राजस्थान में तबादलों का खेल : जब “ईमानदार अफसर” बन जाएँ सत्ता की आँख की किरकिरी..
गौरव रक्षक/राजेंद्र शर्मा
23अक्टूबर 2025, जयपुर ।
राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी में इन दिनों एक अजीब-सी विडंबना चल रही है। जो अफसर जनता की उम्मीद बनते हैं, जो अपने काम से व्यवस्था में भरोसा जगाते हैं, वही अचानक “तबादले की राजनीति” की भेंट चढ़ जाते हैं।
राज्य के हालिया घटनाक्रम किसी “सिस्टमेटिक पैटर्न” की तरह सामने आए हैं — जहाँ काम की गुणवत्ता नहीं, बल्कि लोकप्रियता तय कर रही है कि कौन अपनी कुर्सी पर रहेगा और कौन नहीं।
मारवाड़ से उठी ईमानदारी की लहर — और फिर आया आदेश
आईजी विकास कुमार, जिन्होंने नशे के कारोबारियों पर ऐसा शिकंजा कसा कि पूरे मारवाड़ क्षेत्र में हलचल मच गई। ड्रग माफिया की जड़ें हिल गईं, सैकड़ों गिरफ्तारी, ताबड़तोड़ छापेमारी, और आम जनता में यह विश्वास कि “अब सचमुच कुछ बदल रहा है”।
सरकार की सराहना भी हुई, पर तभी एक आदेश आया — “विकास कुमार का तबादला।”
जिस मुहिम की शुरुआत जनता ने तालियों से की थी, वह फाइलों के ढेर में दबी रह गई।
दिनेश एमएन — अपराधियों के लिए ‘दहशत’, जनता के लिए ‘उम्मीद’
फिर मंच पर आए एडीजी दिनेश एमएन।
उनकी कार्यशैली किसी सर्जिकल स्ट्राइक से कम नहीं थी। अपराधियों के ठिकाने पर एक के बाद एक कार्रवाई, गैंगवार पर नियंत्रण, और पुलिस बल में नई ऊर्जा।
लेकिन जैसे ही जनता ने राहत की सांस ली, एक और आदेश निकला — “दिनेश एमएन का तबादला।”
अपराधियों ने राहत की सांस ली, और जनता फिर सवालों में डूब गई —
“क्या सिस्टम सुधारने की सज़ा तबादला है?”
वी.के. सिंह — नकल माफिया के खिलाफ युद्ध, पर सियासत ने खींची लगाम
एडीजी वी.के. सिंह ने जब नकल माफिया पर प्रहार किया, तो वर्षों से जमा भ्रष्टाचार की परतें खुलने लगीं।
फर्जी परीक्षाओं का गोरखधंधा उजागर हुआ, और एक ऐसी व्यवस्था पर चोट पड़ी जो अंदर से सड़ चुकी थी।
लेकिन जैसे ही जड़ें हिलने लगीं, एक और आदेश आया — “वी.के. सिंह का तबादला।”
फिर वही कहानी, फिर वही अंत — जनता को जवाब नहीं, सिर्फ़ निराशा मिली।
राहुल प्रकाश — सख्त पुलिसिंग, सुधार की दिशा और फिर झटका
और अब बात आईजी राहुल प्रकाश की।
भरतपुर से जयपुर तक उनका नाम अनुशासन और एक्शन का पर्याय बन गया था। साइबर ठगों पर शिकंजा, अपराध नियंत्रण में तेजी, और ट्रैफिक व्यवस्था में अभूतपूर्व सुधार ।
यह सब ऐसे वक्त में हुआ जब आमजन पुलिस पर भरोसा खो चुका था। लोग कहने लगे, “अब पुलिस में सख्ती लौटी है।”
मगर फिर वही कहानी दोहराई गई — “राहुल प्रकाश का तबादला।”
अब सवाल जनता का है — क्या “अच्छा काम” ही अब अपराध बन गया है?
राजस्थान के लोगों के बीच अब यह सवाल गूंज रहा है —
क्या इस राज्य में “अच्छा काम करना” ही ट्रांसफर का नया पैमाना बन गया है?
या फिर जनता के बीच लोकप्रिय होना किसी के लिए “समस्या” बन गया है?
जो अफसर जनता के बीच भरोसे की दीवार खड़ी कर रहे थे, उन्हें हटा कर आखिर क्या संदेश दिया जा रहा है?
क्या यह शासन की नीति है — “जो काम करे, वो टिके नहीं”?
या फिर सिस्टम में बैठे कुछ लोग नहीं चाहते कि ईमानदारी की मिसालें लंबे समय तक टिकी रहें?
राजस्थान की जनता आज यही पूछ रही है —
“आखिर यह फिरकी कौन ले रहा है?”




