अपराधी विकास दुबे के आगे भेड़ बकरियों की तरह सरेंडर थे व्यापारी।

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रिपोर्ट- शेरसिंह यादव

 

कानपुर में सिर्फ चौबेपुर ही नहीं पूरा शहर, और शहर के बड़े पान मसाला कारोबारी, प्रॉपर्टी डीलर और बिल्डर, माफिया सरगना विकास दुबे के आगे भेड़-बकरी की तरह सरेंडर थे। थानेदार, तहसीलदार, जेई, आबकारी इंस्पेक्टर ….फील्ड के ये अहम मुलाजिम, हर सरकारी ठेके-पट्टे में दुबे के साझेदार थे। कम शब्दों में, दुबे के आतंक को आप यूँ समझिये .. कि 2001 में जब उसने भाजपा नेता संतोष शुक्ला को कानपुर देहात के शिवली थाने में गोलियों से भून दिया तो इस खौफनाक वारदात के 25 पुलिस वाले चश्मदीद गवाह बने। लेकिन दुबे की दहशत का आलम ये था कि सभी पुलिस वाले अदालत में सच बोलने से मुकर गए और सरगना इस जघन्य हत्याकांड में बरी हो गया। बरी होते ही दुबे ने राजनीति में पाँव बढ़ाया और विधान सभा के स्पीकर हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने उसे बिना शर्म गोद ले लिया।

आज आठ पुलिस कर्मियों की नृशंस हत्या करके, विकास दुबे फरार है और पुलिस अभी भी डॉन के गुर्गो पर सख्ती नहीं कर पा रही है। दुबे के एक साथी जय वाजपाई को कल पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया। वाजपेयी के पास से बिना नंबर प्लेट की तीन लक्ज़री गाड़ियां(ऑडी, फार्च्यूनर और वेरना) बरामद की गयी थीं और ये शक था कि इन गाड़ियों का इस्तेमाल विकास दुबे का गिरोह कर रहा था। दुबे के कुछ और प्रभावशाली नेता मित्रों से भी नरमी बरती गयी है। बहरहाल, पुलिस से AK 47 राइफल जैसे हथियार छीनकर फरार हुए दुबे को आज चार दिन हो गए हैं। अभी तक उसका कोई निशां, कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा है , अलबत्ता जांच एजेंसियों के बीच खुद आपस में मतभेद है। एक दूसरे की गर्दन नापने-बचाने की कोशिशें हो रही है।

बेशक, विकास दुबे दुर्दांत है, लेकिन श्रीप्रकाश शुक्ला से बड़ा दुर्दांत अपराधी उत्तर प्रदेश में कोई नही हुआ। दर्जनों हत्याओं के बाद जब श्रीप्रकाश ने लखनऊ के जनपथ मार्किट में एसपी के पेशकार सब इंस्पेक्टर आर के सिंह को सरेआम मारा, तब अपने साथी का बदला लेने के लिए तीन पुलिस अफसर( तत्कालीन SSP Arun Kumar, SP Satyendra Veer Singh ASP Rajesh Pandey) सिर पर कफ़न बांधकर मैदान में उतरे। उनके दिन-रात के इस अभियान को यूपी पुलिस के इतिहास में सबसे जोखिम भरा ‘police chase’ बताया गया है जिसमे कई मौकों पर कई बार गोलियां चली। आखिरकार इस तिकड़ी ने शुक्ला को गोलियों से छलनी किया और उसके गिरोह का नामोनिशां मिटा दिया।

योगी जी, यूपी में कानून व्यवस्था की स्थिति आज भयावह है। इसीलिए जनता को एक सन्देश देने के लिए विकास दुबे और उसके पूरे गैंग को जिन्दा या मुर्दा पकड़ना आपकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन कई भ्रष्ट पुलिसकर्मी, जो दुबे और वाजपेयी जैसे उसके गुर्गों के साथ सेल्फी खिंचा रहे थे आपके इस अभियान को कैसे सफल करेंगे ? जो पुलिस छापे से पहले दुबे को फोन करके मुखबिरी दे रही थी उससे जनता क्या उम्मीद करे ? पुलिस अफसरों की अलग अलग लॉबी और उनके बीच टकराव के चलते क्या इतनी बड़ी चुनौती से आप निपट सकते हैं ? ज़मीनी हकीकत से रूबरू होइये। सिर्फ ‘time buy’ करने से काम नहीं चलेगा।

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