जो सिद्धार्थ अजय सिंह के नहीं हुए वह किसी के क्या होंगे

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जो सिद्धार्थ अजय सिंह के नहीं हुए वह किसी के क्या होंगे
गौरव रक्षक/शिवभानु सिंह बघेल

12 जून सतना – जब नेताओं के मन का कोई काला पीला काम कोई नियमों में चलने वाला ईमानदार अधिकारी नहीं करता तो नेताओं को वह नागवार गुजरता है और फिर वह मौका देखकर अपने पद का दुरुपयोग करने से बाज नहीं आते । हमारे घूमते आईने को जानकारी मिली है कि जनअदालत से 4 वर्ष गायब रहने वाले व सिर्फ अपने समाज के नेता मात्र सिद्धार्थ कुशवाहा ने मौहारी कटरा रामपुर बघेलान के नायक तहसीलदार अरुण यादव की शिकायत सिर्फ इसलिए की क्योंकि अमरपाटन में रहते हुए उन्होंने डब्बू के कहने से छाइन गांव में जमीन के मसले पर काला पीला करने से मना कर दिया । कांग्रेस को रसातल में पहुंचाने का इनाम उन्हें महापौर के टिकट के रूप में मिला है । भाजपा के तत्कालीन विधायक शंकरलाल तिवारी के प्रति ब्राह्मण मतदाताओं की नाराजगी और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह “राहुल भैया” के समर्थन के चलते वे विधायक तो बन गए । लेकिन कमलनाथ उन्हें हेलीकॉप्टर में बिठाकर बुद्धि का ऐसा को कुंठित किया कि वे अपने आपको राष्ट्रीय नेता समझने लगे । उन्हें महापौरी का टिकट देकर कमलनाथ ने सिद्ध कर दिया है कि कांग्रेस में त्याग व संघर्ष की कोई जगह नहीं है । वही यह पार्टी बार बार “थूक कर चाट” लेने का उदाहरण प्रस्तुत कर देती है । उल्लेखनीय है कि पिछले महीने ही राष्ट्रीय चिंतन शिविर में एक व्यक्ति एक पद का संकल्प पारित किया गया । इस संकल्प के परिपालन में ही कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ा लेकिन अब डब्बू को विधायक के साथ महापौरी का झूठा सपना दिखा दिया गौरतलब है कि डब्बू को अजय सिंह कांग्रेस में लाकर विधायक बनाया था लेकिन विधायक बनने के सबसे पहला काम उन्होंने अजय सिंह को पहचानने से इंकार करने का ही किया । ऐसा तमाम मुद्दे हैं जब वे सरकार को घेर सकते थे लेकिन वह गायब रहे अब महापौर के प्रत्याशी बनकर जनता के सामने प्रकट हुए हैं ऐसा लगता है कमलनाथ व सिद्धार्थ कुशवाहा सतना शहर की जनता को मूर्ख समझते हैं जो बिना उनके लिए आवाज उठाई एवं संघर्ष के बिना ही बार बार वोट ले लेंगे । संघर्ष तो छोड़िए कोरोना आपदा मे विधायक ने मुंह दिखाई की रस्म तक अदा करना उचित नहीं समझा । अब वर्षो से संघर्ष कर रहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर उन्हें रोककर कमलनाथ भले ही इतरा रहे हो लेकिन स्वाभिमानी कार्यकर्ता इस मनमानी पर खामोश रहेंगा मुश्किल दिखता है । प्रेक्षकों की एक लाइन की टिप्पणी है
काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है ।
यूंकी गम इस बात का नहीं कि, तूने बेवफाई की ।
गम तब होता जब , किसी से निभाई होती ।

(लेखक के शिवभानू सिंह बघेल के निजी विचार)

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