राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव 2023 एक विश्लेषण,सभी राजनीतिक दलों में एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड सी मची हुई है
गौरव रक्षक/पूर्व RAS दीप प्रकाश माथुर
जयपुर 13 अक्टूबर ।
सोमवार दिनांक 8 अक्टूबर को भारत के, मुख्य चुनाव आयुक्त, द्वारा पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया है. इसी के साथ चुनाव की बिछात सभी राज्यों में बिछ चुकी है.
इन राज्यों के विधानसभा चुनाव को आगामी लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल भी माना जा रहा है.
अलग-अलग राज्यों में, अलग-अलग मुद्दों पर चुनाव लड़े जा रहें हैं, लेकिन ,वर्तमान स्थिति को देखते हुए ,तो ऐसा लगता है ,की इन चुनाव में ,ना तो किसी के पक्ष में लहर है ,ना विपक्ष में लहर है ।
मतदाता आश्चर्यजनक चुप्पी साघै हुए हैं।
सभी राजनीतिक दलों में एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड सी मची हुई है ।
राजस्थान में गत विधानसभा चुनाव में दोनों मुख्य दल भाजपा और कांग्रेस के बीच वोटो में एक प्रतिशत से कम का अंतर रहा था. गत चुनाव में 12 से अधिक निर्दलीय विधायक चुनकर आए थे. इस बार भी बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवार अपना भाग्य आजमाने मैदान में उतरेंगे. इसके साथ ही क्षेत्रीय दल जैसे हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, दुष्यंत चौटाला की जन नायक जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार भी ,कई जगह से अपना भाग्य आजमा सकते हैं .
पिछली बार हनुमान बेनीवाल की पार्टी ने तीन सीट जीती थी तथा कई सीटों पर ,जीत हार का गणित बिगड़ा था .
इस बार भी यह पार्टी अपना वर्चस्व दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.
दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी द्वारा भी राजस्थान में अपने पैर जमाना चालू कर दिया है .बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी लंबे समय से राजस्थान में अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश कर रही है .
दोनों मुख्य दलों ,भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में जिसको भी टिकट नहीं मिलेगा ,उनमें से बड़ी संख्या में उम्मीदवार अपनी दल बदल कर, इन दलों के टिकट लेने के लिए कोशिश में लग जाएंगे ,और ये पार्टियों भी ऐसे उम्मीदवारों को अपने साथ मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.
कांग्रेस पार्टी में जब से सचिन पायलट का विरोध सामने आया है, तब से पार्टी अनुशासनहीनता के घेरे में चली आ रही है. मुख्यमंत्री अशोक मुख्यमंत्री गहलोत आला कमान की मंशा के खिलाफ 92 विधायकों के इस्तीफों हस्ताक्षर करा कर अपना बर्चस्व दिखा चुके हैं. जब से चुनाव की घोषणा हुई है ,तब से मुख्यमंत्री जी लगभग चुप्पी सड़े हुए हैं .मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा अपनी सरकार की योजनाओं को बढ़ा चढ़ा कर जनता के समक्ष प्रस्तुत किया गया . किंतु उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों द्वारा सरकार की इन योजनाओं का प्रचार प्रसार करने में कोई रुचि नहीं दिखाई. यह बात सही है कि, राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ आम जनता तक पहुंचा है, अर्थात बड़ी संख्या में मतदाता इन योजनाओं से लाभान्वित हुए हैं, किंतु लाभान्वित होने एवं प्रभावित होने में एक अंतर है ,कितने मतदाता इन योजनाओं से प्राप्त लाभ से प्रभावित हुए हैं अर्थार्त योजनाओं का लाभ लेकर कितने मतदाता कॉंग्रेस को वोट देंगे, इसका मतगणना के दिन ही आकलन हो सकेगा.
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद सरसरी तौर पर तो वर्तमान में नजर नहीं आ रहा ,किंतु जिस तरह का मनमुटाव इन दोनों के बीच में पूर्व में देखा गया था ,उससे ऐसा नहीं लगता है कि भविष्य में दोनों एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर पाएंगे .
इन दोनों के आपसी विवाद को गांव-गांव ढाणी ढाणी में महसूस किया जा रहा है. हर मतदान केंद्र तक पार्टी दोनों खेमो में बटी हुई है. इसका मतदाता पर कितना प्रभाव पडेगा यह भी एक प्रश्न चिन्ह है? मुख्यमंत्री गहलोत और सचिन पायलट दोनों ही अपने-अपने उम्मीदवारों के पक्ष में दिल्ली दरबार में पैरवी कर रहे हैं इस कारण कॉंग्रेस उम्मीदवारों की लिस्ट जारी नहीं हो पा रही है. राजस्थान का प्रदेश कांग्रेस कार्यालय लगभग सुना पड़ा हुआ है. उम्मीदवार के चयन की सारी गतिविधियां दिल्ली में केंद्रित हो गई हैं. कांग्रेस ने 6 महीने पहले यह कहा था कि वह अपने उम्मीदवारों की घोषणा चुनाव तारीख से 2 माह पहले कर देंगे लेकिन चुनाव घोषणा होने के उपरांत अभी तक उम्मीदवारों की घोषणा नहीं होना कहीं ना कहीं पार्टी के अंतर्कलह को सामने ला रहा है जिस आलाकमान को गहलोत द्वारा चुनौती दी गई थी वहीं गहलोत अब आलाकमान की शरण में जाकर अपने उम्मीदवारों की पैरवी करते नजर आ रहे हैं.
दूसरी और भारतीय जनता पार्टी द्वारा चुनाव घोषणा के साथ ही विधानसभा के लिए 41 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का चयन कर इसकी घोषणा की गई थी.
इस घोषणा के साथ ही देश की सबसे अनुशासित पार्टी के अंदर अनुशासनहीनता का उबार बाहर आ गया जगह-जगह विरोध प्रदर्शन शुरु गए .कई जगह तो जिन लोगों के टिकट कटे हैं उन्होंने खुली बगावत करने का संदेश दे दिया है. सभी 41 सीटों पर विरोध के स्वर बुलंद हो गए हैं .पार्टी के वरिष्ठ नेता इस असंतोष को दबाने के लिए प्रयास कर रहे हैं. किंतु ,उनके प्रयास कितने रंग लाते हैं ,यह अभी स्पष्ट नहीं है.
पार्टी द्वारा जिन उम्मीदवारों की घोषणा की गई है उससे यह स्पष्ट हो गया है, कि, जिन्होंने, पहले पार्टी लाइन से हटकर ,पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़े हैं ,अर्थात अनुशासनहीनता की गई है ,उनको भी पार्टी द्वारा टिकट दिए गए हैं .जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं में यह संदेश जा रहा है ,कि यदि हम भी बगावत कर देंगे तो भी पार्टी हमें फिर से अपने साथ मिला सकती है .कई ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिए गए हैं जो अन्य दलों से भाजपा में शामिल हुए हैं और एक से अधिक बार उनके द्वारा दल बदल किया गया है . उनकी भाजपा के प्रति ,विश्वसनीयता पर हमेशा संदेह बना रहेगा .एवं इससे पार्टी के मूल कार्यकर्ता जो लगातार पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं उनमें भी निराशा का भाव आएगा.
भाजपा में ,पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की भूमिका ,को लेकर भी लगातार संदेह हो रहा है.
भाजपा में अभी तक कि सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में श्रीमती वसुंधरा राजे को जाना जाता है. किंतु भाजपा द्वारा वसुंधरा राजे की भूमिका को कम करने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है.भाजपा द्वारा समय-समय पर राजेंद्र सिंह राठौड़ ,श्रीमति दिया कुमारी, गजेंद्र सिंह शक्तावत, सतीश पूनिया, ओम बिरला, अर्जुन मेघवाल ,अश्वनी वैष्णव, बाबा बालक नाथ आदि नामो को जनता बीच रखे गये, किंतु इन सभी नेताओं की छवि,श्रीमती वसुंधरा राजे की छवि के मुकाबले लायक नहीं बन पाई है. श्रीमती राजै. काफी समय से लगभग चुप्पी सादे हुए हैं .
उनकी क्या भूमिका आगामी चुनावों में भाजपा के प्रति रहेगी इस पर प्रश्नचिन्ह है उनकी भूमिका का चुनाव परिणाम पर बहुत असर पड़ेगा .
यदि श्रीमती राजै, पार्टी के साथ जाती है, तो उनकी भूमिका क्या रहेगी, यह तय कर पाना पार्टी के लिए मुश्किल होगा .
जब तक उन्हें ठोस आश्वासन नहीं मिलेगा तब तक वह पार्टी के साथ मन लगाकर काम करेंगे इस पर संदेह है.
हालांकि श्रीमती वसुंधरा राजे ,पार्टी खिलाफ बगावत कर दें ,इस बात की संभावना कम है. लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव है। ऐसी स्थिति में राजस्थान के चुनाव और भी ज्यादा दिलचस्प हो जाएंगे
वर्तमान स्थिति में आगामी राजस्थान विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने की संभावना नजर आ रही है.
ऊंट किस करवट बैठे यह कहना अभी मुश्किल है .दोनों मुख्य दलों के अलावा अन्य पार्टियों भी अपनी-अपनी जमीन बनाने में लगी हुई हैं कुछ निर्दलीय उम्मीदवार भी जीत कर आ सकते हैं. ऐसी स्थिति में किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल जाए ,इस बात की संभावना कम है निर्दलीय और छोटे दलों कि सरकार बनाने में बड़ी भूमिका हो सकती है