सर्वोच्च न्यायालय ने ई डी की शक्तियों पर मोहर लगाई
गौरव रक्षक/दीप प्रकाश माथुर
नई दिल्ली 28 जुलाई।
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को कानून के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है ,जो लंबे समय तक कानून के जानकारों , समाचार जगत, राजनेताओं और आम जनता के बीच एक चर्चा का विषय रहेगा.
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को पारित आदेश में माना है कि ई डी को गिरफ्तार करने, जांच करने ,संपत्ति जप्त करने, छापा मारने आदि की जो शक्तियां, “प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग अधिनियम” के तहत प्राप्त हैं ,वह विधि सम्मत हैं .
माननीय सर्वोच्च न्यायालय में श्री कीर्ति चिदंबरम श्री अनिल देशमुख व अन्य द्वारा दायर, 240 याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए, उक्त प्रावधानों को विधि सम्मत माना है .सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना है कि पी एम एल ए एक्ट के तहत ई .डी. को प्राप्त शक्तियां ,पूर्ण रूप से विधि सम्मत है. इन प्रावधानों के तहत ई. डी .को, बयान दर्ज करने, गिरफ्तारी करने ,संपत्ति की जब्ती करने और छापे मारने का अधिकार है .साथ ही ई ड़ी मैं दर्ज कराए गए बयानों को सबूत के रूप में ,इस्तेमाल करने पर, भी मोहर लगाई है .
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री खानविलकर श्री जस्टिस सि .टी .रवि कुमार और श्री जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने बुधवार को उक्त निर्णय सुनाते हुए 242 याचिकाओं का निस्तारण किया .उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी माना है कि सीबीआई व अन्य जांच एजेंसियों द्वारा ,बंद किए गए प्रकरणों, में भी ई .डी .को कार्रवाई करने का अधिकार है. माननीय “सर्वोच्च न्यायालय” ने अपने निर्णय में यह माना है कि, मनी लॉन्ड्रिंग का केस ,आतंकवाद के अपराध से ,कम नहीं है. इससे देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरा रहता है .तथा देश के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने पर विपरीत प्रभाव पड़ता है; जघन्य अपराधों को बढ़ावा मिलता है .
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना है कि, 2 कड़ी शर्तों के आधार पर किसी को जमानत दी जा सकती है,. यह शर्तें निम्न प्रकार से हैं.
⚫ या तो कोई कोई आरोपी ,दोषमुक्त होने के संबंध में ,पुख्ता सबूत प्रस्तुत करें.
⚫ अथवा, कोर्ट को यह भरोसा हो ,कि आरोपी छूटने के बाद कोई अपराध नहीं करेगा.
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिकाओं में कहां गया था कि प्रवर्तन निदेशालय को पी एम एल ए के तहत प्राप्त शक्तियों गिरफ्तार करने, जमानत लेने ,संपत्ति जब्त करने का अधिकार, दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के विपरीत होने से; असंवैधानिक है .क्योंकि “कॉग्निजेबल अपराध” की जांच और ट्रायल के बारे में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं होता है. जोकि किसी भी जांच एजेंसी, को करना, कानूनन आवश्यक है.
“सुप्रीम कोर्ट “ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनते के पश्चात, लगभग 542 पेज का निर्णय सुनाते हुए, प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों, को विधि सम्मत माना है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश मैं निम्नलिखित मुख्य बिंदु समाहित किए गए हैं.
⚫ईडी को गिरफ्तारी करने ;बयान दर्ज करने, संपत्ति कुर्क करने और रेड मारने का अधिकार है.
⚫ प्रवर्तन निदेशालय में दर्ज शिकायत e.c.i.r. को f.i.r. के बराबर नहीं माना जा सकता यह एक आंतरिक दस्तावेज है.
⚫ ई सी आई आर की प्रति ,आरोपी को देना बाध्यकारी नहीं है. गिरफ्तारी के पश्चात, आरोपी, को गिरफ्तारी का कारण बताना ही पर्याप्त है.
⚫ पी एम एल ए में वर्ष 2018-19 में किए गए बदलाव ;फाइनेंस एक्ट, के तहत है या नहीं ,इस पर विचार करने के लिए सात जजों की बेंच विचार करेगी.
डायरेक्टरेट आफ एनफोर्समेंट अर्थात ई .डी .का गठन ;1 मई 1956 को किया गया था . जो देश में हो रहे वित्तीय अपराधों पर स्वतंत्र रूप से कार्य करती है.
प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गत 17 वर्षों में दायर प्रकरणों मैं, केवल 23 व्यक्तियों को ही, दोषी माना है .इस दौरान 5442 प्रकरण दर्ज किए गए थे, जिनमें से 992 प्रकरणों, में चार्जशीट दायर की गई है .तथा अब तक एक लाख करोड़ से अधिक, की संपत्ति जप्त की गई है.