जमीन उचित रेट में बेचने का हक नहीं? क्या लोकसेवक केवल शब्द मात्र है? क्या सिस्टम को यह आजादी दी गई है कि वह मनमानीपूर्वक अधिकारों का उपयोग करे? क्या सिस्टम को परदे के पीछे से धन्नासेठ या कार्पोरेट चला रहे हैं? अगर ऐसा नहीं है तो फिर किसानों की खेत को क्यों रौंदा गया।
वह भी तब जब जमीनों का मामला कमिश्नर न्यायालय में विचारधीन है।
*बेरहम सिस्टम ने मेहनत फर चलाया बुल्डोजर*
एक ओर जहां दिल्ली के बार्डर में किसान हक के लिए अड़ा हुआ है वहीं सुदूर सतना के गांव बगहाई में सिस्टम ने बड़ी बेहरमी के साथ उनकी मेहनत पर जेसीबी चलवा दी। मौके पर तहसीलदार भी मौजूद थीं। सिस्टम की इस मनमानी में देवेन्द्ग सिंह और मधुराज सिंह के एक एकड़ उगी गेहहूं की फसल बर्बाद हो गई। इसी तरह जगजाहिर सिंह, छत्रपाल सिंह और लवकुश सिंह के डेढ़ एकड़ की फसल को चौपट कर दिया गया। बताया गया है कि वर्ष 2017-18 में तत्कालीन कलेक्टर ने इन जमीनों के अधिग्रहण की सूचना जारी की थी। इसके बाद मामला रीवा कमिश्नर की अदालत में चला गया। मामला अभी भी विचारधीन है। पीड़ित किसानों ने बताया कि इन जमीनों का खसरा अभी भी निजी ही दर्ज है। इसके बाद भी बिना किसी पूर्व सूचना के कार्रवाई की गई।
*गरीब की जमीन कौडी के भाव, रसूखदार के लिए करोड़ों*
सूत्र बताते है की फैक्ट्री रसूखदारों की जब जमीन लेती है तो उनको 80 लाख से लेकर एक करोड़ का मुआवजा देती है साथ ही फैक्ट्री में ठेकेदारी या फिर उनके बच्चों को नौकरी ऐसे सैकडों उदाहरण है लेकिन जब बात गरीब किसान की जमीन की आती है तो फैक्ट्री प्रशासन के मुंह में पैसा ठूस कर कानून का दुरउपयोग कर अपनी मर्जी से हथिया लोगों लेती है। और इसमें पुलिस से लेकर प्रशासन के जिम्मेदार भी पूरा साथ देते है।
*6.14 एकड़ के लिए दिये 3,58, 51,894*
बताया गया कि सरकारी गाइडलाइन के अनुसार एक एकड़ का लगभग 60 लाख रुपये फैक्ट्री देती है। 209-20 में 6 किसानों की कुल 6.14 एकड़(2.253हेक्टेयर) जमीन का 3,58,51,894 मुआवजा फैक्ट्री ने दिया। वहीं अब गरीबों की जमीन 18-20 लाख में जबर्दस्ती कर के ले रही है।
फैक्ट्री हमारी जमीन जबर्दस्ती लेना चाहती है हम अपनी जमीन बेचना नहीं चाहते। प्रशासन कंपनी के लिए काम कर रहा, प्रशासन बिना हमारी मर्जी के कैसे जमीन फैक्ट्री को दिला सकता है। जिनकी पकड़ नेता और प्रशासन से है उनको एक एकड़ का मुआवजा 63 लाख दिया जा रहा है लेकिन हमारी जमीन 20 लाख एकड़ में जबर्दस्ती प्रशासन फैक्ट्री को दिला रही है। मैने कर्जा लेकर गेहूं बोया था लेकिन तहसीलदार ने बुल्डोजर चलवा दिया। हमको फोन कर धमकी देती है कि मुकदमा ठोक कर जेल करवा दूंगी।
देवेन्द्ग सिंह, पीड़ित किसान
-अभी हमारा प्रकरण रीवा कमीशनरी में चल रहा है, हम अपनी जमीन बेचना नहीं चाहते, तहसीलदार और रामपुर पुलिस हमारी गेहूं कÞ खेत में जेसीबी चलवा दी है। फैक्ट्री पुलिस और अधिकारियों से धमकी दिलवाता है, किसान की कोई नहीं सुनता कंपनी कÞ लिए सब आ जाते है। जब तक हमारी जमीन का सही मुआवजा कंपनी नहीं देगी हम अपनी जमीन नहीं देंगे। अगर कंपनी और प्रशासन जबर्दस्ती करेगा तो मै आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाउंगा।
मधुराज सिंह, पीड़ित किसान
-आज पुलिस, फैक्ट्री और तहसीलदार ने हमारे खून-पसीने से बोई गई फसल पर जेसीबी चलवा दिया है। फैक्ट्री गरीब किसान की जमीन कौड़ियों कÞ दाम में ले रही है, हम अपनी जमीन बेचना नहीं चाहते। प्रशासन कहता है कि कानून है तुम को देना पड़ेगा। हमको तो यह नहीं पता कि कौन सा कानून है कि हमारी पुस्तैनी जमीन बिना हमारी मर्जी के कैसे फैक्ट्री को दे सकते है।
जगजहिर सिंह, पीड़ित किसान ।
रिपोर्ट;- शिवभानु सिंह