यह बयान नहीं—समाज पर सीधा प्रहार…अब सहनशीलता की सीमा पार हो चुकी है…
गौरव रक्षक/राजेंद्र शर्मा (राजस्थान सरकार से अधिस्वीकृत ✍🏻 स्वतंत्र पत्रकार)
27 नवम्बर 2025, भीलवाड़ा (राजस्थान)
देश की प्रशासनिक व्यवस्था का आधार निष्पक्षता और सामाजिक सद्भाव है। परंतु जब इसी व्यवस्था में बैठा कोई अधिकारी खुलेआम ऐसा जहर उगलने लगे जो समाज को टूटने की कगार पर पहुँचा दे, तो यह मात्र “गलत बयान” नहीं, बल्कि भारतीय सामाजिक संरचना पर हमला माना जाएगा। मध्यप्रदेश में पदस्थ एक IAS अधिकारी द्वारा हाल में की गई टिप्पणी ने करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाई है। यह बयान न केवल नारी सम्मान के विरुद्ध है बल्कि हिन्दू समाज की एकता को चोट पहुँचाने वाला है। ऐसे असंयमित वक्तव्य यह साबित करते हैं कि कुछ लोग उच्च पदों पर पहुँचकर स्वयं को कानून और नैतिकता से ऊपर समझने लगते हैं।
आरक्षण का उद्देश्य उत्थान था
कुछ लोगों ने उसे सत्ता का हथियार बना लिया…
आरक्षण का उद्देश्य उन वंचितों को आगे लाना था जिन्होंने सदियों से संघर्ष झेला। लेकिन आज दुखद तथ्य यह है कि कुछ लोग इसी नीति की आड़ लेकर स्वार्थ, कटुता और जातिगत जहर फैलाने का माध्यम बना चुके हैं। यह उन गरीब दलित परिवारों के साथ सबसे बड़ा अन्याय है जिनके अधिकार और अवसर हमेशा की तरह फिर पीछे धकेल दिए जाते हैं—और सामने आ जाते हैं ऐसे लोग जिनकी सोच ही सामाजिक सौहार्द के लिए खतरा बन जाती है।
ऐसी विकृत मानसिकता प्रशासन में रहकर क्या संदेश देती है?
जब किसी अधिकारी का वक्तव्य समाज को बांटने की भाषा बोलने लगे, जब वह परंपराओं का तिरस्कार करे, जब वह सनातन की सांस्कृतिक मर्यादाओं पर वार करे—तो यह केवल व्यक्तिगत गलती नहीं, बल्कि पूरी प्रशासनिक व्यवस्था की साख पर धब्बा है। ऐसे अधिकारी यह भूल जाते हैं कि प्रशासन में बैठकर उनका हर शब्द आदेश की तरह माना जाता है। इसलिए ऐसे बयान सीधे-सीधे सामाजिक विद्वेष को भड़काने की श्रेणी में आते हैं।
हिन्दू समाज का आक्रोश सिर्फ उचित ही नहीं—अनिवार्य है…
जिस देश में नारी को देवत्व की संज्ञा दी जाती है, जहाँ सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समरसता हमारी पहचान है—वहाँ किसी भी व्यक्ति का इस तरह की निम्नस्तरीय टिप्पणी करना अक्षम्य अपराध है। हिन्दू समाज का आक्रोश इस बात का प्रतीक है कि जनता अब ऐसे दोहरे चरित्र, दोहरापन और जातिगत नफ़रत फैलाने वाले व्यक्तियों को सहन करने के लिए तैयार नहीं है।
सरकार कार्रवाई करे—वरना स्थिति विस्फोटक हो सकती है। यह समय सरकार के लिए गंभीर परीक्षा का है।
यदि ऐसे बयान देने वाले अधिकारियों पर कड़ी और त्वरित कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मुद्दा केवल विवाद नहीं रहेगा—यह आत्मसम्मान और सामाजिक अस्तित्व का प्रश्न बन जाएगा। और जब समाज का धैर्य चूकता है, तो आंदोलनों की चिंगारी विशाल आग बनकर फैलती है—ऐसी घटनाओं का इतिहास सबके सामने है।
देश की शांति, सम्मान और गरिमा को बचाना ही होगा
यह केवल एक बयान का मामला नहीं—
यह उस मानसिकता के खिलाफ संघर्ष है जो समाज को टुकड़ों में बांटने की कोशिश कर रही है।
संविधान ने अधिकार दिए, सम्मान दिया, अवसर दिए—लेकिन जिन पर इन्हें सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी थी, वही यदि इन मूल्यों को चोट पहुँचाएँ, तो प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक ही नहीं, आवश्यक भी है।