भीलवाड़ा जिले के कलक्टर की कार्यप्रणाली से भीलवाड़ा होता “बद से बदतर” !

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(कलेक्टर ऑफिस के अंदर की स्थिति देखता हुआ चतुर्थ कर्मचारी)

भीलवाड़ा जिले के कलक्टर की कार्यप्रणाली से भीलवाड़ा होता “बद से बदतर” !

भीलवाड़ा में जब नए जिलाधीश आये तो लगा , कि अब एक युवा प्रशासनिक अधिकारी है ,तो अब भीलवाड़ा को विकास व अन्य दिशा मिलेगी। किन्तु मुझे आज भी ढाक के तीन पात नजर आ रहे है। बेतरतीब व्यवस्था व पोल खोल नियति की तरफ बढ़ता हुआ एक मंजर नजर आ रहा है।

(इंतजार करती ग्रामीण क्षेत्र की जनता)

भीलवाड़ा में ज़िलाधीश महोदय प्रशासनिक व्यवस्था के साथ अनेक संस्थान के अधिकारी भी हैं। किंतु कोई ख़ास परिवर्तन नही दिखा । भीलवाड़ा का पिछले कोविड के कहर में एक शानदार सफलता के साथ देश मे नाम हुआ । किन्तु उसके बाद वर्तमान में जो कोविड गया , उसमे अव्यवस्था का माहौल साफ नजर आया । और प्रशासनिक व्यवस्था के कोई पुख्ता इंतजाम नही होने से , कई लोग मारे गए। भीलवाड़ा से पलायन करके दूसरी जगह शरण लेकर या तो बच पाए या दुनिया को छोड़ कर चले गये। इस प्रकार यह आलम रहा , कि न तो प्रशासन ने सुध ली और न ही अस्पताल वालो ने । जिला अस्पताल भी लचर व्यवस्था का शिकार हुआ, कोई देखने वाला नही ।

(इंतजार करती हुई परेशान महिलाएं)

भीलवाड़ा में बजरी माफियाओ का गिरोह काफी समय से सक्रिय है। किन्तु उन पर नकेल डालने वाले शायद दूर की कौड़ी साबित हुये । और वर्तमान में बेख़ौफ़ बजरी माफिया , सक्रिय होकर प्रशासन को नजरअंदाज कर अपना काम कर रहे है। क्योकि प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है। यह सोचनीय प्रश्न है!


भीलवाड़ा शहर में काफी दिनों से सीवरेज व गैस की पाइप लाइन डालने व अन्य केबल डालने का काम हो रहा है, जो धीमी गति से चलने के साथ चल रहा है। लापरवाही का आलम इतना है, कि आम जनता इतनी परेशान है और इतनी दुर्घटनाओं की शिकार हुई हैं , पर कोई सुध लेने वाला नही । और तो और एक – दूसरे विभाग पर बात डाल कर इतिश्री कर लेते हैं । जबकि सख्त प्रशासनिक व्यवस्था हो , तो यह सब समयबद्ध तरीके से सब ठीक हो सकता है ,किन्तु कुछ भी नही हुआ।
अब बात करते हैं विकास के लिए कटिबद्ध वह विभाग जिनके जिला हाकम अध्यक्ष के तौर पर काम संभालते है ,उसका नाम हैं- “भीलवाड़ा नगरविकास न्यास” जिनके कहानी किस्से बहुत आये है ।और भ्रष्टाचार का अड्डा बना हुआ है । कितनी ही शिकायते एसीबी में दर्ज है , तथा आये दिन उसके काले कारनामे अखबारों की सुर्खियों में रहते है । किंतु न तो उनका रवैया बदला और न ही उनकी कार्यशैली । क्योंकी बहुत बड़ी मानसिकता पाल रखी है की हमारा कुछ भी बिगड़ने वाला नही है, मोटी चमड़ी के लोग जो ठहरे। अब बात करते है भीलवाड़ा जिला कलेक्टर कि । लोगो को लगा ,कि युवा चेहरा है ,अब कुछ अच्छा होगा । युवा चहरा आया है ,लोगो का काम होगा , अब यूआईटी के दल्ले दूर होंगे, काम होगा , किंतु! वो ही ढाक के तीन पात निकले। और ढर्रा बिगड़ता गया और जल्द काम होने की दूर की कौड़ी साबित हुई । काम करने का नजरिया चेंज किया , कि कोई भी युआईटी में फाइल हाथ मे लेकर विभाग में नही जाएगा । उसका असर यह हुआ कि फाइल या तो ढेर में लग गई या दल्ले के हत्थे चढ़ गई। वहाँ पर पक्के कर्मचारियों से ज़्यादा तो संविदा कर्मचारियों की पो – बारह हैं। उनसे मिलो तो काम बड़ी आसानी से हो जाते है । क्योंकि कर्मचारी काम कम , दलाली का काम ज्यादा करते हैं। और कुछ समय से तो 250 करोड़ सालाना विभाग में पिछले काफ़ी समय से स्थाई सचिव तक नही है। अब जा कर कही सचिव मिले हैं।
तकनीक विभाग तो मानो , एक दो अधिकारी तो बड़े- बड़े फैसले लेते हैं कि उनका मातहत अधिकारी कौन होगा। यदि रोड़ा अटकाया तो कुछ भी हो सकता है , एसीबी में भी जा सकते हो,और हुआ भी। विकास कार्य का एक नियम बना हुआ है , कि कितनी राशि कहाँ खर्च की जा सकती , किन्तु यहां पर अपने आकाओं को राजी रखने के लिए करोड़ों रु. विकास के नाम बहा दिए गए । और तो और निजी कॉलोनी में बिना वजह करोडो रु. का काम, किसी को लाभ पहुंचाने का मकसद से ओवरब्रिज तक बना डाला और यह काम बदस्तूर जारी है। कोविड काल मे निजी कॉलोनाइजर के काम तो ऐसे हुए जैसे साधारण समय मे भी नही हुये। संवेदकों का पेमेंट , आपका कोई आका हैं ,तो रातोंरात पेमेंट हो गये ओर आपका कोई नही तो फाइल एक – दूसरे टेबल पर जाने में महीनों लग गए । कुल मिलाकर बहुत कुछ लिखने को हैं ,बहुत समय निकल जायेगा , किन्तु न्यास का हाल कोई नही सुधार सकता ,चाहे कुछ भी हो जाये। हां, किसी दबंग व्यक्ति का इंतजार है , कभी तो कुछ होगा, पब्लिक का सुनने वाला कोई तो होगा !
इस प्रकार भीलवाड़ा प्रशासन का यह अंदाज नजरअंदाजी है , या कुछ और कहानी हैं , यह समय का इंतजार होगा।
राजस्थान सरकार का एक मकसद है, प्रशासन आपके द्वार जनता के काम रुकना नहीं चाहिए, जनता के काम प्राथमिकता से होना चाहिए। किंतु भीलवाड़ा जिला हाकिम, प्रशासन का एक अजीब रवैया देखने को मिलता है, कि पहले तो जनता से समय पर मिलना नहीं। मिलना तो जनता को मीठी गोली दे देना, लेकिन काम नहीं करना। आम लोगों की बड़ी ही दयनीय स्थिति है , जो व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र से अपनी समस्या लेकर आते हैं, कुछ देर बैठने के बाद उनको पता लगता है , की कलेक्टर साहब मीटिंग में हैं ! कभी बिजी हैं ! या कभी कोई छुट भैया नेता बैठा होता है ! तो वह हैरान परेशान व्यक्ति दो-चार दिन चक्कर काटने के बाद या दो-तीन घंटे बैठने के बाद चले जाते है । कभी श्रीमान के दर्शन हो भी जाते हैं , तो वही रटा रटाया जवाब मिलता है, की ठीक है मैं देख लूंगा, आप जाकर संबंधित विभाग के अधिकारी से मिल लेना। जबकि वह उस सम्बधित विभाग के अधिकारी से अपने काम के लिए कई बार मिल चुका है। उसे वहां निराशा ही हाथ लगी। इसलिए वह जिला कलेक्टर के पास गुहार लगाने के लिए आया। लेकिन उसे यहां भी निराशा ही हाथ लगी और वह गरीब व्यक्ति मन – मसोसकर अपने घर लौट जाता है । एवं उचित न्याय से वंचित हो जाता है। इस ढर्रे को बदलना चाहिए ,ताकि लोगों को उचित न्याय मिल सके। नहीं तो भीलवाड़ा की स्थिति बद से बदतर होती चली जाएगी ।

रिपोर्ट- राजेन्द्र शर्मा

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